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फ़रवरी 7, 2016 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

सुधीर तैलंग को याद करते हुए..

मनोज कुमार   सुधीर  तुम तो कमजोर निकले यार.. इत्ती जल्दी डर गए.. अरे भई कीकू के साथ जो हुआ.. वह तुम्हारे साथ नहीं हो सकता था.. ये बात ठीक है कि अब हम लोग तुम्हारी कूची के काले-सफेद रंग से डरने लगे हैं.. डरावना तो तब और भी हो जाता है जब तुम रंगों और दो-एक लाइन में इतना कह देते हो कि सब लोग हमाम में खड़े नजर आते हैं.. ये ठीक है सुधीर हम लोग तुम से डरते थे लेकिन तुम हमसे डर कर चले गए.. डरने के लिए तो कीकू भी डर गया था.. अब वह किसी की नकल उतारने में क्या.. खुद की नकल करने में भी डर रहा होगा.. कीकू की हालत से तुम इतने घबरा गए.. तुम्हारी कूची के रंग तो पुराने है.. तेवर शायद इससे और ज्यादा पुराना.. सुधीर तुम इस तरह चले जाओगे तो इनकी तो मौजा ही मौजा हो जाएगी.. ये तुम्हें हारते देखना चाहते थे.. और तुम हार गए.. सच तो यह है कि तुम हारे नहीं हो.. सुधीर हारने वालों में नहीं है.. हार कर भी जीत जाने वाले का नाम सुधीर है.. तुम्हारी कूची से अब आग नहीं निकलेगी.. यह भी सच है.. तो यह भी सच है कि जो कुछ उगल गए हो.. उसे ये कैसे निगल पाएंगे.. इनकी गले की फांस बने रहोगे.. यह फांस ही सुधीर की पहचान है..