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शोध पत्रिका ‘समागम’ के प्रकाशन के 16 साल पूरे हुए जनवरी 2017 का अंक ‘महात्मा की पाठशाला’

शोध पत्रिका ‘समागम’ के प्रकाशन के 16 साल पूरे हुए
भोपाल। भारतीय समाज की ताकत नैतिक शिक्षा होती थी लेकिन शैक्षिक परिसरों में बाजार के प्रवेश के बाद नैतिक शिक्षा का लोप हो चुका है। आज आवश्यक हो गया है कि हम सब मिलकर प्राथमिक स्तर पर नैतिक शिक्षा को अनिवार्य करने पर जोर दें। समाज के इस ज्वलंत विषय को लेकर भोपाल से प्रकाशित शोध पत्रिका ‘समागम’ ने जनवरी 2017 का अंक ‘महात्मा की पाठशाला’ शीर्षक से प्रकाशित किया है। इस अंक के प्रकाशन के साथ ‘समागम’ ने अपने नियमित प्रकाशन के 16 साल भी पूरे कर लिए हैं।
मीडिया, सिनेमा एवं समाज पर केन्द्रित मासिक शोध पत्रिका ‘समागम’ ने अपने प्रकाशन के सतत 16 साल जनवरी 2017 में पूरा कर लिया है। इन सालों में ‘समागम’ बुद्धिजीवियों, शिक्षकों एवं शोधार्थी विद्यार्थियों के बीच लगातार लोकप्रिय बनती रही। इन सबका लेखकीय सहयोग से स्तरीय पत्रिका के रूप में ‘समागम’ की पहचान बनी रही। ‘समागम’ का हर अंक विशेषांक के रूप में होता है। 16 सालों में विविध विषयों पर ‘समागम’ के विशेष अंकों का प्रकाशन हुआ। नवम्बर 2016 में मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ विभाजन पर ‘समागम’ का विशेष अंक था तो दिसम्बर का अंक माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय भोपाल के रजत जयंती पर था। इसके पूर्व स्वच्छ भारत अभियान को केन्द्र में रखकर ‘समागम’ के दो अंक का प्रकाशन किया गया था। ‘समागम’ का जनवरी एवं अक्टूबर अंक महात्मा गांधी पर केन्द्रित होता है। जनवरी-2017 का अंक ‘महात्मा की पाठशाला’ पर केन्द्रित है। महात्मा की पाठशाला का अर्थ समाज में नैतिक शिक्षा के विलुप्त होने को समझाने की विनम्र कोशिश है। इसके पूर्व अक्टूबर माह का अंक महात्मा गांधी की स्वच्छता दृष्टि और भारत सरकार के स्वच्छता अभियान को लेकर विशिष्ट सामग्री का प्रकाशन किया गया था। 
शोध पत्रिका ‘समागम’ के सम्पादक एवं वरिष्ठ पत्रकार मनोज कुमार कहते हैं कि हमें यकीं ही नहीं होता कि हमने अपने प्रकाशन के 16 साल पूरे कर लिए हैं। यह हमारे लिए एक सपने के सच होने जैसा है। बेहद सीमित साधनों में इसका प्रकाशन किया जा रहा है। वे कहते हैं कि लेखों के लेखकों की तस्वीरें प्रकाशित करने का आग्रह होता है किन्तु हम ऐसा नहीं करते हैं क्योंकि तस्वीरों के स्थान लेखक की लेखनी महत्वपूर्ण होती है। सम्पादक मनोज कुमार कहते हैं कि पत्रिका की गंभीरता बनी रहे, इसकी पूरी कोशिश होती है किन्तु पूफ्र की गलतियां अखरने वाली होती हैं। कोशिश करते हैं कि ऐसा ना हो। वे  ‘समागम’ के  प्रकाशन के लिए मार्गदर्शन करने के लिए बालकवि बैरागीजी के साथ ही कुलपति कुठियाला, परमारजी, वरिष्ठ पत्रकार गिरिजाशंकरजी, जगदीश उपासनेजी एवं पत्रकारिता शिक्षा से संबद्ध सभी लोगों का आभार मानते हैं।  ‘समागम’ का अगला अंक पांच राज्यों में होने वाले चुनाव एवं चुनाव प्रक्रिया में हो रहे बदलाव पर केन्द्रित होगा।     

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