सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

vivad

स्त्री के लिये कानून नहीं, मन साफ करें

-मनोज कुमार

केन्द्र सरकार के रवैये पर सुप्रीम कोर्ट की फटकार की खबरें अभी धुंधली भी नहीं हुई थी कि एक और महाशय ने महिलाओं के प्रति अभद्र बयान दे डाला। हालांकि दो दिन बाद उन्होंने अपने बयान के लिये सफाई दी और माफी भी मांग ली। क्या इन महाशय के माफी मांग लेेने से समूची महिला समाज आहत हुई हैं, उनके जख्म पर मरहम लग जाएगा? मुझे तो नहीं लगता कि ऐसा हो पायेगा। इस पूरे मामले से एक बात यह जरूर साफ हो गई है कि स्त्री की स्वाधीनता के लिये हम चाहे जितना कानून बनाये, बंदिशें लगायें, इसके पहले हमारा मन साफ करना होगा। मन के भीतर जो रचा बसा है, वह दूर नहीं हो सका तो कानून केवल कागज में कैद हो कर रह जाएंगे। स्त्री के सम्मान के खिलाफ यह पहली बार नहीं बोला गया है। बार बार और हर बार किसी न किसी बहाने स्त्री को टारगेट पर रखा जाता है। यदि स्त्री चरित्रहीन है तो उसे ऐसा बनाने वाले तो हमारा पुरूष समाज ही है जो अपनी स्वार्थ की पूर्ति के लिये भेड़िये की तरह तरह तरह की साजिश करता रहता है।

राजनीति के मंचों पर पचास फीसदी आरक्षण देने से उनके अधिकारों की रक्षा तो हो जाएगी किन्तु जब स्त्री ही सुरक्षित नहीं रहेगी तो उनकी रक्षा कोैन करेगा। पेट के लिये अनाज की जरूरत होती है न कि अनाज के लिये पेट की जरूरत। कानून स्त्री की रक्षा करने के लिये बनता है और जब स्त्री ही नहीं बचेगी तो कानून किसके काम आएगा। उच्च पदों पर आसीन लोगों को बोलने से पहले अपने आप में मंथन करना होगा कि उनके बोलने का अभिप्राय क्या है और इसका असर पूरे समाज पर क्या होगा। चरित्र और नैतिकता की बातें करने वाले लोग जब अपनी सीमा लांघ जाते हैं तो इस तरह की समस्या उठ खड़ी होती है। यह बात भी तय है कि थोड़ा समय गुजर जाने के बाद लोग भूल जाएंगे किन्तु क्या इतिहास इस बात को विस्मृत कर पाएगा? क्या ऐसे बयान देेने वाले अपने आपको माफ कर पाएंगे? उन्हें तो न बोलने का मलाल है और न माफी मांगने पर शर्म।

इस पूरे संदर्भ में लगभग अनुचित किस्म की ही सही, शिकायत है कि मीडिया में ऐसे लोगों को स्थान नहंीं दिया जाना चाहिए। यह बात सही है कि मीडिया में ऐसे लोगों की करतूतांे को स्थान नहीं दिया गया तो लोगों को पता ही नहीं चलेगा कि बड़ी बड़ी कुर्सियों पर बैठने वाले महानुभाव अपनी ही जननी अर्थात किसी भी स्त्री के बारे में कितने उम्दा खयाल रखते हैं। इसके बावजूद ऐसे बेहूदे बयान को उसकी हैसियत के अनुरूप् स्थान दिया जाना चाहिए। बल्कि इससे एक कदम आगे यह कि आने वाले दिनों में मीडिया में ऐसे लोगों को ब्लेकलिस्ट कर दिया जाना चाहिए और उनके नाम को, काम को कहीं भी स्थान नहीं दिया जाए। इस बात से किसी को इंकार नहीं होगा कि मीडिया अगर इन्हें स्थान न दे ंतो शायद कोई इन्हें जानें तक नहीं इसलिये ऐसे लोगों के खिलाफ मीडिया का रूख कठोर होना चाहिए।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

विकास के पथ पर अग्रसर छत्तीसगढ़

-अनामिका कोई यकीन ही नहीं कर सकता कि यह वही छत्तीसगढ़ है जहां के लोग कभी विकास के लिये तरसते थे।  किसी को इस बात का यकिन दिलाना भी आसान नहीं है कि यही वह छत्तीसगढ़ है जिसने महज डेढ़ दशक के सफर में चौतरफा विकास किया है। विकास भी ऐसा जो लोकलुभावन न होकर छत्तीसगढ़ की जमीन को मजबूत करता दिखता है। एक नवम्बर सन् 2000 में जब समय करवट ले रहा था तब छत्तीसगढ़ का भाग्योदय हुआ था। साढ़े तीन दशक से अधिक समय से स्वतंत्र अस्तित्व की मांग करते छत्तीसगढ़ के लिये तारीख वरदान साबित हुआ। हालांकि छत्तीसगढ़ राज्य बन जाने के बाद भी कुछ विश्वास और असमंजस की स्थिति खत्म नहींं हुई थी। इस अविश्वास को तब बल मिला जब तीन वर्ष गुजर जाने के बाद भी छत्तीसगढ़ के विकास का ब्लूप्रिंट तैयार नही हो सका था। कुछेक को स्वतंत्र राज्य बन जाने का अफसोस था लेकिन 2003 में भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने सत्ता सम्हाली और छत्तीसगढ़ के विकास का ब्लू प्रिंट सामने आया तो अविश्वास का धुंध छंट गया। लोगों में हिम्मत बंधी और सरकार को जनसमर्थन मिला। इस जनसमर्थन का परिणाम यह निकला कि आज छत्तीसगढ़ अपने चौतरफा विकास के कारण देश के नक्शे

शोध पत्रिका ‘समागम’ का नवीन अंक

  शोध पत्रिका ‘समागम’ का नवीन अंक                                       स्वाधीनता संग्राम और महात्मा गांधी पर केन्द्रीत है.                      गांधी की बड़ी यात्रा, आंदोलन एवं मध्यप्रदेश में                                          उनका हस्तक्षेप  केन्दि्रय विषय है.

टेक्नो फ्रेंडली संवाद से स्वच्छत

मनोज कुमार           देश के सबसे स्वच्छ शहर के रूप में जब इंदौर का बार-बार जिक्र करते हैं तो मध्यप्रदेश को अपने आप पर गर्व होता है, मध्यप्रदेश के कई शहर, छोटे जिलों को भी स्वच्छ भारत मिशन के लिए केन्द्र सरकार सम्मानित कर रही है. साल 2022 में मध्यप्रदेश ने देश के सबसे स्वच्छ राज्य का सम्मान प्राप्त किया। स्वच्छता का तमगा एक बार मिल सकता है लेकिन बार-बार मिले और वह अपनी पहचान कायम रखे, इसके लिए सतत रूप से निगरानी और संवाद की जरूरत होती है. कल्पना कीजिए कि मंडला से झाबुआ तक फैले मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में बैठकर कैसे निगरानी की जा सकती है? कैसे उन स्थानों में कार्य कर रही नगरपालिका,  नगर परिषद और नगर निगमों से संवाद बनाया जा सकता है? एकबारगी देखें तो काम मुश्किल है लेकिन ठान लें तो सब आसान है. और यह कहने-सुनने की बात नहीं है बल्कि प्रतिदिन मुख्यालय भोपाल में बैठे आला-अधिकारी मंडला हो, नीमच हो या झाबुआ, छोटे शहर हों या बड़े नगर निगम, सब स्थानों का निरीक्षण कर रहे हैं और वहां कार्य करने वाले अधिकारी-कर्मचारियों, सफाई मित्रों (मध्यप्रदेश में सफाई कर्मियों को अब सफाई मित्र कहा जाता है) के