ईमानदारी पर भारी बेईमानी
मनोज कुमार
आज दो खबरें हैं जिसमें पहली खबर मायने रखती है। खबर एक रिक्षा चालक को लेकर है। किसी सवारी ने रिक्षे में पचास हजार रुपये का बैग भूल आया था। रिक्षे वाले ने ईमानदारी का परिचय देते हुए उसे लौटा दिया। निष्चित रूप से इस खबर को जगह मिलनी चाहिए थी सो मिली किन्तु ठीक इसके नीचे एक खबर और लगी है कि पचास करोड़ के आसामी कार चोर थे। इस खबर को उतनी ही जगह दी गई है जितना कि रिक्षे वाले की ईमानदारी की खबर को। सवाल यह है कि ईमानदारी पर भारी पड़ती बेईमानी की खबर क्या इतना वजूद रखती है अथवा कि ईमानदारी और बेईमानी को एक तराजू पर तौला जाना चाहिए?
राय अलग अलग हो सकती है किन्तु इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि खबरें दोनो महत्वपूर्ण हैं किन्तु रिक्षा चालक की खबर ज्यादा मायने रखती है और कारचोरों की खबर कोई खास मायने की नहीं है। दूसरी खबर इस मायने में बेकार है अथवा अर्थहीन है कि इस समय समाज में सबसे बड़ा मुद्दा भ्रश्टाचार का है और ऐसे में ईमानदारी की कोई खबर सामने आये तो इसे बड़ी खबर माना जाना चाहिए। औसतन दस खबरों में छह तो बेईमानी की होती हैं। बेईमानी के मुद्दे और तथ्य अलग अलग होते हैं किन्तु चरित्र एक सा होता है। इस हालात में रिक्षा चालक की ईमानदारी को सलाम करना चाहिए। यह खबर सुकून देती है कि बिगड़ते दौर में भी ईमानदारी बाकि है और षायद यही ईमानदारी ही हमारे देष और समाज को बचाये रखी है।
मीडिया की जवाबदारी है कि जब वे संेध लगाकर लोगों के निजी जीवन में ताक-झांक कर मसालेदार खबरें खोज लाते हैं तो ऐसे ईमानदार लोगों को भी सामने लायें ताकि किसी अन्ना हजारे को, किसी रामदेव को भ्रश्टाचार के खिलाफ मुहिम चलाने की जरूरत ही ना पड़े क्योंकि इस मुहिम के कई अर्थ हैं। भ्रश्टाचार मिटाना इनका लक्ष्य है किन्तु कई बेईमान इनके साथ खड़े होकर स्वयं ही ईमानदार होने का सर्टिफिकेट पा रहे हैं। इस विसंगती से समाज को बचाने के लिये जरूरी है कि सकरात्मक खबरों को प्रमोट किया जाए।
मनोज कुमार
आज दो खबरें हैं जिसमें पहली खबर मायने रखती है। खबर एक रिक्षा चालक को लेकर है। किसी सवारी ने रिक्षे में पचास हजार रुपये का बैग भूल आया था। रिक्षे वाले ने ईमानदारी का परिचय देते हुए उसे लौटा दिया। निष्चित रूप से इस खबर को जगह मिलनी चाहिए थी सो मिली किन्तु ठीक इसके नीचे एक खबर और लगी है कि पचास करोड़ के आसामी कार चोर थे। इस खबर को उतनी ही जगह दी गई है जितना कि रिक्षे वाले की ईमानदारी की खबर को। सवाल यह है कि ईमानदारी पर भारी पड़ती बेईमानी की खबर क्या इतना वजूद रखती है अथवा कि ईमानदारी और बेईमानी को एक तराजू पर तौला जाना चाहिए?
राय अलग अलग हो सकती है किन्तु इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि खबरें दोनो महत्वपूर्ण हैं किन्तु रिक्षा चालक की खबर ज्यादा मायने रखती है और कारचोरों की खबर कोई खास मायने की नहीं है। दूसरी खबर इस मायने में बेकार है अथवा अर्थहीन है कि इस समय समाज में सबसे बड़ा मुद्दा भ्रश्टाचार का है और ऐसे में ईमानदारी की कोई खबर सामने आये तो इसे बड़ी खबर माना जाना चाहिए। औसतन दस खबरों में छह तो बेईमानी की होती हैं। बेईमानी के मुद्दे और तथ्य अलग अलग होते हैं किन्तु चरित्र एक सा होता है। इस हालात में रिक्षा चालक की ईमानदारी को सलाम करना चाहिए। यह खबर सुकून देती है कि बिगड़ते दौर में भी ईमानदारी बाकि है और षायद यही ईमानदारी ही हमारे देष और समाज को बचाये रखी है।
मीडिया की जवाबदारी है कि जब वे संेध लगाकर लोगों के निजी जीवन में ताक-झांक कर मसालेदार खबरें खोज लाते हैं तो ऐसे ईमानदार लोगों को भी सामने लायें ताकि किसी अन्ना हजारे को, किसी रामदेव को भ्रश्टाचार के खिलाफ मुहिम चलाने की जरूरत ही ना पड़े क्योंकि इस मुहिम के कई अर्थ हैं। भ्रश्टाचार मिटाना इनका लक्ष्य है किन्तु कई बेईमान इनके साथ खड़े होकर स्वयं ही ईमानदार होने का सर्टिफिकेट पा रहे हैं। इस विसंगती से समाज को बचाने के लिये जरूरी है कि सकरात्मक खबरों को प्रमोट किया जाए।
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