मनोज कुमार आपदा में अवसर तलाशने वालों के खिलाफ संकट में समाधान तलाशने की जरूरत है. स्वाधीनता के पहले कुछ सालों के बाद हमारे समाज को भ्रष्टाचार, घोटाले ने निगल लिया है. बार बार और हर बार हम सब इस बात को लेकर चिंता जाहिर करते रहे हैं लेकिन यह लाइलाज बना हुआ है. आज हम जिस चौतरफा संकट से घिरे हुए हैं, उस समय यह बीमारी कोरोना से भी घातक साबित हो रही है. खबरों में प्रतिदिन यह पढऩे को मिलता है कि कोरोना से बचाव करने वाले इंजेक्शन, दवा और ऑक्सीजन की कालाबाजारी हो रही है. अस्पताल मनमाना फीस वसूल रहे हैं. जान बचाने के लिए लोग अपने घर और सम्पत्ति बेचकर अस्पतालों का बिल चुका रहे हैं. हालात बद से बदतर हुआ जा रहा है. शिकायतों का अम्बार बढ़ा तो सरकार सक्रिय हुई और टेस्ट से लेकर एम्बुलेंस तक की दरें तय कर दी गई लेकिन अस्पताल प्रबंधन पर इसका कोई खास असर होता हुआ नहीं दिखा. कोरोना से रोगी बच जा भी जा रहा है तो जर्जर आर्थिक हालत उसे जीने नहीं दे रही है. यह आज की वास्तविक स्थिति है लेकिन क्या इसके लिए अकेले सरकार दोषी है या हमारा भी इसमें कोई दोष है? क्यों हम इस स्थिति से उबरने के लिए स...
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