बुधवार, 23 अप्रैल 2025

#पंचायतों में आत्मनिर्भर होती महिलाएं


 







राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस पर 24 अप्रैल पर विशेष

पंचायतों में आत्मनिर्भर होती महिलाएं

मनोज कुमार

 73वें संशोधन के बाद पंचायती राज व्यवस्था में जो कमियां-खामियां थी, उसे दूर करने का प्रयास किया गया है और इस प्रयास के जरिए गाँधी के ग्राम स्वराज का स्वप्र मध्यप्रदेश की धरती पर सच होता नजर आ रहा है. इस संशोधन को लागू करने वाला मध्यप्रदेश पहला राज्य था. आहिस्ता-आहिस्ता पंचायत की सत्ता में स्त्रियों की भागीदारी बढ़ायी गई. यही वजह है कि मध्यप्रदेश की स्त्री अब अधिकार सम्पन्न और आत्मनिर्भर हो चली हैं. स्वयं सहायता समूह ने पंचायतों की व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन कर दिया है. अब गाँव की स्त्रियां आर्थिक रूप से मजबूत ही नहीं हैं बल्कि वे जागरूक भी हैं और समाज को जगा भी रही हैं. मध्यप्रदेश के गाँव-गाँव में स्व सहायता समूह अलख जगा रही हैं. स्त्रियों को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में सरकार के प्रयासों ने सार्थक भूमिका निभायी है. हालांकि यह कहना पूरी तरह सही नहीं होगा कि स्त्रियों  की सत्ता में स्वतंत्र भूमिका है. आज भी सरपंच पति जैसी घटनाएं आम है. पंचायत सत्ता की इस कमी को समझते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सरपंच पति की व्यवस्था को जड़ से खत्म करने का आह्वान किया है. 

उल्लेखनीय है कि पंचायती राज व्यवस्था अनादिकाल से भारतीय समाज में लागू रहा है लेकिन अंग्रेजी शासन ने हमारी इस व्यवस्था को कमजोर करने का प्रयास किया. सबसे पहले पंचायतों को आर्थिक रूप से सुनियोजित ढंग से कमजोर किया गया और उसे आत्मनिर्भर बनने से रोका गया. देश के आजाद होने के बाद पंचायती राज व्यवस्था को सुदृढ़ और परिणामदायी बनाने के लिए अनेक स्तर पर कोशिश की गई. 1992 में पंचायती राज व्यवस्था में 73वां संशोधन कर अनेक स्तर पर पंचायती राज व्यवस्था को मजबूत करने का प्रावधान किया गया. मध्यप्रदेश ने सर्वप्रथम इस संशोधन को लागू कर देश का पहला प्रदेश बना. यही नहीं पंचायती राज व्यवस्था में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई. गाँधी जी का कहना है कि प्रत्येक गाँव को एक आत्मनिर्भर स्वायत्त इकाई के रूप में स्थापित करना ही ग्राम स्वराज की अवधारणा का मुख्य लक्ष्य है. गांधी जी के अनुसार ग्राम स्वराज का वास्तविक अर्थ आत्मबल से परिपूर्ण होना है. स्वयं के उपयोग के लिए स्वयं का उत्पादन, शिक्षा और आर्थिक संपन्नता से है.

गाँधीजी ग्रामवासियों को आत्मनिर्भर बनाना चाहते थे, शिक्षा को बढ़ावा देना चाहते थे, समाज से जातपात मिटा कर हर तबके के लोगों को मुख्यधारा में लाना चाहते थे. वे ग्रामीणों में स्व-चेतना के विकास के लिए नाटकशाला एवं सभाशाला भी खोलते हैं और मनुष्यों में स्व की चेतना जागृत करते हैं. ‘हिंदे-स्वराज’ की कल्पना ‘ग्राम-स्वराज’ का पर्याय बन जाता है. वे लिखते हैं- ग्राम स्वराज की मेरी कल्पना यह है कि वह एक ऐसा पूर्ण प्रजातंत्र होगा जो अपनी अहम जरूरतों के लिए अपने पड़ोसी पर निर्भर नहीं करेगा. वह परस्पर सहयोग से काम लेगा. हर गाँव में अपनी एक नाटकशाला, पाठशाला और सभाभवन रहेगा. बुनियादी तालीम के आखिरी दर्जे तक शिक्षा सबके लिए लाजमी होगी. जातपात और क्रमागत अस्पृश्यता के जैसे भेद आज हमारे समाज में पाए जाते हैं वैसे इस ग्राम समाज में बिल्कुल नहीं होंगे. गाँधीजी की दृष्टि से ग्राम स्वराज में आर्थिक व्यवस्था ही आदर्श नहीं, अपितु सामाजिक व्यवस्था का भी महत्व है. इसलिए वे सभी सामाजिक बुराइयों को दूर करने का प्रयास करते हैं. वे बताते हैं कि जब तक मनुष्य की सोच, चरित्र एवं कर्म शुद्ध नहीं हो जाए तब तक उसका सर्वांगीण विकास संभव नहीं है. वह मद्यपान निषेध पर जोर देते हैं तथा समाज से जातिवाद, छुआछूत आदि को खत्म करना चाहते हैं.  गाँधीवादी आदर्श सिर्फ कोरे आदर्श पर नहीं बल्कि यथार्थ और व्यावहारिक है और 73वें संशोधन में ग्राम स्वराज के स्वप्र को सच होते हुए दिख रहा है.

मोदी सरकार भी गाँधीजी के ग्राम स्वराज के सपनों को साकार करने के लिए संकल्पित है. सच तो यह है कि पूरा समाज मिलकर आत्मनिर्भर बनने की दिशा में चल पड़े और इसका एक ही विकल्प है गाँवों को आत्मनिर्भर बनाना. गाँधीजी स्वयं मानते थे कि औद्योगिकरण बुरा नहीं है लेकिन सब कुछ उस पर ही निर्भर हो जाना बुरा है. केन्द्र सरकार की विभिन्न योजनाएँ हैं जिसमें कुटीर उद्योगों को बढ़ावा दिया जा रहा है. निश्चित रूप से यह गाँधी विचार को विस्तार देने का ही प्रयास है. हम मानकर चलते हैं कि गाँधी का रास्ता ही अंतिम रास्ता है जिस पर चलकर हम आत्मनिर्भर बन सकते हैं. हालाँकि व्यवहार रूप में कई समस्या देखने में आयी. महिला तो निर्वाचित हो गईं लेकिन पंचायत की बागडोर घर के पुरुष के हाथों में रही. आर्थिक रूप से सम्पन्न लोगों द्वारा पंचायतों पर कब्जा जमाने की खबरें भी आती रही हैं. बावजूद इसके स्थितियाँ बदल रही है. 

पंचायत की सत्ता में महिलाओं की भागीदारी महज स्वप्र था. घूंघट में चेहरा छिपाये महिलाओं के बारे में कभी यह सोचा भी नहीं गया कि वे घर की देहरी पार कर पंचायत की सत्ता सम्हालेंगी. लेकिन अब यह स्वप्र नहीं, सच है और महिलाएं ना केवल गाँव की सत्ता सम्हाल रही हैं बल्कि गाँव की आर्थिक और सामाजिक स्थितियों को मजबूत बना रही हैं. मोहन सरकार और पंचायत मंत्री ने महिलाओं की सत्ता में रोड़े डालने वाले लोगों पर नकेल डालकर महिलाओं की सत्ता को आसान कर दिया है. यही नहीं, स्व सहायता समूह के माध्यम से महिलाओं को विभिन्न टे्रड में ट्रेंड किया जा रहा है. बैंकिंग जैसे दुरूह कार्य को इतना आसान बना दिया गया है कि महिलाओं के हाथों में लेपटॉप है और वे खाता खुलवाने से लेकर पैसा निकासी तक का सारा काम चुटकियों में कर रही हैं. कुछ तकनीकी कार्य बिजली मीटर रीडिंग हो या छिटपुट इलेक्ट्रिक मरम्मत का काम भी वे करने लगी हैं. सरकार ने नियम बना दिए हैं कि स्कूल गणवेश का पूरा काम अब स्व सहायता समूह को दिया जाएगा. सरकार के इस फैसले से उन्हें पर्याप्त काम मिल रहा है और गुणवत्ता पूर्ण बेहद रियायती दरों में कार्य पूर्ण हो रहा है. खान-पान की दुनिया में स्व सहायता समूह की धमक है. अचार, पापड़ के साथ ही जैविक पदार्थों में उनका पूरा हस्तक्षेप है. 

स्व सहायता समूह आर्थिक रूप से सम्पन्न होने के कारण अपनी जरूरतों के अब किसी साहूकार के पास हाथ महिलाओं को हाथ नहीं पसारना पड़ता है. वे आपस में ही अपनी जरूरत के अनुरूप राशि का आहरण कर लेती हैं और सुविधानुसार समय पर राशि वापस भी कर देती हैं. स्व सहायता समूह की महिलाओं ने इतिहास रच दिया है. बच्चों को अपने मन मुताबिक पढ़ाई करा रही हैं. एक दाग सरपंच पति का था, अब वह भी आहिस्ता आहिस्ता दूर हो रहा है. सरकारी डंडे और महिलाओं के जागरूक हो जाने के कारण पति खुद ही सत्ता से दूर हो रहे हैं. इक्का-दुक्का घटनाएं सामने आ रही हैं लेकिन कानूनी कार्रवाई के चलते दूसरी पंचायतों में स्थितियां सुधर रही हैं. स्व सहायता समूह की महिलाओं के प्रयासों से बाल विवाह के साथ ही अन्य सामाजिक कुरीतियों पर नियंत्रण लगा है. पंचायती राज व्यवस्था का चेहरा बदल रहा है और खासतौर पर महात्मा गाँधी के सपनों के अनुरूप लघु एवं कुटीर उद्योगों को बढ़ावा मिल रहा है. गाँधीजी चाहते थे कि महिलाएं आत्मनिर्भर हों और आर्थिक रूप से, शैक्षिक रूप से सशक्त बनें तो आज मध्यप्रदेश में उनका सपना सच हो रहा है. Photo by Google

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