मनोज कुमार महीने-डेढ़ महीने पहले तक आप और हमको लगता था कि पुलिस बहुत बुरी है। पुलिस यानि डर और भय का दूसरानाम। लेकिन इन दिनों में पुलिस की परिभाषा बदल गई है। पुलिस यानि डर और भय नहीं बल्कि सहयोग और सुरक्षा का दूसरा नाम पुलिस है। कोरोना वायरस से जब पूरी दुनिया के साथ हिन्दुस्तान का जर्रा-जर्रा जूझ रहा है तब पुलिस लोगों की जान बचाने में जुट गई। कभी यही पुलिस वजह-बेवजह दूसरों की जान लेने के लिए बदनाम थी, वही पुलिस आज अपनी जान हथेली पर लेकर हमारी जान बचाने के लिए महीनों से सड़क पर तैनात है बल्कि अपनी जान देने में भी पीछे नहीं हट रही है। पुलिस का कोई बहादुर जवान या अफसर अपनी छोटी सी मुनिया को घर पर छोड़कर आया है तो किसी की बूढ़ी मां अपने बेटे के घर लौटने के इंतजार में है। ना खाने का कोई वक्त है और ना चैन से सोेने का समय। धरती इनका बिछौना बन गई है और आसमां छत। सड़क के किनारे दो रोटी चबाकर वापस लोगों की जान बचाने में जुट जाने का जज्बा बताता है कि पुलिस इतनी बुरी भी नहीं है दोस्त। इतना ही नहीं किसी गरीब भूखे को देखकर अपना निवाला उनके हवाले करने के कई किस्से आप...
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