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विकास के पथ पर अग्रसर छत्तीसगढ़


-अनामिका
कोई यकीन ही नहीं कर सकता कि यह वही छत्तीसगढ़ है जहां के लोग कभी विकास के लिये तरसते थे।  किसी को इस बात का यकिन दिलाना भी आसान नहीं है कि यही वह छत्तीसगढ़ है जिसने महज डेढ़ दशक के सफर में चौतरफा विकास किया है। विकास भी ऐसा जो लोकलुभावन न होकर छत्तीसगढ़ की जमीन को मजबूत करता दिखता है। एक नवम्बर सन् 2000 में जब समय करवट ले रहा था तब छत्तीसगढ़ का भाग्योदय हुआ था। साढ़े तीन दशक से अधिक समय से स्वतंत्र अस्तित्व की मांग करते छत्तीसगढ़ के लिये तारीख वरदान साबित हुआ। हालांकि छत्तीसगढ़ राज्य बन जाने के बाद भी कुछ विश्वास और असमंजस की स्थिति खत्म नहींं हुई थी। इस अविश्वास को तब बल मिला जब तीन वर्ष गुजर जाने के बाद भी छत्तीसगढ़ के विकास का ब्लूप्रिंट तैयार नही हो सका था। कुछेक को स्वतंत्र राज्य बन जाने का अफसोस था लेकिन 2003 में भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने सत्ता सम्हाली और छत्तीसगढ़ के विकास का ब्लू प्रिंट सामने आया तो अविश्वास का धुंध छंट गया। लोगों में हिम्मत बंधी और सरकार को जनसमर्थन मिला। इस जनसमर्थन का परिणाम यह निकला कि आज छत्तीसगढ़ अपने चौतरफा विकास के कारण देश के नक्शे में अलग से पहचान बनाने में कामयाब हुआ है।
छत्तीसगढ़ पर प्रकृति की मेहरबानी रही है। हर तरह की खनिज सम्पदा छत्तीसगढ़ के आंचल में है और मेहतनकश लोगों की यह धरती अपने विकास का रास्ता स्वयं बनाती चलती है। भूख, गरीबी, अशिक्षा और शोषण के शिकार लोगों को उनके खेवनहार के रूप में मुख्यमंत्री डॉ. रमनसिंह की सरपरस्ती मिली। समय के साथ छत्तीसगढ़ ने विकास की पीेंगे भरी तो पलायन जैसे शब्दों से खुद को मुक्त कर लिया। मुख्यमंत्री डा. रमनसिंह ने सभी को भोजन का अधिकार देने की घोषणा की थी और एक ऐसे खाद्यान्न वितरण व्यवस्था बनायी कि लोगों को आसानी से अन्न मिलने लगा। एक रुपये किलो चांवल ने गरीब जनता की कायापलट कर दी। यही नहीं, हर हाथ को काम देकर उन्हें आर्थिक विपन्नता से मुक्त कराया। सरकार के प्रयासों का सुफल यह रहा कि पेट के खातिर दर-बदर भटकते लोगों ने अपनी ही जमीन को अपनी मंजिल बना लिया। आज छत्तीसगढ़ में पलायन बीते जमाने की बात हो गई है। छत्तीसगढ़ सचमुच में धान का कटोरा बन चुका है।  मानव जीवन के लिए तीन मूलभूत आवश्यकताओं-रोटी, कपड़ा और मकान में रोटी अर्थात भोजन सबसे ऊपर है। छत्तीसगढ़ अपनी जनता को भोजन का कानूनी अधिकार देने वाला देश का पहला राज्य है। यहां खाद्य सुरक्षा और पोषण सुरक्षा कानून सितम्बर 2013 से लागू है। कानून के तहत प्रदेश की लगभग 91 प्रतिशत आबादी को इसके के दायरे में लिया गया है। छत्तीसगढ़ देश का पहला राज्य है, जिसने दिसम्बर 2012 में विधानसभा में शीतकालीन सत्र में खाद्य एवं पोषण सुरक्षा अधिनियम पारित कर प्रदेश के नागरिकों को भोजन का कानूनी अधिकार दिया है। 
अंत्योदय कार्ड के लिए छत्तीसगढ़ की विशेष पिछड़ी जनजातियों-बैगा, बिरहोर, पहाड़ी कोरवा, कमार और अबूझमाडिय़ा के सभी परिवारों, ऐसे परिवार जिनके मुखिया एकल महिला है अथवा नि:शक्त है अथवा गंभीर और लाईलाज बीमारी जैसे-एड्स, सिकलसेल एनीमिया, कैंसर, टी.बी. आदि रोग से पीडि़त है, ऐसे परिवार जिनके मुखिया वृद्ध और निराश्रित है तथा ऐसे परिवार जिनके मुखिया विमुक्त बंधुआ मजदूर हैं, को अंत्योदय में शामिल किया गया है। राज्य के सभी भूमिहीन मजदूर परिवार, पांच एकड़ तक के भूमिस्वामी सीमांत और लघु किसान परिवार, असंगठित क्षेत्र के श्रमिक जैसे-नाई, मोची, बढ़ई, धोबी, रिक्शा-ढेला चलाने वालों के परिवार, भवन निर्माण कार्य में संलग्न रेजा-कुली, मिस्त्री आदि श्रमिकों के सभी परिवारों को प्राथमिकता वाले समूह में शामिल किया गया है। इस प्रकार प्रदेश की लगभग 91 प्रतिशत आबादी को खाद्य सुरक्षा और पोषण सुरक्षा कानून का लाभ मिल रहा है। यह भी उल्लेखनीय होगा कि केन्द्र सरकार ने भी राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 बनाया है, जो राज्य में जनवरी 2014 से लागू है। केन्द्र के कानून में छत्तीसगढ़ के 78.43 प्रतिशत आबादी (दो करोड़ जनसंख्या) को रियायती दर पर अनाज के लिए पात्र माना गया है, जबकि छत्तीसगढ़ के खाद्य सुरक्षा कानून में 91 प्रतिशत आबादी (दो करोड़ 32 लाख जनसंख्या) को लाभ देने का प्रावधान किया गया है।
किसानी को लाभ का व्यवसाय बनाने की दिशा में अनेक कदम उठाये गये हैं जिसमें कृषक जीवन ज्योति योजना के अंतर्गत किसानों को पांच हार्स पावर तक के सिंचाई पम्पों के लिए 100 रूपए प्रति हार्स पावर, प्रति माह फ्लेट दर पर भुुगतान की सुविधा दी गई है। यही नहीं, किसान भाई-बहनों को खरीफ विपणन वर्ष 2012-13 में धान पर एक वर्ष में लगभग 11 हजार करोड़ रुपये मिले हैं। लगभग 2 हजार करोड़ रूपए तो बोनस के रूप में दिए गए हैं। हर साल धान का बोनस देने का निर्णय लिया गया है। विगत 9 वर्षों में किसान भाइयों से 4 करोड़ 24 लाख मीट्रिक टन धान खरीदा और बोनस को मिलाकर लगभग 43 हजार करोड़ रुपये का भुगतान। किसानों को सस्ते दर पर ऋण सुविधायें अलग से दी गई हैं।
छत्तीसगढ़ देश में इकलौता राज्य है जहां बिजली कोई कमी नहीं है। अकूत बिजली उत्पादन करने वाले छत्तीसगढ़ का कोना कोना रोशनी से जगमगा रहा है तो देश के दूसरे राज्यों का अंधेरा मिटाने में छत्तीसगढ़ का सहयोग बड़ा है। छत्तीसगढ़ की बिजली देश के विभिन्न राज्यों के साथ देश की सीमाओं के बाहर स्थित पड़ोसी देश नेपाल में भी उजियारा बिखेर रही है। पावर ट्रेडिंग कार्पोरेशन के माध्यम से नेपाल छत्तीसगढ़ से तीस मेगावाट बिजली ले रहा है। मध्यप्रदेश को तीन सौ मेगावाट बिजली दी जा रही है। वहीं केरल भी छत्तीसगढ़ से एक सौ मेगावाट बिजली ले रहा है।  तेलंगाना राज्य छत्तीसगढ़ से एक हजार मेगावाट बिजली खरीदने का इच्छुक है।  नया राज्य बनने के बाद छत्तीसगढ़ राज्य बिजली कंपनी के उत्पादन संयंत्रों की क्षमता में जहां 1064.70 मेगावाट की बढ़ोतरी हुई है। वहीं एक अनुमान के मुताबिक छत्तीसगढ़ के निजी बिजली घरों में अगले 3-4 महीनों में करीब चार हजार मेगावाट बिजली का उत्पादन शुरू होगा। निजी कंपनियों और राज्य शासन तथा छत्तीसगढ़ पावर कंपनी के मध्य हुए एम.ओ.यू. की शर्तों के अनुसार ये निजी कंपनियां अपनी बिजली उत्पादन क्षमता की साढ़े सात प्रतिशत बिजली लागत मूल्य पर छत्तीसगढ़ पावर कंपनी को देंगी और कुल उत्पादन क्षमता की तीस प्रतिशत बिजली पर पहला अधिकार छत्तीसगढ़ सरकार का होगा। निजी बिजली घरों में उत्पादन शुरू होने का लाभ छत्तीसगढ़ सहित देश के दूसरे राज्यों को भी मिलेगा।
सूचना प्रौद्योगिकी के उपयोग में देश का अग्रणी राज्य-छत्तीसगढ़ में देश की सबसे बड़ी ओपन सोर्स पर आधारित सूचना प्रौद्योगिकी परियोजना चॉईस क्रियान्वित की जा रही है। चॉईस देश की पहली परियोजना है, जिसके तहत आम जनता को चॉईस सेंटर के माध्यम से नागरिक सेवाएं प्रदान की जा रही है। छत्तीसगढ़ ई-प्रोक्योरमेंट लागू करने वाला देश का दूसरा राज्य है।  राज्य सरकार के विभिन्न योजनाओं का लाभ यथा समर्थन मूल्य पर धान खरीदी, सार्वजनिक वितरण प्रणाली आदि प्रमुख है। सूचना प्रौद्योगिकी की पहुंच गांव-गांव तक सुनिश्चित करने के लिए स्टेट वाइड एरिया नेटवर्क तैयार किया जा रहा है। राज्य के 3800 सरकारी कार्यालय नेटवर्क से जुड़े। इन सारी योजनाओं का लाभ अब आम नागरिकों को मिलने लगा है।
बुजुर्गों के लिये मुख्यमंत्री तीर्थ यात्रा योजना वरदान साबित हुई है। राज्य के गरीबी रेखा श्रेणी के 60 वर्ष तथा उससे अधिक उम्र के 20 हजार बुजुर्गों को प्रथम चरण में 20 हजार बुजुर्गों को सरकारी खर्च पर तीर्थयात्रा में भेजने का लक्ष्य है। योजना के तहत राज्य में 60 वर्ष तथा उससे अधिक उम्र के शारीरिक रूप से सक्षम वरिष्ठ नागरिकों को उनके जीवन काल में एक बार प्रदेश के बाहर स्थित सोलह तीर्थ समूहों में से एक या एक से अधिक तीर्थों की सामूहिक यात्रा शासकीय सहायता से करायी जाएगी। इनमें अस्सी प्रतिशत नागरिक बी.पी.एल. अंत्योदय और मुख्यमंत्री खाद्यान्न सहायता योजना के हितग्राही होंगे। शेष बीस प्रतिशत हितग्राही गरीबी रेखा के ऊपर के ऐसे वरिष्ठ नागरिक होंगे, जो आयकर दाता नहीं हो। योजना के तहत ग्रामीण क्षेत्रों से 75 प्रतिशत और शहरी क्षेत्रों से 25 प्रतिशत हितग्राहियों का चयन किया जाएगा। 
कुपोषण देश की सबसे बड़ी समस्या बन चुकी है लेकिन छत्तीसगढ़ में यह नियंत्रण में है। राज्य शासन के महिला एवं बाल विकास विभाग के साथ राज्य के महिला समूहों और महिलाओं की सक्रियता तथा जागरूकता का ही परिणाम है कि  छत्तीसगढ़ में वजन त्यौहार के आंकड़ों के अनुसार बच्चों में कुपोषण का स्तर घटकर अब 38 प्रतिशत ही रह गया,जबकि वर्ष 2005-06 में यहां लगभग 52 प्रतिशत बच्चे कुपोषित थे। महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा के लिए राज्य में महिलाओं का कार्यस्थल पर लैगिंक उत्पीडऩ (निवारण प्रतिशेध और प्रतितोश) अधिनियम 2013, लैगिक अपराधों से बच्चों के संरक्षण के कानून, घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण कानून और छत्तीसगढ़ टोनही प्रताडऩा निवारण अधिनियम-2005 लागू है। उल्लेखनीय है कि छत्तीसगढ़ पहला राज्य है जहां महिला एवं बाल विकास विभाग में महिलाओं को प्राथमिकता से नियुक्त किया गया है। 
इस तरह छत्तीसगढ़ राज्य लगातार विकास के पथ पर आगे ही आगे बढ़ता जा रहा है।  शिक्षा के क्षेत्र में सरकार की पहल से आदिवासी बच्चों ने पूरी दुनिया को अपनी प्रतिभा से चमत्कृत कर दिखाया है। राज्य के पर्यटन क्षेत्र अब देश को ही नहीं, दुनिया को लुभाने लगे हैं। पर्यटकों की रूचि को देखते हुये राज्य शासन अधिकाधिक सुविधायें दे रही हैं। पूरी दुनिया में छत्तीसगढ़ अब एक पिछड़ा और बीमारू राज्य नहीं बल्कि विकसित और नवाचार वाला राज्य बन चुका है।

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