यह बात किसी से छिपी हुई नहीं है कि आज पत्रकारिता करना कितना कठिन कार्य है. बाहरी दबाव की बात ना भी करें तो संस्थान के भीतर मैनेजमेंट का दबाव इतना होता है कि हम निर्भिक होकर अपनी बात नहीं कह पाते हैं. ऐसे में स्वतंत्र रूप से लेखन एक माध्यम बच जाता है जहां हम अपने मन की बात कर सकते हैं. अपने लिखे को समाज तक पहुंचाने का संकट बड़ा है तो समाधान भी छोटा नहीं है. आज मीडिया केन्द्रित अनेक वेबसाइट्स है जहां आपके लेख प्रकाशित होते हैं. ब्लॉग लेखन इसी का एक हिस्सा है. लेकिन इसके लिए जरूरी है कि हम नियमित रूप से लिखें.
यह किताब नहीं है और ना ही किसी किस्म का दस्तावेजीकरण अपितु यह मेरे लेखों का संकलन मात्र है. यह किताब पत्रकारिता की नयी पीढ़ी के लिए काम आएगी, ऐसा मेरा विश्वास है.