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जनवरी 17, 2010 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

सोचो

मैं लोकतंत्र हूं... मनोज कुमार मैं लोकतंत्र हूं...किसम किसम की कुर्सियां बेचता हूं पंच से लेकर प्रधानमंत्री तक हर कुर्सी बिकाऊ हैबोलो कौन सी कुर्सी खरीदोगे जनाब? किसम किसम की कुर्सियां बेचता हूंमहंगाई बढ़ गई है इन दिनों जनाब अभी अभी साढ़े छह लाख में बिकी है...सरपंच की कुर्सी…। अभी कुछ और बाकि है मोल तो लगाओ जनाब… किसम किसम की कुर्सियां बेचता हूंपंच की कुर्सी की कीमत पचपन हजार लग चुकी हैदेश दांव में लगाने की ताकत हो तोप्रधानमंत्री की कुर्सी खरीद सकते हो जनाब… बोलो कौन सी कुर्सी खरीदोगे जनाब? किसम किसम की कुर्सियां बेचता हूंप्रेमचंद का अलगू चौधरी कहीं खो गया हैऔर बापू का ग्राम स्वराज यहीं कहीं भटक गया हैकिसी को मिल जाएं तो जरूर बतानातब तक मैं फिर बोली लगाता हूं जनाब… मैं लोकतंत्र हूं... किसम किसम की कुर्सियां बेचता हूं (आद। भवानीप्रसाद मिश्र से क्षमायाचना के साथ) गाफिल है पूरी दुनिया मनोज कुमार महात्मा गांधी का सपना था कि गांव की सत्ता ग्रामीणों के हाथों में हो. इसी सपने को आधार बनाकर स्वर्गीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने ग्राम स्वराज की कल्पना करते हुए पंचायतीराज व्यवस्था आरंभ की थी. मध्यप