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सितंबर 19, 2016 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

खुले में शौच से तौबा करते आदिवासी परिवार

-अनामिका 85 साल का आदिवासी गुगरी और उसकी बीवी कमला अब खुले में शौच के लिए नहीं जाते हैं। उनके घर में ही शौचालय बन गया है और अब दोनों इसका उपयोग करते हैं। इनकी तरह ही बैगा आदिवासी सुकाल ने भी खुले में शौच से तौबा कर ली है। खुद के घर में शौचालय बन जाने से सरस्वती बाई को तो जैसे सारी दुनिया का सुख मिल गया है। वह कहती है कि खुले में शौच करना मजबूरी थी लेकिन हमेशा डर बना रहता था। मैदान के आसपास से बार बार पुरुषों के आने-जाने से उन्हें अनेक किस्म की परेशानी होती थी। इस परेशानी से सरस्वती बाई ही अकेली परेशान नहीं थी बल्कि गांव भर की महिलाओं को दिक्कत हो रही थी लेकिन स्वच्छ भारत अभियान ने उनके जीवन का ढर्रा ही बदल दिया है।  यह तो महज चंद उदाहरण हैं। छत्तीसगढ़ खुले में शौचमुक्त राज्य की तरफ तेजी से बढ़ रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आह्वान पर समूचे देश में स्वच्छ भारत अभियान चल रहा है लेकिन छत्तीसगढ़ की सफलता कुछ अलग मायने रखता है। आदिवासी बहुल राज्य होने और दशकों तक विकास से दूर रहने वाले छत्तीसगढ़ में ऐसे लोगों ने भागीदारी की है जिनकी कल्पना नहीं कर सकते। राजनांदगांव जिले के ब