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समाचार और विज्ञापन में भेद करना मुश्किल-प्रो. सुधीर गव्हाणे

 ‘मीडिया शिक्षा के सौ वर्ष : चुनौतियां और संभावनाएं’ विषय पर राष्ट्रीय वेबीनार

महू (इंदौर). ‘समाचार विज्ञापन बनता जा रहा है और विज्ञापन अब समाचार के रूप में परिवर्तित हो रहा है. अब समाचार और विज्ञापन में भेद करना मुश्किल है.’ यह बात प्रो. सुधीर गव्हाणे ने कही. सुपरिचित मीडिया शिक्षक प्रो. गव्हाणे  ‘मीडिया शिक्षा के सौ वर्ष : चुनौतियां और संभावनाएं’ विषय पर आयोजित वेबीनार को संबोधित करते हुए कहा कि पत्रकारिता की प्रतिबद्धता लोकतंत्र एवं देश के संविधान के प्रति होना चाहिए. डॉ. बीआर अम्बेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय, महू, भारतीय जनसंचार संस्थान, नईदिल्ली एवं देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इंदौर के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित वेबीनार में उन्होंने पत्रकारिता के पांच सूत्र बताये जिसमें पत्रकारिता की प्रतिबद्धता जनहित, समाज के वंचित एवं पीडि़त लोगों के लिए, सभ्य समाज के निमार्ण तथा राष्ट्रहित एवं देशहित पत्रकारिता का लक्ष्य होना चाहिए. उन्होंने पत्रकारिता को अलग अलग कालखंड में रखकर बताया कि 1920-1947 की प्रहार पत्रकारिता का दौर था तो 1947-60 प्रयोगकाल, 1970-1990 आधार खंड रहा तो 1990-2020 का दौर बहार पत्रकारिता का रहा और 1920-1930 का दौर सायबर कालखंड का रहा. प्रो. गव्हाणे ने पत्रकारिता के विगत और आगत का विहंगम विवेचना की.

वेबीनार के मुख्य वक्ता आईआईएमसी, नईदिल्ली में डीन अकादमिक डॉ. गोविंद सिंह ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में भारत और भारतीयता की बात की गई है जिससे हम एक नईदृष्टि विकसित कर सकेंगे. उन्होंने कहा कि पत्रकारिता शिक्षा में गंभीरता नहीं है और हम पश्चिमी मॉडल पर आश्रित हैं. उन्होंने मीडिया एजुकेशन काउंसिल बनाने की बात की और कहा कि नारद और संजय ही नहीं, गुरु नानकदेव और शंकराचार्य भी कुशल संचारक थे. यह बात हमें मानना चाहिए. उन्होंने मीडिया इंडस्ट्रीज और शिक्षक संस्थाओं के बीच गेप की चर्चा भी की और निदान भी सुझाया. माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के विज्ञापन एवं जनसम्पर्क विभाग के एचओडी डॉ. पवित्र श्रीवास्तव ने कहा कि होनहार बच्चा जर्नलिज्म की ओर आता नहीं है लेकिन राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में यह अवसर दिया गया है. उन्होंने पत्रकारिता एवं संचार को यूपीएससी एवं पीएससी परीक्षाओं में शामिल करने की बात कही. पेंडेमिक में हेल्थ कम्युनिकेशन जैसे विषय की जरूरत को महसूस किया गया.

स्कूल ऑफ जर्नलिज्म, देवी अहिल्या विश्वविद्यालय की विभागाध्यक्ष डॉ. सोनाली नरगुंदे ने कहा कि पत्रकारिता शिक्षा का सामाजिकरण किया जाना चाहिए. संचार के सभी तत्वों को महत्व देना होगा. उन्होंने कहा कि मिशन, प्रोफेशन एवं पेशन तीन अलग अलग चीजेें हैं. उन्होंने प्रेक्टिकल एजुकेशन पर जोर दिया. इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय केन्द्रीय विश्वविद्यालय में वोकेशनल एजुकेशन के एचओडी प्रो. राघवेन्द्र मिश्रा ने पत्रकारिता शिक्षा के आरंभ से लेकर अब तक विवेचन किया. उन्होंने कहा कि भारत में पत्रकारिता की शुरूआत 1780 से होती है और 1911 में एनीबिसेंट पत्रकारिता शिक्षा की नींव रखती हैं. 1991 में उदारीकरण की चर्चा करते हुए प्रो. मिश्रा ने कहा कि इस दौर में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, रेडियो का आगमन तेजी से हुआ. उन्होंने कहा कि 3 हजार से 3 लाख तक में मीडिया शिक्षा दी जा रही है, जो बच्चे आ रहे हैं, वे ग्लैमर की वजह से आ रहे हैं. प्रो. मिश्रा ने ज्ञान आधारित शिक्षा की पैरवी करते हुए कहा कि एनईपी और मीडिया शिक्षा के उद्देश्य एक हैं. प्रेस्टिज इंस्ट्यूट में पत्रकारिता विभाग की समन्वयक सुश्री भावना पाठक ने कहा कि अब समय बदल रहा है और पत्रकारिता शिक्षा का पैटर्न भी बदल रहा है. उन्होंने फैकल्टी डेवलपमेंट एवं ट्रेनिंग को पत्रकारिता शिक्षा के सुधार में एक जरूरी कदम बताया.

वेबीनार की अध्यक्ष एवं कुलपति प्रो. आशा शुक्ला ने कहा कि जिस तरह निर्भया कांड को जनआंदोलन बनाने में मीडिया की भूमिका रही, वही मीडिया अन्य नारी अपराधों को जनआंदोलन बनाने में क्यों आगे नहीं आ पायी, इसके कारणों की तलाश की जानी चाहिए. आज भी जनमानस का पत्रकारिता पर भरोसा है और किसी घटना पर वह अखबार में छपी खबर का हवाला देता है. पत्रकारिता को सामाजिक बोध के साथ अपने दायित्व को भी समझना होगा और इसके लिए पत्रकारिता शिक्षा एक बेहतर रास्ता है. उन्होंने वेबीनार में उपस्थिति अतिथियों का स्वागत किया. वेबीनार का संचालन मीडिया एवं नेक, सलाहकार ब्राउस  डॉ. सुरेन्द्र पाठक ने किया. आभार प्रदर्शन मीडिया प्रभारी ब्राउस मनोज कुमार ने किया. वेबीनार के आयोजन में रजिस्ट्रार अजय वर्मा, डीन प्रो. डीके वर्मा के साथ ब्राउस परिवार का सहयोग रहा.

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