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मई 27, 2012 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

भवानी भाई, पत्रकारिता और बाजार

30 मई पत्रकारिता दिवस पर विशेष मनोज कुमार भवानी भाई, पत्रकारिता और बाजार शीर्षक शायद आपको अटपटा लगे लेकिन तीनों के बीच का अन्तर्सबंध आगे चलकर हम समझने की कोशिश करेंगे। मैं गीत बेचता हूं किसम किसम के गीत बेचता हूं..दशकोंं पहले भवानी प्रसाद मिश्र ने जब यह गीत लिखा होगा तो उन्हें इस बात का अहसास रहा होगा कि आने वाले दिनों में पत्रकारिता भी किसम किसम के खबरें बेचेगी। जिसे जो पसंद होगा और जिसके जेब में दाम देने की गुरबत होगी, वह अपनी पसंद की खबर बनवायेगा और छपवायेगा। आज की पत्रकारिता का यही सच है।  यह भी सच है कि 30 मई 1826 को उदंत मार्तण्ड का प्रकाशन आरंभ करते समय पंडित जुगलकिशो शर्मा को इस बात का कतई अहसास नहीं रहा होगा कि पत्रकारिता के ऐसे दिन भी आएंगे। वे तो पत्रकारिता को समाज सुधार का एक माध्यम मानते थे और इसी बूते पर उन्होंने पत्रकारिता के माध्यम से अंग्रेजी शासकों से लोहा लेने की जुर्रत दिखायी। वे कामयाब भी हुए किन्तु जिस पत्रकारिता की तब उन्होंने कल्पना की होगी और जिसे समाज सुधार का माध्यम माना होगा, वह पत्रकारिता सन् 2012 आते आते तक मीडिया में तब्दील हो गया। मीडिया का सामान्य स