शून्य से शिखर का सफर मनोज कुमार व्यक्ति या संस्था जब शिखर पर होता है तब उसकी विजयगाथा गायी जाती है और यह स्वाभाविक भी है. आज की भारतीय जनता पार्टी की बुनियाद में उसके संघर्ष के दिनों की यात्रा उसकी नींव है. 1951 में जनसंघ के रूप में यात्रा शुरू हुई और जनता पार्टी के रूप में विस्तार मिला और 6 अप्रेल 1980 को स्वयं की पहचान के साथ भारतीय जनता पार्टी की यात्रा आरंभ हुई तो अविरल चल रही है. कभी दो सांसदों के साथ लोकसभा में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराने वाली भारतीय जनता पार्टी आज देश की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी के रूप में उपस्थित है. यहां यह जान लेना जरूरी है कि भारतीय जनता पार्टी की यात्रा का आरंभ कहां से शुरू होता है. वैसे तो यह सबको पता है कि 6 अप्रेल 1980 को भाजपा का एक राजनीतिक पार्टी के रूप में गठन हुआ लेकिन भाजपा की रीति-नीति हिन्दुत्व की रही है और इसी आधार पर तब 1951 में हिंदू समर्थक समूह की राजनीतिक शाखा के रूप में श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने नींव डाला था. ध्येय था हिंदू संस्कृति के अनुसार भारत के पुनर्निर्माण की वकालत की और एक मजबूत एकीकृत राज्य के गठन का आह्वान...
मनोज कुमार रिश्तों में घुलती कड़वाहट और एक-दूसरे की जान लेने पर उतारू समाज का डरावना चेहरा हम रोज़-ब-रोज़ देख रहे हैं. कहीं अपने गैर-कानूनी रिश्तेे के लिए पति को मारकर ड्रम में भर देने का मामला हो या पति के फोन पर बात करने से रोकने पर कॉफी में ज़हर देने का. इधर पति भी कम जल्लाद नहीं है और इनके किस्से तो पुराने हो चुके हैं या पत्नी को काट कर गाड़ देना या फिर टुकड़े कर फ्रिज में भर देने की वारदात हम नहीं भूले हैं. तंदूर कांड तो याद में होगा ही और आज भी ऐसी घटनाएँ लगातार जारी है. पति-पत्नी ही क्यों, किसी बेटा माँ की जान ले रहा है तो कहीं माँ बेटे की जान ले रही है. पिता असुरक्षित है तो घर के बच्चे भी डर के साये में जीवन बसर कर रहे हैं. ऐसी ख़बरें ना केवल हमें चौंकाती हैं बल्कि डराती भी हैं. सवाल यह है कि हमारा समाज इतना असहिष्णु कैसे हो गया? हिंसा की इस प्रवृत्ति ने तमाम किस्म के नैतिक मूल्यों को ताक पर रख दिया है. आधुनिक जमाने के साथ चलने की हरसत ने रिश्तों को बेमानी कर दिया है. आखिऱ हम किस समाज का निर्माण कर रहे हैं? कई बार इस बात पर भरोसा नहीं होता कि हम क्या सच...