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जवाबदारी

सवाल जिम्मेदारी क


-मनोज कुमार
आज के बच्चे हम लोगों की तरह सवाल नहीं करते हैं. वे अपने सवालों के जवाब ढूंढऩे के लिये मां-बाप से पहले इंटरनेट का सहारा लेते हैं. मेरी 14 साल की बिटिया भी इन बच्चों से अलग नहीं है लेकिन मैंने अपने परिवार का जो ताना-बाना बुन रखा है, उसमें इंटरनेट को ज्यादा स्पेस नहीं मिल पाता है और वह अक्सर मुझसे ही सवाल करती है. यह सवाल थोड़ा मेरे लिये कठिन था लेकिन सोचने के लिये मजबूर कर गया. भारत रत्न सचिन तेंदुलकर को एक व्यवसायिक विज्ञापन करते देख उसने पूछ लिया कि पापा, ऐसे में तो इस प्रोडक्ट की सेल तो अधिक होगी क्योंकि इसका विज्ञापन सचिन कर रहे हैं. मैंने कहा, हां, यह संभव है तो अब उसका दूसरा सवाल था कि भारत रत्न होने के बाद भी सचिन क्या ऐसा विज्ञापन कर सकते हैं? यह सवाल गंभीर था. कुछ देर के लिये मैं भी सोच में पड़ गया. फिर बिटिया से कहा कि ऐसा नहीं किया जाना चाहिए. लेकिन क्यों? बिटिया के इस पूरक प्रश्र ने मुझे उलझा दिया. मैंने कहा कि सचिन जैसे लोग हमारे आदर्श होते हैं. वे जैसा करते हैं, समाज उसका अनुसरण करता है. यह ठीक है कि सचिन जिस प्रोडक्ट का विज्ञापन कर रहे हैं, वह गुणवत्तापूर्ण हो लेकिन इस बात की गारंटी स्वयं सचिन भी नहीं दे सकते हैं. ऐसे में उन्हें अब इस तरह के व्यवसायिक विज्ञापनों से स्वयं को परे रखना चाहिये. 

     बिटिया को मैं कितना समझा पाया या नहीं, मैं नहीं जानता लेकिन उसका यह सवाल पूरे समाज के लिये है. श्रीराम भगवान इसलिये कहलाये कि वे समाज के सवालों के सामने अपने व्यक्तिगत जीवन की भी परीक्षा ले ली तो महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता इसलिये कहा गया कि उनके कथ्य और कर्म में कोई अंतर नहीं था. वे सार्वजनिक जीवन में लोगों से अपेक्षा करने से पहले स्वयं उस पर अमल किया करते थे. आज सौ-डेढ़ सौ वर्ष बाद भी महात्मा गांधी पूरे संसार के लिये मिसाल बने हुये हैं. हजारों-लाखों साल बाद भी भगवान श्रीराम को हम आदर्श एवं चरित्रवान व्यक्तित्व के रूप में पहचानते हैं. यह ठीक है कि वह समय नहीं रहा लेकिन आदर्श व्यक्तित्व और उसके अनुगामी लोग तो हर काल और स्थिति में होते रहे हैं. सचिन महान क्रिकेटर हैं और उन्होंने अपनी प्रतिभा के बूते भारत को नयी पहचान दी. भारत ने भी उनकी प्रतिभा का सम्मान किया और उन्हें श्रेष्ठ सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया. अब सचिन की जवाबदारी है कि वह व्यवसायिकता से स्वयं को मुक्त करें और व्यवसायिक विज्ञापनों से स्वयं को परे कर लें. उनके इस एक फैसले से उनके प्रति लोगों का जो सम्मान का भाव है, वह और भी बढ़ेगा. ऐसा करना सचिन की मजबूरी नहीं बल्कि देश के प्रति जवाबदारी होगी क्योंकि सचिन के बारे में आज मेरी बिटिया ने सवाल किया है तो जाने कितने घरों में यह सवाल किये जा रहे होंगे.

    बहरहाल, भारत रत्न हो या पद्यविभूषण, पद्यश्री या अन्य कोई अलंकरण, यह सब सम्मान व्यक्ति की श्रेष्ठता के लिये दिये जाते हैं किन्तु यह सम्मान प्राप्त कर लेने के बाद सम्मानित व्यक्ति समाज के लिये रोल मॉडल बन जाता है. उसके कर्म और कथ्य से ऐेसी अपेक्षा की जाती है कि समाज उसका अनुसरण कर स्वयं को आदर्श बनाये. एक उदाहरण हमारे सामने सदी के नायक अमिताभ बच्चन का है. अमिताभ नायकत्व से बाहर निकल कर देश के अनेक परिवारों में बतौर बुर्जुग प्रवेश कर गये हैं. इन दिनों वे विनम्रता का जो एक नयी मिसाल समाज के सामने पेश कर रहे हैं, उससे उनके सम्मान में वृद्धि हो रही है. उन्हें भी इस बात का खयाल रखना चाहिये कि वे जिस तरफ चल पड़ेंगे, लाखों की संख्या में लोग उनके साथ हो लेंगे. संभव है कि किसी विज्ञापन से उन्हें लाखों का लाभ हो जाए लेकिन समाज का विश्वास दरकेगा तो उन्हें जो नुकसान होगा, उसका अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता है. भरोसा समाज की सम्पत्ति है और इसी भरोसे को हम समाज का रोल मॉडल अर्थात आदर्श कहते हैं. स्मरण हो आता है कि अंग्रेजों से लड़ते समय महात्मा गांधी ने विदेशी वस्त्रों की होली जलाने का अभियान चलाया तो देशभक्तों ने अपने अपने घरों से कपड़े निकाल कर आग के हवाले कर दिया. यह महात्मा गांधी के प्रति विश्वास था कि लोगों ने ऐसा किया. आज भी अपने आदर्श व्यक्तित्व के प्रति यह विश्वास बना हुआ है. जरूरी है कि सचिन हों या अमिताभ और भी वे सारे लोग जिन्हें समाज अपना आदर्श मानता है ये सब अपनी जवाबदारी समझें और समाज के भरोसे पर खरा उतरें ताकि सौ साल बाद भी लोग इनके कर्म और कथ्य का अनुसरण कर सकें. 


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