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मई 29, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

ऐसे भी थे पत्रकार

 manoj kumar साथियों, हिन्दी पत्रकारिता दिवस के इस महान अवसर को स्मरण करते हुये आप सभी प्रतिबद्ध साथियों को मेरा नमस्कार, बधाई.  हिन्दी पत्रकारिता दिवस के ठीक दो दिन पहले मुझे एक अनुभव से गुजरने अवसर मिला. इस अनुभव को आपके साथ बांटने में मुझे आनंद का अनुभव होगा. भोपाल में अपने जमाने की तेवर वाली पत्रकार श्रीमती प्रभा वेताल से लगभग सभी लोग परिचित होंगे. उनके समकालीन लोगों को तो वे स्मरण में होंगी ही. मैं जब रायपुर से भोपाल पत्रकारिता करने आया तो उनका नाम कई कई बार सुना. उनके बारे में जो सुना तो कुछ अच्छा नहीं लगा क्योंकि उनके बारे में बतायी गयी सारी बातें नकरात्मक थीं. मेरी आदत है कि जब तक मैं स्वयं अनुभव नहीं कर लूं, किसी के कहे पर यकिन नहीं करता. आज शायद यह आदत मेरे लिये लाभकारी रही. एक पुराने पत्रकार, जिनका प्रभाजी के साथ थोड़ा-बहुत उठना-बैठना था. बात ही बात में उनके बारे में कहने लगे-एक प्रभा भाभी थीं. कभी कोई गलत काम नहीं किया और न ही किसी प्रकार का कोई गलत लाभ लिया. इस संदर्भ में उन्होंने एक वाकया सुनाया.  प्रभाजी की एक आंख में कोई बड़ी समस्या थी. मामला आंख के रिप्ले