प्रो. मनोज कुमार
भारतीय राजनीति में सर्वाधिक राजनीतिक दलों की स्थापना आपसी मनमुटाव के कारण हुई है. एक जेपी का जनआंदोलन याद रह जाता है जिसमें राजनीतिक दल नहीं बल्कि राजनेता उभरे लेकिन इसके बाद अलग-अलग राज्यों में अपनी-अपनी नाराजगी के चलते क्षेत्रीय क्षत्रप उभरते गए. आजादी के बाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में पहली टूट हुई और कांग्रेस (अर्स) और कांग्रेस (आई) का गठन हुआ. समय गुजररने के साथ वर्तमान में कांग्रेस ही अस्तित्व में है वही जनसंघ आगे चलकर जनता पार्टी बन गई और वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी के रूप में अस्तित्व में है.माकपा, भाकपा और बसपा जैसी पार्टियां भी राजनीतिक मैदान में हैं. 2014 में अन्ना हजारे की अगुवाई में एक बड़ा जनआंदोलन हुआ जो भ्रष्टाचार के खिलाफ था. यह आंदोलन हाल ही में नेपाल में हुए जेनजी का ही लेकिन पृथक चेहरा था. इस आंदोलन से एक राजनीतिक पार्टी का उदय हुआ जिसे आम आदमी पार्टी का नाम दिया गया. आंदोलन के चलते देश में ऐसी हवा बही कि कांग्रेेस का सूपड़ा साफ हो गया और भारतीय जनता पार्टी सत्तासीन हो पायी. पूर्ण बहुमत के साथ गैर-कांग्रेसी सरकार का यह नया दौर था. अनेक राज्यों में भी इसका असर देखने को मिला. भाजपा को विजय की रणनीति बनाने में प्रशांत किशोर की अहम भूमिका रही. नरेन्द्र मोदी का जादू ऐसा चला कि लगातार तीसरी बार केन्द्र में भाजपा गठबंधन सरकार मौजूद है. पिछले चुनाव में कांग्रेस ने अपना प्रदर्शन जरूर सुधारा लेकिन अभी भी उनके लिए दिल्ली दूर है कि कहावत चरितार्थ हो रही है.
बिहार विधानसभा चुनाव के परिप्रेक्ष्य में देखें तो 1946 में बिहार की पहली सरकार का नेतृत्व श्री कृष्ण सिन्हा और अनुग्रह नारायण सिन्हा ने किया था। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने अगले दो दशकों तक राज्य को नियंत्रित किया; इस समय, प्रमुख नेता सत्येंद्र नारायण सिंह ने वैचारिक मतभेदों के कारण कांग्रेस छोड़ दी और जनता पार्टी में शामिल हो गए।
1977 के चुनाव में, कांग्रेस को जनता पार्टी ने हरा दिया। जनता पार्टी ने बिहार की सभी चौवन लोकसभा सीटें जीतकर राज्य विधानसभा में सत्ता हासिल की। कर्पूरी ठाकुर मुख्यमंत्री बने । 1989 में राष्ट्रीय स्तर पर जीत के बाद 1990 में जनता दल बिहार की सत्ता में आया। लालू प्रसाद यादव, मुख्यमंत्री बने। नीतीश कुमार सहित अन्य समाजवादी विचारधारा वाले नेताओं ने धीरे-धीरे उनका साथ छोड़ दिया और 1995 तक मुख्यमंत्री रहे और उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे, तो उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और अपनी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बना दिया। संभवत: भारतीय राजनीति का यह पहला उदाहरण होगा।
वर्ष 2000 में जनता दल से अलग होकर रामविलास पासवान ने लोक जनशक्ति पार्टी का गठन किया। इसमें भी फूट पड़ जाने के बाद इसी नाम से राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी का उदय हुआ जिसके लीडर उपेन्द्र कुशवाहा हैं। इधर 2015 में जीतनराम मांझी का इस्तीफा होने के बाद उन्होंंने अपना नया दल हिन्दुस्तान अवामी मोर्चा का गठन कर लिया। राबड़ी देवी के कुशासन के बाद, समता पार्टी के उत्तराधिकारी जनता दल (यूनाइटेड) ने राष्ट्रीय जनता दल की जगह ली। उपेंद्र कुशवाहा ने 2013 में अपनी अलग राजनीतिक पार्टी बनाने के लिए दलबदल कर लिया। कुशवाहा पहले भी जदयू से अलग हुए थे, लेकिन सुलह के बाद वे जदयू में वापस आ गए थे। 2013 के दलबदल के परिणामस्वरूप राष्ट्रीय लोक समता पार्टी की स्थापना हुई, जिसने 2014 के लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन करके तीन सीटें जीतकर प्रभावशाली प्रदर्शन किया। इसके बाद, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी का प्रदर्शन प्रभावशाली नहीं रहा। पार्टी ने फिर से खराब प्रदर्शन किया और 2020 के बिहार विधानसभा चुनावों में बहुजन समाज पार्टी और एआईएमआईएम जैसे छोटे दलों के साथ नए गठबंधन की कोशिश की गई। ग्रैंड डेमोक्रेटिक सेक्युलर फ्रंट नामक इस नए गठबंधन ने चुनावों में 6 सीटें जीतने में कामयाबी हासिल की, लेकिन आरएलएसपी अपने गठबंधन सहयोगियों में सबसे ज़्यादा वोट शेयर होने के बावजूद एक भी सीट नहीं जीत पाई। हालाँकि, आरएलएसपी ने एक दर्जन निर्वाचन क्षेत्रों में जेडी(यू) के जातीय समीकरण को बिगाडऩे में कामयाबी हासिल की, जिसके परिणामस्वरूप 2020 के बिहार विधानसभा में जेडी(यू) की सीटों की संख्या घटकर 43 रह गई। भारतीय जनता पार्टी अब 75 सीटों के साथ उभरी। सरकार गठन के बाद, जद (यू) ने बहुजन समाज पार्टी जैसी छोटी पार्टियों के नेताओं को अपने साथ जोडक़र अपना खोया हुआ वोट आधार वापस पाने के लिए लव-कुश गठबंधन (जिसे कुर्मी और कुशवाहा जाति का गठबंधन कहा जाता है ) को मज़बूत करने के लिए रामचंद्र प्रसाद सिंह और उमेश कुशवाहा को राष्ट्रीय और प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त करके संगठनात्मक बदलाव भी किए गए । इस गठबंधन को मज़बूत करने 2021 में राष्ट्रीय लोक समता पार्टी का जद (यू) में विलय था, जिसके बाद इसके नेता उपेंद्र कुशवाहा को जद (यू) के संसदीय बोर्ड का अध्यक्ष नियुक्त किया गया।
बिहार की राजनीति में टूट-फूट और समीकरण बनते-बिगड़ते रहे हैं. प्रशांत किशोर भी बिहार की राजनीति में अपना सिक्का जमाने के लिए अपनी पार्टी जनसुराज का गठन किया. यह पार्टी ना तो विद्रोह से उपजी है और ना ही किसी आंदोलन के कारण. यह एक रणनीतिकार की राजनीतिक पार्टी है. फिलहाल इस समय जेडीयू और महागठबंधन के बीच संघर्ष है. पीके, ओवैसी जैसे लोग कितना चमत्कार कर पाते हैं, यह समय बताएगा लेकिन ये दोनों मुख्य दलों के वोट बैंक में सेंध लगाने का काम करेंगे, यह तय दिख रहा है. बिहार विधानसभा चुनाव में प्रशांतकिशोर की रणनीति कारगर रही तो समूचा परिदृश्य बदल सकता है लेकिन ये बिहार है. कल के अंक में हम विभिन्न राज्यों के राजनीतिक दलों के बारे में चर्चा करेंगे. (क्रमश:)
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