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सितंबर 9, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

एक जननायक बन जाने की कथा

मनोज कुमार वरिष्ठ पत्रकार एवं मीडिया विश्लेषक  राजनेताओं को समय-समय पर उपाधियां मिलती रही हैं. यह उपाधियां किसी संविधान के तहत नहीं बल्कि समाज की सहमति से तय होती हैं और आहिस्ता आहिस्ता चलन में आ जाती हैं. मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान को समाज ने कभी किसान का बेटा कहकर पुकारा तो कभी पांव पांव वाले भैया कह और इन दिनों उनके लिये नया तखल्लुस इस्तेमाल हो रहा है जननायक. किसान का बेटा होने के कारण इस तखल्लुस में आकर्षण नहीं था लेकिन पांव-पांव वाले भइया में कुछ आकर्षण दिखा. मुख्यमंत्री बनने के पहले और बाद में भी वे जनता से मिलने मोटर-कार के बजाय पैदल ही चला जाया करते थे. आम आदमी के लिये यह अलग किस्म का अनुभव था सो यह तखल्लुस लोकप्रिय हो गया. इसके बाद अचानक से उन्हें जननायक पुकारा जाने लगा. यह तखल्लुस सुनने में भला लगता था लेकिन इसके कारणों की पड़ताल किये बिना इसे समझ पाना मेरे लिये मुश्किल सा था.  खैर, जिंदगी रफ्ता-रफ्ता गुजर रही थी. रोज की तरह किसी एक मैजिक में मैं धंसा घर वापस आ रहा था. एक पत्रकार होने के नाते आसपास क्या हो रहा है, इस पर तो नजर रहती ही है बल्कि आसपा