प्रो. मनोज कुमार
मध्यप्रदेश के भौगोलिक गठन को लेकर निराश होता था. लगता था कि देश का ह्दयप्रदेश कहलाने वाले मध्यप्रदेश की कोई एक भाषा, एक संस्कृति नहीं है. यहाँ तक कि दो दशक पहले मध्यप्रदेश से अलग हुए छत्तीसगढ़ की भाषा छत्तीसगढ़ी है. लेकिन आज लग रहा है कि मेरा मध्यप्रदेश सचमुच में अनुपम है. अलग है और एक धडक़ते दिल की तरह वह भारत का प्रतिनिधि प्रदेश है. यहाँ भाषा और संस्कृति को लेकर कोई विवाद नहीं है. वह बाँहें पसारे खुले मन से सबका स्वागत कर रहा है. यह प्रदेश भावभूमि है. यहाँ देश के सभी प्रदेशों के भाषा-भाषी निवास करते हैं. उनकी संस्कृति और संस्कार को मध्यप्रदेश के रहने वाले स्वागत करते हैं. सच कहा जाए तो देश दिल मध्यप्रदेश भाषा और संस्कृति का राजदूत है. आज जब भाषा विवाद चरम पर है तब मध्यप्रदेश मुस्करा रहा है. शायद वह कह रहा है कि आओ, मुझसे सीखो कि भारत की बहुभाषी और संस्कृति को कैसे सम्मान दिया जाता है. पंडित नेहरू ने कभी मध्यप्रदेश को बेडौल प्रदेश कहा था लेकिन इसी बेडौल भू-भाग वाला मध्यप्रदेश भारत का आदर्श प्रदेश के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा है.
मध्यप्रदेश का मुआयना करें तो आपको कई रीजन मिलेंगे. इनमें मालवा, महाकोशल, विंध्य, बुुंदेलखंड, चंबल और कभी छत्तीसगढ़ भी इसका हिस्सा हुआ करता था. अपनी स्थापना के सात दशक बाद भी कभी यहाँ भाषा विवाद सुलगा नहीं और ना ही संस्कृति को लेकर कोई विवाद हुआ. बहुभाषी साहित्य को जितना बड़ा मंच मध्यप्रदेश में मिला, वह कहीं और नहीं. भारत के इस प्रतिनिधि प्रदेश में हर प्रदेश का स्वागत है. भरोसा ना हो तो एक बार भारत भवन के आयोजन का कैलेंडर उठा कर देख लीजिए. प्रतिवर्ष देश के सभी राज्यों की कलाओं का प्रदर्शन होता है, भागीदारी होती है. विविध भाषाओं के साहित्य पर चर्चा होती है. यही नहीं, मध्यप्रदेश की साहित्यिक सांस्कृतिक संगठन में हर भाषा को स्थान दिया गया है. मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद में मराठी, सिंधी, पंजाबी, भोजपुरी अकादमी है तो मध्यप्रदेश ने माँग की कि हम सिंधी की शिक्षा देंगे तो हाल ही में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल में इस पाठ्यक्रम की अनुमति मिल गई और जल्द ही औपचारिक शिक्षा भी शुरू हो जाएगी. देश के ह्दयप्रदेश का ह्दय हर प्रदेश के लिए धडक़ता है और यही कारण है कि मध्यप्रदेश राजभवन में एक-एक कर विभिन्न राज्यों का स्थापना दिवस उत्सव मनाया जाता है.
भारत देश बहुभाषी संस्कृति और साहित्य का देश है. भाषा और बोली की यह खूबसूरती है कि हम सब मिलकर सतरंगी दुनिया गढ़ते हैं. गर्व के साथ मैं कह सकता हूँ कि मध्यप्रदेश भारत की इस छवि का प्रतिनिधि प्रदेश है. राजदूत है जो शांति, समन्वय और सद्भाव के संदेश को भेजता है. राज्य सरकार के अथक कोशिश से मध्यप्रदेश में लगातार फिल्मों, टीवी सीरियल्स और ओटीटी प्लेटफार्म के लिए निर्माण हो रहा है. इमदाद और मदद दोनों फिल्ममेकर्स को मिल रहा है लेकिन परदे पर कहीं एक पंक्ति नहीं दिखता ‘धन्यवाद मध्यप्रदेश’, बावजूद इसके हम उनका हमेशा से स्वागत करने तिलक रोरी लिए खड़े होते हैं. वर्तमान सरकार तो पीले चावल लेकर प्रदेश-दर-प्रदेश जा रही है कि आइए, हमारे प्रदेश में उद्योग लगाइए. मध्यप्रदेश इतना कर रहा है लेकिन सवाल है कि क्या मध्यप्रदेश जैसी सुंदर, सुखद पहल कोई और कर रहा है? क्या हम सब भारत माता के लाल नहीं हैं? इस पर विचार करना जरूरी हो जाता है.
देश में छिड़ा भाषा विवाद नया नहीं है. समय-समय पर यह विवाद होता रहा है. इसमें सबसे अहम बात यह है कि भाषा का विरोध अर्थात हिन्दी का विरोध. हर प्रदेश की एक भाषा है और उसका सम्मान किया जाना चाहिए, इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती है. इसी बहुभाषी संस्कृति से भारत की विश्व में अलग पहचान है. भाषा विवाद के संकट बड़े हैं. वह ना केवल राष्ट्रीय एकता और संप्रुभता को संकट में डालता है बल्कि रोजी-रोजगार पर भी असर होता है. इस विवाद में एक उपाय यह भी हो सकता है कि आक्रामक होने के बजाय भाषा प्रशिक्षण केन्द्र हर राज्य में आरंभ कर दे. जिन्हें यह भाषा नहीं आती, उन्हें सीखने और समझने का अवसर दे. इससे शायद कोई रास्ता सुंदर निकल आए. रास्ता ना सही, एक पगडंडी तो मिल ही जाएगी. वैसे भी हिन्दी की खूबसूरती देखिए जिसका आप विरोध कर रहे हैं, वही आपको एक कर रही है