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स्वाधीनता संघर्ष की महक छत्तीसगढ़ की मिट्टी में


-मनोज कुमार
हिन्दुस्तान के स्वाधीनता संग्राम में छत्तीसगढ़ के अतुलनीय योगदान की महक छत्तीसगढ़ की मिट्टी में आज भी रची-बसी है. 66 बरस हो गये हिन्दुस्तान को आजाद हुये और इन बरसों में छत्तीसगढ़ विकास के पथ पर दौड़ पड़ा है. इस दौड़ में वह अपने सुनहरे अतीत को हमेशा साथ लेकर चला है. यही कारण है कि छत्तीसगढ़ के वीर सपूतों का स्मरण समय समय पर किया जाता रहा है. यह छत्तीसगढ़ की मिट्टी का ही प्रताप है कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के पुण्य कदम इस धरती पर पड़े और उन्हें यहां एक और गांधी मिला जिसे दुनिया ने पंडित सुंदरलाल शर्मा के नाम से जाना. गांधीजी के अछूतोद्धार अभियान में साथ निकल पड़े पंडित सुंदरलाल शर्मा के कार्यों ने गांधीजी को मोहित कर दिया था. स्वाधीनता संग्राम के सुनहरे पन्नों पर यादों की ऐसी श्रृंखला है जिसके स्मरण मात्र से ही शरीर रोमांच से भर जाता है. शहीद वीर नारायण सिंह ने अंग्रेजों को नाको चने चबवा दिये थे. जिस साहस का परिचय वीर नारायण सिंह ने दिया, वह इतिहास के सुनहरे पन्नों पर दर्ज हो गया. नाकाम अंग्रेजों को वीर नारायणसिंह से दो दो हाथ करने का साहस नहीं था इसलिये उन्हें वीर नारायण को धोखे से गिरफ्त में लेकर फांसी पर लटकाया जाना ही एकमात्र श्रेयस्कर रास्ता सूझा. अंग्रेजों की यह कायराना हरकतें पूरे देश में देखने को मिल रही थी. अंग्रेजों ने झूठे मामले गढ़ कर वीर नारायणसिंह को फांसी के तख्ते पर लटका दिया। वीर नारायणसिंह शहीद होकर छत्तीसगढ़ की भूमि को गौरवांवित कर गये।

छत्तीसगढ़ की मिट्टी के जनपदीय इलाकों में ही वीरों की गाथा नहीं है बल्कि छत्तीसगढ़ अंचल के जंगलों से भी अंग्रेजों के खिलाफ आग जल उठी थी. घनघोर बस्तर के जंगलों से अदम्य साहसी गुंडाधूर ने वीरता का परिचय देकर अंग्रेजों के खिलाफ हल्ला बोल दिया था. गुंडाधूर अकेले नहीं था बल्कि जंगलों में रहने वाले भूमिपुत्रों की बड़ी फौज थी जिसकी अगुवाई गुंडाधूर ने की थी. गुंडाधूर उन्हीं आदिवासी नायकों में एक था जैसे देश के अन्य हिस्सों में ट्ंटया भील, खाज्या नायक आदि-इत्यादि. अंग्रेजों को चुनौती देते और घने जंगलों में गुम हो जाते इन वीरों को ढूंढना अंग्रेजों के लिये टेढ़ी खीर था. यह कम हैरतअंगेज बात नहीं है कि शिक्षा से कोसों दूर इन वीरों को भी अपने वतन की उतनी ही चिंता थी जितना कि अंग्रेज जुल्म से बाखबर जनपदीय वीरों को.  जन और जंगल अंग्रेजों के खिलाफ खड़े थे और अंग्रेज अपने आपको बेबस और मजबूर महसूस कर रहे थे. आजादी के लिये घर-घर और गांव गांव मशाल जल उठी थी. क्या पुरूष, क्या स्त्री और क्या बच्चे, सब देश के लिये कुर्बान होने घर से निकल पड़े थे. 

छत्तीसगढ़ में आजादी का अलख जगाने वालों की सूची बड़ी है। छत्तीसगढ़ में अखबारों ने भी स्वाधीनता आंदोलन को अपनी आवाज दी है। अंचल का प्रमुख समाचार पत्र अग्रदूत की पहचान ही स्वाधीनता संग्राम से रही है। अंग्रेजों को हमेशा भयाक्रांत करने वाले इस अखबार को अनेक दफा अंग्रेजी शासकों के दमन का शिकार होना पड़ा। अखबार का प्रकाशन कई बार बाधित हुआ। आर्थिक रूप से नुकसान भी समाचार पत्र को उठाना पड़ा। यहां तक कि पत्र के सम्पादकों को जेल तक जाना पड़ा लेकिन इन सबके बावजूद अभिव्यक्ति का गला घोंटने में अंग्रेजी शासन नाकाम रही। लोगों को जागृत करने, आंदोलन की सूचना पहुंचाने और देश को पराधीनता की बेडियों से मुक्त करने में इस अखबार ने अपना सर्वस्व न्यौछावर करने में कदम पीछे नहीं खींचे। इस प्रकार स्वाधीनता संग्राम में छत्तीसगढ़ का योगदान अमूल्य है। स्वाधीनता संग्राम में अलख जगाने और आंदोलन को तेज करने में समूचा छत्तीसगढ़ आगे था। स्वाधीनता संग्राम में छत्तीसगढ़ का योगदान अमूल्य है, अविस्मरणीय है।

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