भ्रष्टाचार की जड और उसका इलाज
-मनोज कुमार
अभी एक दो दिन में खबर पढ़ रहा था कि जायज काम के लिये रिष्वत देना गलत नहीं है। अन्ना साहेब के अभियान को इस खबर से ठेस पहुंची होगी। यह स्वाभाविक भी है किन्तु सवाल यह है कि भ्रष्टाचार की जड़ में क्या है? क्यों भ्रष्टाचार का हम इलाज नहीं ढूंढ़ पा रहे हैं? भ्रष्टाचारियों को मारना या उन पर नियंत्रण पाना उतना मुष्किल नहीं है जितना कि भ्रष्टाचार के कारणों को ढूंढ़ना। हमारे देष में लाखों की संख्या में मौत इसलिये नहीं होती है कि उन्हें इलाज नहीं मिल पाया बल्कि मौतों का कारण उसकी बीमारी का समय रहते पता नहीं लग पाना होता है। अन्ना साहेब को और हमसब को इस दिषा में प्रयास करने की जरूरत है कि भ्रष्टाचार की जड़ को ढूंढ़ने का समवेत प्रयास करें।
मध्यप्रदेष में भ्रष्टाचार की जड़ को पहचााने की कोषिष की गई है और फकत सात महीनों में इसकेे परिणाम देखने को भी मिल रहे हैं। राज्य सरकार ने सात महीने पहले लोक सेवा गारंटी अधिनियम बनाया। यह अधिनियम लोकलुभावनी नहीं है और न ही यह अधिनियम सरकार को सत्ता में बने रहने की गारंटी देता है बल्कि यह आम आदमी के लिये राहत का कानून है। अधिनियम में षासन स्तर पर हर काम के लिये समय सीमा दी गई है। इस तयषुदा समयसीमा में काम नहीं करने वाले सेवकों को दंड भुगतना होगा। सात महीने बाद समीक्षा में जो आंकड़ें आये हैं, उन पर भले ही यकिन न किया जाए किन्तु इस बात पर यकिन किया जा सकता है कि लोगों को अधिनियम से राहत तो मिली है। आंकड़ें भरमाने और रिझाने के लिये होते हैं, खासकर तब जब वह सरकारी हों।
यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि लोकसेवा गारंटी अधिनियम और भ्रष्टाचार की जड़ ढूंढ़ने का आपस में क्या रिष्ता हो सकता है। सीधे न सही, किन्तु दोेनों के बीच गहरा रिष्ता है। समय पर काम नहीं होने के कारण आदमी परेषान हो जाता है और वह कोषिष करता है कि जैसे तैसे लेदेकर अपना काम करवा ले। षासकीय सेवक को भी यह रास्ता आसान लगता है कि समय पर काम नहीं करो तो झकमार कर आम आदमी उसकी हथेली गरम करेगा। जब बाबू स्तर का आदमी काम रोकने और करनेे के एवज में कमाता है तो इसका हिस्सा भी उसे उपर तक देना होता है। यह तंत्र का असली चेहरा है और मध्यप्रदेष सरकार ने इस चेहरे को पहचान लिया था। इसे आप सहज भाषा में ताजा हिन्दी फिल्म दम मारो दम के एएसपी कामथ के रूप में मुख्यमंत्री को और राणे के रूप में बाकि तंत्र को देख सकते हैं।
यहां हम भ्रष्टाचार राडिया के रार वाली नहीं कर रहे हैं बल्कि हम उस छोटे से पौधे की बात कर रहे हैं जो आगे चलकर वटवृक्ष बन जाता है और देष का अधिकांष उर्जा इस वटवृक्ष को उखाड़ने में लग जाता है जिससे हमारा स्वाभाविक विकास का रास्ता अवरूद्ध हो जाता है। आज अन्ना हजारे जैसे सक्रिय भारतीय की ताकत भ्रष्टाचार को हटाने में लगी हुई है तब सहज रूप से यह विचार आना स्वाभाविक है कि असली चेहरा तो यही है। मध्यप्रदेष में लोकसेवा गारंटी योजना सफल हो रही तो इसका अर्थ हुआ कि भ्रष्टाचार पर चोट हो रही है। समय पर काम की गारंटी ही भ्रष्टाचार को रोकने में कामयाब हो सकती है और भ्रष्टाचार के खिलाफ जूझ रहे लोगों को यह बात समझ लेना चाहिए कि चोट कहां करनी है।
-मनोज कुमार
अभी एक दो दिन में खबर पढ़ रहा था कि जायज काम के लिये रिष्वत देना गलत नहीं है। अन्ना साहेब के अभियान को इस खबर से ठेस पहुंची होगी। यह स्वाभाविक भी है किन्तु सवाल यह है कि भ्रष्टाचार की जड़ में क्या है? क्यों भ्रष्टाचार का हम इलाज नहीं ढूंढ़ पा रहे हैं? भ्रष्टाचारियों को मारना या उन पर नियंत्रण पाना उतना मुष्किल नहीं है जितना कि भ्रष्टाचार के कारणों को ढूंढ़ना। हमारे देष में लाखों की संख्या में मौत इसलिये नहीं होती है कि उन्हें इलाज नहीं मिल पाया बल्कि मौतों का कारण उसकी बीमारी का समय रहते पता नहीं लग पाना होता है। अन्ना साहेब को और हमसब को इस दिषा में प्रयास करने की जरूरत है कि भ्रष्टाचार की जड़ को ढूंढ़ने का समवेत प्रयास करें।
मध्यप्रदेष में भ्रष्टाचार की जड़ को पहचााने की कोषिष की गई है और फकत सात महीनों में इसकेे परिणाम देखने को भी मिल रहे हैं। राज्य सरकार ने सात महीने पहले लोक सेवा गारंटी अधिनियम बनाया। यह अधिनियम लोकलुभावनी नहीं है और न ही यह अधिनियम सरकार को सत्ता में बने रहने की गारंटी देता है बल्कि यह आम आदमी के लिये राहत का कानून है। अधिनियम में षासन स्तर पर हर काम के लिये समय सीमा दी गई है। इस तयषुदा समयसीमा में काम नहीं करने वाले सेवकों को दंड भुगतना होगा। सात महीने बाद समीक्षा में जो आंकड़ें आये हैं, उन पर भले ही यकिन न किया जाए किन्तु इस बात पर यकिन किया जा सकता है कि लोगों को अधिनियम से राहत तो मिली है। आंकड़ें भरमाने और रिझाने के लिये होते हैं, खासकर तब जब वह सरकारी हों।
यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि लोकसेवा गारंटी अधिनियम और भ्रष्टाचार की जड़ ढूंढ़ने का आपस में क्या रिष्ता हो सकता है। सीधे न सही, किन्तु दोेनों के बीच गहरा रिष्ता है। समय पर काम नहीं होने के कारण आदमी परेषान हो जाता है और वह कोषिष करता है कि जैसे तैसे लेदेकर अपना काम करवा ले। षासकीय सेवक को भी यह रास्ता आसान लगता है कि समय पर काम नहीं करो तो झकमार कर आम आदमी उसकी हथेली गरम करेगा। जब बाबू स्तर का आदमी काम रोकने और करनेे के एवज में कमाता है तो इसका हिस्सा भी उसे उपर तक देना होता है। यह तंत्र का असली चेहरा है और मध्यप्रदेष सरकार ने इस चेहरे को पहचान लिया था। इसे आप सहज भाषा में ताजा हिन्दी फिल्म दम मारो दम के एएसपी कामथ के रूप में मुख्यमंत्री को और राणे के रूप में बाकि तंत्र को देख सकते हैं।
यहां हम भ्रष्टाचार राडिया के रार वाली नहीं कर रहे हैं बल्कि हम उस छोटे से पौधे की बात कर रहे हैं जो आगे चलकर वटवृक्ष बन जाता है और देष का अधिकांष उर्जा इस वटवृक्ष को उखाड़ने में लग जाता है जिससे हमारा स्वाभाविक विकास का रास्ता अवरूद्ध हो जाता है। आज अन्ना हजारे जैसे सक्रिय भारतीय की ताकत भ्रष्टाचार को हटाने में लगी हुई है तब सहज रूप से यह विचार आना स्वाभाविक है कि असली चेहरा तो यही है। मध्यप्रदेष में लोकसेवा गारंटी योजना सफल हो रही तो इसका अर्थ हुआ कि भ्रष्टाचार पर चोट हो रही है। समय पर काम की गारंटी ही भ्रष्टाचार को रोकने में कामयाब हो सकती है और भ्रष्टाचार के खिलाफ जूझ रहे लोगों को यह बात समझ लेना चाहिए कि चोट कहां करनी है।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें