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एक रिपोर्टर के रोमांचक अनुभव का दस्तावेज है किताब ‘ऑंखों देखी फॉंसी’


भोपाल। किताब ‘ऑंखों देखी फॉंसी’ एक रिपोर्टर के रोमांचक अनुभव का दस्तावेज है. किसी पत्रकार के लिये यह अनुभव बिरला है तो संभवत: हिन्दी पत्रकारिता में यह दुर्लभ रिपोर्टिंग. लगभग पैंतीस वर्ष बाद एक दुर्लभ रिपोर्टिंग जब किताब के रूप में पाठकों के हाथ में आती है तो पीढिय़ों का अंतर आ चुका होता है. बावजूद इसके रोमांच उतना ही बना हुआ होता है जितना कि पैंतीस साल पहले. एक रिपोर्टर के रोमांचक अनुभव का दस्तावेज के रूप में प्रकाशित किताब ‘ऑंखों देखी फॉंसी’ हिन्दी पत्रकारिता को समृद्ध बनाती है. देश के ख्यातनाम पत्रकार एवं राजनीतिक विश£ेषक के रूप में स्थापित श्री गिरिजाशंकर की बहुप्रतीक्षित किताब का विमोचन भोपाल में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराजसिंह चौहान ने 25 अप्रेल 2015 को एक आत्मीय आयोजन में किया. इस अवसर पर कार्यक्रम में वरिष्ठ सम्पादक श्री श्रवण गर्ग भी उपस्थित थे.
किताब लोकापर्ण समारोह में मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने कहा कि उनके लिये यह चौंकाने वाली सूचना थी कि फांसी की आंखों देखा हाल कव्हरेज किया गया हो. वे अपने उद्बबोधन में कहते हैं कि किताब को पढऩे के बाद लगा कि समाज के लिये बेहद जरूरी किताब है. वे कहते हैं कि फांसी के मानवीय पहलुओं को लेखक ने बड़ी गंभीरता से उठाया है. उनका कहना था कि गिरिजा भइया जितने सहज और सरल हैं और उतने ही संकोची भी बल्कि वे भारतीय संस्कृति के प्रतीक हैं जो थोड़े में संतोष कर लेते हैं. 
किताब लोकापर्ण समारोह की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ सम्पादक श्री श्रवण गर्ग ने कहा कि-यह किताब रिपोर्टिंग का अद्भुत उदाहरण है. एक 25 बरस के नौजवान पत्रकार की यह रिपोर्टिंग हिन्दी पत्रकारिता के लिये नजीर है. उन्होंने किताब में उल्लेखित कुछ अंश को पढक़र सुनाया तथा कहा कि आज तो हर अपराध पर फांसी दिये जाने की मांग की जाती है. फांसी कभी दुर्लभ घटना हुआ करती थी लेकिन आज वह सार्वजनिक हो चुका है. उन्होंने दिल्ली में किसान गजेन्द्रसिंह द्वारा लगाये जाने वाले फांसी के संदर्भ में अपनी बात कही.
किताब लोकार्पण समारोह में लेखक श्री गिरिजाशंकर ने अपने अनुभव उपस्थित मेहमानों के साथ साझा करते हुये कहा कि यह किताब कोई शोध नहीं है और न कोई बड़ी किताब, लाईव कव्हरेज एवं अनुभवों को पुस्तक के रूप में लिखा गया है. श्री गिरिजाशंकर कहते हैं कि 25 बरस की उम्र में जब मुझे फांसी का लाइव कव्हरेज करने का अवसर मिला था, तब यह इल्म नहीं था कि कौन सा दुर्लभ काम करने जा रहे हैं. अखबार में फांसी का लाइव कव्हरेज प्रकाशित हो जाने के बाद जब देशभर में यह रिपोर्टिंग चर्चा का विषय बनी तब अहसास हुआ कि यह रिपोर्टिंग साधारण नहीं थी. 
फांसी की रिपोर्टिंग की यह दुर्लभ घटना हिन्दी पत्रकारिता के लिये स्वर्णकाल है. उल्लेखनीय है कि वर्तमान छत्तीसगढ़ राज्य की राजधानी रायपुर के सेंट्रल जेल में वर्ष 1978 में बैजू नामक अपराधी को चार हत्याओं के लिये फांसी की सजा दी गई थी.

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