सोमवार, 15 सितंबर 2025

सीधी बात, नो बकवास




प्रो. मनोज कुमार

भीड़ को चीरते हुए एक परेशान नौजवान सीधे मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के पास जा पहुँचता है. अपनी तकलीफ बताता है और प्रमाण के तौर पर उनके सामने कागज धर देता है. बमुश्किल 20 सेकंड सुनने के बाद डॉ. यादव पास खड़े एसपी को आदेश देते हैं कि युवक के साथ धोखाधड़ी करने वालों के खिलाफ 420 का मामला दर्ज करें. एसपी के पास यश सर के अलावा कोई विकल्प नहीं होता है. यह है ‘सीधी बात, नो बकवास’. बहुत कुछ सुनना और समझना है नहीं, तब जब मामला क्रिस्टल क्लियर हो. पहले मामला दर्ज होगा और फिर होगी विधानसम्मत कार्यवाही. अमन और दहशत का माहौल बन चला है. डॉ. यादव पीठ पर दिलासा देते और कार्यवाही होगी का आश्वासन देने से आगे निकल गए हैं. इन दिनों मछली जाल में फंसी हुई है. कानून अदालत अपना काम कर रही और जनसेवक के रूप में मोहन सरकार का अपना तेवर. कौन उनके साथ है और किसका भविष्य बिगड़ेगा या बनेगा, यह तो आने वाला समय तय करेगा लेकिन अपराधी और अपराधी से गठजोड़ करने वाले दहशत में हैं. आम नागरिक सुकून में है. ऐसे सीधे एक्शन की उम्मीद केवल उसने सिनेमा के पर्दे पर देखा था लेकिन आज वह खुद महसूस कर रहा है.  ‘365 नाटआउट’ से आगे चलते डॉ. मोहन यादव की सरकार का हिसाब-किताब देखें तो मध्यप्रदेश में सरकार के तेवर का पता चल जाएगा. कभी सख्त-सख्त तो कभी नर्म-नर्म सा तेवर लिए डॉ. मोहन यादव को समझना थोड़ा मुश्किल सा है. बचपन से अखाड़े के शौकीन डॉ. मोहन यादव डिग्री के लिहाज से पी.एचडी वाले डॉक्टर हैं लेकिन इलाज करने के मामले में सौफीसद असली डॉक्टर.

अपनी दुनिया में मस्त रहने वाले डॉक्टर मोहन यादव ने सोचा भी नहीं था कि कभी वे प्रदेश के सिरमौर होंगे लेकिन यह भी तय है कि उन्हें इसके पहले जो भी दायित्व मिला, उसकी सीरत और सूरत बदलने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी. मध्यप्रदेश में भाजपा दो दशक से सत्ता सम्हाल रही है तो वाजिब बात है कि लोगों की उम्मीद पर खरा भी उतरना था. यह डॉ. मोहन यादव के लिए चुनौती भरा था किन्तु अपने सांगठनिक क्षमता पर यकिन था. महाकाल के भक्त और सम्राट विक्रमादित्य के रास्ते पर चलकर सबका साथ, सबका विकास को अंजाम देने में जुट गए. चौतरफा योजनाओं और कार्यक्रमों को जनता के हक में फलीभूत करते रहे. उनकी प्राथमिकता थी कि केन्द्र सरकार की हरेक जनकल्याणकारी योजनाओं को जमीन पर उतारना. लोगोंं के जीवन को सुगम बनाना और वे अपने ‘365 नाटआउट’ से आगे सक्सेस भी होते दिख रहे हैं. यह बात कम लोगों को पता होगी और जिन्हें पता होगी, वे भूल गए होंगे कि शायद मध्यप्रदेश की स्थापना के बाद पहली बार अविस्मरणीय साम्प्रदायिक सद्भाव का चेहरा देखने को मिला वह भी उज्जैन जैसे संवेदनशील नगर में. इस महीने उज्जैनवासियों के लिए इम्तहान का समय आ गया था जब शहर के केडी मार्ग चौड़ीकरण के लिए धार्मिक स्थलों को हटाया जाना जरूरी हो गया था। उज्जैन ही नहीं, पूरा प्रदेश हैरान था कि शहर के विकास के लिए सभी धर्मों के लोग एकत्रित होकर स्वेच्छा से हटाना मंजूर कर लिया. रत्तीभर कोई आवाज विरोध में नहीं उठा बल्कि उठे तो हजारों हाथ उज्जैन के विकास के लिए.  केडी मार्ग चौड़ीकरण के लिए आपसी सामंजस्य एवं समन्वय से शांतिपूर्वक धार्मिक स्थलों को लोगों द्वारा स्वेच्छा से हटाना विकास की दिशा में सांप्रदायिक सौहार्द का उल्लेखनीय उदाहरण प्रस्तुत करता हैं।.सबसे उल्लेखनीय पक्ष यह रहा कि एकाध धार्मिक स्थल को हटाने का मसला होता तो बात कुछ और होती, यहां तो 18 धार्मिक स्थलों को हटाया जाना था. मोहन भिया का गुरुमंत्र काम आ गया और लोगों ने शांति और सामंजस्य से एक अनुकरणीय पहल की. यह पहल उज्जैन ही नहीं, पूरे देश के लिए नज़ीर बन गया. 

        ऐसा नहीं है कि धार्मिक स्थलों को हटाने के लिए पहुँचे जिला प्रशासन, पुलिस एवं नगर निगम की संयुक्त टीम की पेशानी पर शिकन ना हो लेकिन उन्हें भी उज्जैनवासियों पर पूरा भरोसा था। प्रशासन की इस कार्यवाही में केडी गेट तिराहे से तीन इमली चौराहे के जद में आने वाले 18 धार्मिक स्थलों को जनसहयोग से शांतिपूर्वक ढंग से हटाने की कार्रवाई की गई है. इस कार्य में धार्मिक स्थलों के व्यवस्थापकों, पुजारियों और लोगों द्वारा दिल से सहयोग किया गया. जिन 18 धार्मिक स्थलों को हटाया गया था, उनमें 15 मंदिर, 2 मस्जिद, एक मजार थे. केडी चौराहे से  पीछे करने और अन्यत्र स्थापित करने की कार्यवाही की गई हैं। हटाई गई प्रतिमाओं को प्रशासन द्वारा धार्मिक स्थलों के व्यवस्थापकों द्वारा बताए गए निर्धारित स्थान पर विधि विधान से स्थापित किया गया. साथ ही 20 से अधिक भवन जिनका गलियारा आगे बढ़ा लिया गया था. ऐसे भवनों के उस हिस्से को भी भवन स्वामियों द्वारा स्वेच्छा से हटाने की कार्यवाही की गई.

यह कामयाबी डॉ. मोहन यादव के लीडरशिप पर था तो यह भी जानते हैं कि मोहन भिया याने ‘सीधी बात, नो बकवास’. वे संवेदनशील भी हैं. हर साल पत्रकारों की बीमा की राशि बढ़ जाती है और फिर सरकार से गुहार लगाना पड़ता है लेकिन इस बार खुद आगे आकर पत्रकारों को राहत देने का ऐलान किया. इस मामले में नवनियुक्त आयुक्त दीपक सक्सेना का भी अहम भूमिका है. हालांकि राहत मिल जाने के बाद कुछ लोगों को पच नहीं रहा है. खैर, यह उनकी समस्या है. जिस पर विपदा टूटती है और इस बीमा से राहत के चार छींटें ही सही, वह इसकी कीमत जानता है. ‘सीधी बात, नो बकवास’ का यह नमूना भी जान लें कि आरोपियों को पुलिस और कानून से तो सजा मिल रही है, मिलेगी भी, उनका साम्राज्य नेस्तनाबूद कर दिया. मछली तो पहले ही जाल में फंसकर अपना सबकुुछ गंवा चुकी है. तभी तो मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव कहते हैं- कोई मछली मरगमच्छ नहीं बचेगा. सब कुछ ठीक है, कहना ठीक नहीं होगा लेकिन सब कुछ ठीक हो रहा है, इससे कौन इंकार कर सकता है. मध्यप्रदेश में सम्राट विक्रमादित्य की न्याय व्यवस्था के वे पक्षधर हैं. और वे इस दिशा में आगे भी बढ़ रहे हैं. मध्यप्रदेश विशाल है और चुनौतियां भी विशाल तो इसे सुलझाने में वक्त तो लगेगा लेकिन दहशतगर्द जान गए हैं कि मध्यप्रदेश का नया डॉयलाग है-‘सीधी बात, नो बकवास’ (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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