सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

आज़ादी की कहानी

राजेश राय

भारत वर्ष १५ अगस्त १९४७ को गोरे शासकों से मुक्त होकर स्वतंत्रता का गीत गा रहा था और उस वक्त भी भोपाल रियासत के वाशिंदें मुक्त नहीं हो पाये थे। भोपाल की परतंत्रता तत्कालीन नवाब हमीदुल्ला खां के उस फैसले से हुआ था जिसमें उन्होंने अपनी रियासत का विलय से इंकार कर दिया था। यह वह समय है जब भोपाल रियासत की सरहद में वर्तमान सीहोर व रायसेन जिला भी शामिल था। लम्बे जद्दोजहद के दो साल बाद ३० अप्रेल १९४९ को भोपाल रियासत का विलय होने के साथ ही वह स्वतंत्र भारत का अभिन्न अंग बन गया। १ मई १९४९ को भोपाल में पहली दफा तिरंगा लहराया था। इस दिन भाई रतनकुमार गुप्ता ने पहली दफा झंडावदन किया। यहां उल्लेखनीय है कि १५ अगस्त १९४७ को भोपाल सहित जूनागढ़, कश्मीर, हैदराबाद और पटिलाया रियासत ने भी विलय से इंकार कर दिया था। भोपाल नवाब चेम्बर ऑफ प्रिंसेस के अध्यक्ष थे। उस समय जब पूरा देश स्वतंत्र होने का जश्न मना रहा था तब भोपाल रियासत में खामोशी छायी हुई थी। आजादी नहीं मिल पाने के कारण अगले वर्ष १९४८ को भी भोपाल में खामोशी छायी हुई थी। नवम्बर १९४८ में विलनीकरण आंदोलन का आरंभ हुआ और जिसकी कमान भाई रतनकुमार ने सम्हाली थी। उनके साथ जिन लोगों ने विलनीकरण के समर्थन में आगे आये उनमें डॉ. शंकरदयाल शर्मा, खान शाकिर अली खान, मास्टरलाल सिंह, उद्धवदास मेहता, प्रोफसर अक्षय कुमार जैन, विचित्रकुमार सिन्हा, शांति देवी, मोहिनी देवी, रामचरण राय, तर्जी मशरिकी, गोविंद बाबू एवं भोगचंद कसेरा आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। भोपाल में चतुरनारायण मालवीय एवं मास्टर लालसिंह ने हिन्दू महासभा की स्थापना की थी। खान शाकिर अली खान ने अंजुमने खुद्दामे वतन का गठन किया था। विलनीकरण आंदोलन की कमान सम्हालने वाली उस समय की संस्थाओं में हिन्दू महासभा, आर्य समाज और प्रजा मंडल ने अपनी महती भूमिका निभायी। नवम्बर में आरंभ हुआ विलनीकरण आंदोलन अगले साल सन् १९४९ के फरवरी माह में एकदम भड़क उठा। लगभग चालीस दिनों तक भोपाल बंद रहा। जुलूस, धरना, प्रदर्शन और गिरफ्तारियां होती रहीं। विलनीकरण आंदोलन में महिलाओं की भूमिका भी उल्लेखनीय रही। पुरूषों की गिरफ्तारी के बाद महिलाओं ने मोर्चा सम्हाल लिया। महिलाओं के सामने आने के बाद तो विलनीकरण आंदोलन एक नये स्वरूप में दिखने लगा। उस समय सिर पर बांधे कफनवा हो शहीदों की टोली निकली लोगों में जोश जगा रहा था। भोपाल विलनीकरण आंदोलन में समाचार पत्रों की भी अहम भूमिका रही। पंडित माखनलाल चतुर्वेदी कर्मवीर छाप कर नि:शुल्क वितरण के लिये भिजवाते थे तो भाई रतनकुमार का समाचार पत्र नईराह ने विलनीकरण आंदोलन को नईदिशा, जोश और उत्साह से भर दिया था। विलनीकरण आंदोलन अहिंसक नहीं रहा। आंदोलन को दबाने के लिये कई स्तरों पर कोशिशें हुर्इं। अत्याचार किये गये और आखिरकार खून-खराबा भी हुआ। बरेली के बोरास गांव में हुए गोलीचालन में तीन आंदोलनकारी शहीद हो गये। इस गोलीबारी से भोपाल की जनता बेहद आहत हुई। नवाब हमीदुल्ला शायद विलनीकरण समझौते के लिये कभी राजी नहीं होते लेकिन हैदराबाद में हुई सैनिक कार्यवाही ने उनके हौसले पस्त कर दिये। वे भीतर ही भीतर डर गये थे। विलनीकरण आंदोलन भी अपने पूरे शबाब पर था। इसी बीच प्रजा मंडल के अध्यक्ष बालकृष्ण गुप्ता दिल्ली जाकर तत्कालीन गृहमंत्री वल्लभभाई पटेल से मुलाकात की और आग्रह किया कि वे नवाब हमीदुल्ला की अनुचित मांगों को न मांगा जाए। चौतरफा दबाव के सामने आखिरकार नवाब हमीदुल्ला ने विलनीकरण करार पर दस्तखत करने के लिये राजी हुए। केन्द्र सरकार के राज्य सेल के सचिव पी. मेनन और नवाब हमीदुल्ला खान ने समझौते पर दस्तखत किया। इस तरह स्वतंत्रता प्राप्ति के दो वर्ष बाद भोपाल को भी स्वतंत्रता मिल पायी थी।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

विकास के पथ पर अग्रसर छत्तीसगढ़

-अनामिका कोई यकीन ही नहीं कर सकता कि यह वही छत्तीसगढ़ है जहां के लोग कभी विकास के लिये तरसते थे।  किसी को इस बात का यकिन दिलाना भी आसान नहीं है कि यही वह छत्तीसगढ़ है जिसने महज डेढ़ दशक के सफर में चौतरफा विकास किया है। विकास भी ऐसा जो लोकलुभावन न होकर छत्तीसगढ़ की जमीन को मजबूत करता दिखता है। एक नवम्बर सन् 2000 में जब समय करवट ले रहा था तब छत्तीसगढ़ का भाग्योदय हुआ था। साढ़े तीन दशक से अधिक समय से स्वतंत्र अस्तित्व की मांग करते छत्तीसगढ़ के लिये तारीख वरदान साबित हुआ। हालांकि छत्तीसगढ़ राज्य बन जाने के बाद भी कुछ विश्वास और असमंजस की स्थिति खत्म नहींं हुई थी। इस अविश्वास को तब बल मिला जब तीन वर्ष गुजर जाने के बाद भी छत्तीसगढ़ के विकास का ब्लूप्रिंट तैयार नही हो सका था। कुछेक को स्वतंत्र राज्य बन जाने का अफसोस था लेकिन 2003 में भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने सत्ता सम्हाली और छत्तीसगढ़ के विकास का ब्लू प्रिंट सामने आया तो अविश्वास का धुंध छंट गया। लोगों में हिम्मत बंधी और सरकार को जनसमर्थन मिला। इस जनसमर्थन का परिणाम यह निकला कि आज छत्तीसगढ़ अपने चौतरफा विकास के कारण देश के नक्शे

शोध पत्रिका ‘समागम’ का नवीन अंक

  शोध पत्रिका ‘समागम’ का नवीन अंक                                       स्वाधीनता संग्राम और महात्मा गांधी पर केन्द्रीत है.                      गांधी की बड़ी यात्रा, आंदोलन एवं मध्यप्रदेश में                                          उनका हस्तक्षेप  केन्दि्रय विषय है.

टेक्नो फ्रेंडली संवाद से स्वच्छत

मनोज कुमार           देश के सबसे स्वच्छ शहर के रूप में जब इंदौर का बार-बार जिक्र करते हैं तो मध्यप्रदेश को अपने आप पर गर्व होता है, मध्यप्रदेश के कई शहर, छोटे जिलों को भी स्वच्छ भारत मिशन के लिए केन्द्र सरकार सम्मानित कर रही है. साल 2022 में मध्यप्रदेश ने देश के सबसे स्वच्छ राज्य का सम्मान प्राप्त किया। स्वच्छता का तमगा एक बार मिल सकता है लेकिन बार-बार मिले और वह अपनी पहचान कायम रखे, इसके लिए सतत रूप से निगरानी और संवाद की जरूरत होती है. कल्पना कीजिए कि मंडला से झाबुआ तक फैले मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में बैठकर कैसे निगरानी की जा सकती है? कैसे उन स्थानों में कार्य कर रही नगरपालिका,  नगर परिषद और नगर निगमों से संवाद बनाया जा सकता है? एकबारगी देखें तो काम मुश्किल है लेकिन ठान लें तो सब आसान है. और यह कहने-सुनने की बात नहीं है बल्कि प्रतिदिन मुख्यालय भोपाल में बैठे आला-अधिकारी मंडला हो, नीमच हो या झाबुआ, छोटे शहर हों या बड़े नगर निगम, सब स्थानों का निरीक्षण कर रहे हैं और वहां कार्य करने वाले अधिकारी-कर्मचारियों, सफाई मित्रों (मध्यप्रदेश में सफाई कर्मियों को अब सफाई मित्र कहा जाता है) के