सोमवार, 3 नवंबर 2025

बिहार में बहार है, पीके के क्या हाल हैं?





प्रो. मनोज कुमार

बिहार और नीतिश कुमार एक-दूसरे के पर्याय बन गए हैं. कुछ राजनीतिक समीक्षक अभी भी इस बात को लिख रहे हैं कि नीतिश बिहार के लिए अपरिहार्य हैं. इस समीक्षा के पीछे उनका क्या आधार है, वही जानें लेकिन बिहार की राजनीति में पी.के. यानि प्रशांत किशोर के मैदान में उतर आने से कई समीकरण बदले हैं और कई समीकरण गड़बड़ाते दिख रहे हैं. चुनाव परिणाम क्या होगा, इस बार कोई कह नहीं पा रहा है. तेजस्वी का और महागठबंध का जलवा कितना प्रभावकारी रहेगा या एनडीए अपना वर्चस्व रख पाएगी, यह अभी भविष्य के गर्त में है. फिलहाल बात प्रशांत किशोर के बारे में कि क्या वे बिहार की राजनीति मेंं धूमकेतु की तरह उभरेंगे या उनका आभा मंडल पर पूर्ण विराम लग जाएगा. हालांकि उनके मन में होगा कि कभी स्टूडेंट्स पॉलिटिक्स से सीएम बनने वाले महंता या जनआंदोलन से उपजे केजरीवाल की तरह वे भी बिहार में धूमकेतु की तरह चमक सकते हैं. बिहार की राजनीति में अभी ना तो स्टूडेंट्स पॉलिटिक्स का कोई हवा है और ना जनआंदोलन की भूमिका. कभी नीतिश को जिताने वाले पीके स्वयं इस समय आमने-सामने हैं. 

प्रशांत किशोर कौन हैं? क्या वे पूर्णकालिक राजनीतिज्ञ हैं या राजनीति दलों को जीत दिलाने वाले एक कंपनी प्रमुख? क्या वे अरविंद केजरीवाल की तरह राजनीति में सिक्का जमा पाएंगे? ऐसे अनगिनत सवाल हैं जिसका जवाब बिहार का चुनाव परिणाम दे जाएगा. बिहार में वर्तमान विधानसभा चुनाव में उतरने के पहले प्रशांत किशोर एक राजनीतिक रणनीतिकार के रूप में अलग-अलग दलों के चुनाव जीतने के लिए रणनीति तैयार करते रहे हैं. वर्ष 2014 में भाजपा और नरेन्द्र मोदी को जिताने में उनकी अहम भूमिका रही. 

साल 2013 में प्रशांत किशोर ने रॉबिन शर्मा और अन्य सहयोगियों के साथ मिलकर ‘सिटिज़न्स फॉर अकाउंटेबल गवर्नेंस’ नामक एक मीडिया एवं जनसंपर्क संस्था की स्थापना की, जिसका उद्देश्य था मई 2014 के आम चुनाव के लिए अभियान तैयार करना। उन्हें व्यापक पहचान तब मिली जब उन्होंने ‘सिटिज़न्स फॉर अकाउंटेबल गवर्नेंस’ नामक एक चुनावी अभियान समूह की स्थापना की, जिसने भारतीय जनता पार्टी को भारतीय आम चुनाव, 2014 में पूर्ण बहुमत से जीत दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। प्रशांत किशोर और उनकी टीम को नरेंद्र मोदी के लिए अभिनव विपणन और प्रचार अभियान तैयार करने का श्रेय दिया गया, जिनमें प्रमुख थे- चाय पर चर्चा कार्यक्रम, रैलियाँ, रन फॉर यूनिटी कार्यक्रम, मंथन और कई सोशल मीडिया अभियानों की संकल्पना। 

इसके पहले प्रशांत किशोर आठ वर्षों तक एक संयुक्त राष्ट्र समर्थित सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रम में कार्यकरने के बाद भारतीय राजनीति में राजनीतिक रणनीतिकार के रूप में कार्य किया। उन्होंने कई प्रमुख भारतीय राजनीतिक दलों के लिए रणनीतिकार के रूप में कार्य किया है, जिनमें बीजेपी, जेडीयू, कांग्रेस, आप, वाईएसआर कांग्रेस पार्टी, डीएमके और टीएमसी शामिल हैं।

किशोर ने भारतीय जनता पार्टी (भा.ज.पा.) या गुजरात सरकार में किसी पद को स्वीकार किए बिना, वर्ष 2012 के गुजरात विधानसभा चुनाव और 2014 के लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा की पूर्व-चुनावी रणनीति को लेकर एक प्रमुख राजनीतिक रणनीतिकार के रूप में कार्य किया, और यह कार्य उन्होंने प्रो बोनो रूप में किया।

वर्ष 2015 में, उन्होंने नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली महागठबंधन को बिहार विधान सभा चुनाव 2015 में जीत दिलाने में अहम भूमिका निभाई। 16 सितंबर 2018 को जनता दल (यूनाइटेड) में उपाध्यक्ष के रूप में प्रशांत किशोर ने प्रवेश किया। चुनाव जीतने के बाद, नीतीश कुमार ने किशोर को ‘‘योजना एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन सलाहकार’’ नियुक्त किया, ताकि चुनाव पूर्व वादों—विशेषत: सात निश्चय योजना—को धरातल पर उतारा जा सके।

प्रशांत किशोर की को साल 2016 में, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव, 2017 के लिए नियुक्त किया, लेकिन यह चुनाव प्रशांत किशोर की रणनीति  असफल रही और कांग्रेस मात्र 7 पर सिमट गई।   देशभर की विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के साथ मिलकर सफलतापूर्वक चुनाव अभियान चलाए, जिनमें शामिल हैं: कैप्टन अमरिंदर सिंह के लिए पंजाब विधानसभा चुनाव, 2017, वाई. एस. जगनमोहन रेड्डी के लिए आंध्र प्रदेश विधानसभा चुनाव 2019,  अरविंद केजरीवाल के लिए दिल्ली राज्य विधानसभा चुनाव, 2020,[30] ममता बनर्जी के लिए 2021 पश्चिम बंगाल विधान सभा चुनाव और एम. के. स्टालिन के लिए तमिलनाडु विधानसभा चुनाव 2021। पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु विधानसभा चुनावों में तृणमूल कांग्रेस और डीएमके की जीत के बाद उन्होंने चुनावी रणनीतिकार के रूप में कार्य से संन्यास लेने की घोषणा कर दी। इसके करीब एक वर्ष बाद उन्होंने बिहार भर में 3,000 किलोमीटर की पदयात्रा की घोषणा की जिसका उद्देश्य था राज्य के अलग-अलग इलाकों में जाकर आम जनता से संवाद स्थापित करना। इस अभियान के तहत उन्होंने एक राजनीतिक दल के गठन का संकेत दिया, जो बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ेगा। 2 अक्टूबर 2024 को, उन्होंने ‘जन सुराज अभियान’ को एक औपचारिक राजनीतिक दल के रूप में घोषित किया, जिसका जन सुराज पार्टी रखा गया।

प्रशांत किशोर के लिए यक्ष प्रश्र यह है कि क्या वे बिहार की राजनीति में वैसी कामयाबी हासिल कर सकेंगे जो उन्होंंने एक रणनीतिकार के रूप में अन्य राजनीतिक दलों को दिलायी। उनके मन में यह विचार बना होगा कि कभी असम की राजनीति में स्टूडेंट्स मूवमेंट से दो बार मुख्यमंत्री रहे प्रफुल्ल कुमार महंता की तरह या जनआंदोलन से बने नेता  अरविंद केजरीवाल की तरह वे बिहार के विजेता बन सकते हैं. हालांकि इसके आसार कम ही हैं क्योंकि बिहार ना तो दिल्ली है और ना ही वर्तमान समय स्टूडेंट्स मूवमेंट का रहा। यह समय जेपी आंदोलन का भी नहीं है और वे स्वयं पॉलिटिशियन ना होकर रणनीतिकार रहे हैं. एक शिक्षक आईएएस बना सकता है लेकिन स्वयं आईएएस हो जाए, यह लगभग असंभव सी बात होती है. और यही बात प्रशांत किशोर पर लागू होता है. एक बात तय है कि ना तो वे महंता बन पाएंगे और ना ही केजरीवाल. वे राजनीतिक दलों के लिए कुशल रणनीतिकार हैं, अच्छे वक्ता हैं लेकिन बिहार की राजनीति में वे क्या चमत्कार कर पाएंगे, यह जानने के लिए बस कुछ समय शेष है.

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