सोमवार, 8 दिसंबर 2025

ये आकाशवाणी का उज्जैन केन्द्र है...

 








प्रो. मनोज कुमार

ये आकाशवाणी का उज्जैन केन्द्र है... मैं डॉ. मोहन यादव बोल रहा हूँ.. यह उद्घोषणा सुनने में रूटीन सा लगता है लेकिन मध्यप्रदेश के लिए यह आवाज अहम है. जब देश भर में भारत सरकार आकाशवाणी केन्द्रों को समेट रही है तब उज्जैन में आकाशवाणी केन्द्र का आरंभ होना एक बड़ी उपलब्धि के तौर पर गिना जाएगा. मुख्यमंत्री डॉ. मोहन  यादव के अथक प्रयासों का सुपरिणाम है कि उज्जैन में आकाशवाणी केन्द्र को ना केवल मंजूरी मिली बल्कि अल्प समय में इसका प्रसारण शुरू हो गया. पूर्ववर्ती सरकारों से तुलना करें तो मध्यप्रदेश के कई आकाशवाणी केन्द्रों का आकार सीमित कर दिया गया है या बंद कर दिया गया है लेकिन इस पर कोई पहल नहीं की गई, तब मुख्यमंत्री डॉ. यादव की पहल ऐतिहासिक माना जाएगा. लगभग एक सप्ताह पश्चात जब डॉ. मोहन यादव के दो वर्ष के कार्यकाल की समीक्षा की जाएगी कि इन दो साल में प्रदेश की क्या उपलब्धि रही या क्या खोया तब ऐसे अनछुए कार्य उनके खाते में गिने जाएंगे. सामाजिक समरसता के साथ सामाजिक सद्भाव के साथ नवाचार के लिए मोहन सरकार ने स्वयं को रेखांकित किया है. कई मिथकों को तोड़ते हुए अनेक नए आयाम छूूने की कोशिश में डॉ. मोहन यादव आगे निकल गए हैं. 

13 दिसम्बर, 2023 को जब डॉ. मोहन यादव ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली तो राजनीतिक विश£ेषकों के साथ स्वयं डॉ. यादव चौंक गए थे. वे कहते हैं कि उन्होंने कभी भी ऐसी बड़ी जवाबदारी के लिए खुद को तैयार नहीं किया था और ना ही उनकी अपेक्षा थी लेकिन जो कुछ होता है, वह भाग्य में लिखा होता है और इसे मंजूर भी करना पड़ता है. इसके बाद वे कहते हैं कि इससे आगे इस जिम्मेदारी के भरोसे को जितना सबसे बड़ी चुनौती होती है. बेशक, जैसी कामयाबी की उम्मीद उनसे हो, वह पूरी ना हो पायी हो लेकिन किसी भी मोर्चे पर वे असफल नहीं दिखते हैं. अपनी ही पार्टी के मुख्यमंत्री की तरह उनके काम करने का तरीका और सोच अलग था. वे परम्परागत सोच से बाहर नवाचार पर जोर देते रहे. आज जब पूरी दुनिया एआई के नक्शे पर है, डिजीटली दुनिया हो चुकी है तो वे अपने मध्यप्रदेश को भी इसी के साथ चलाने की मंशा रखते हैं. उनके कार्यकाल का संभवत: पहला प्रयोग साइबर तहसील का था. देश में पहली बार यह प्रयोग किया गया और जो जिस तहसील में है, उसके कार्य वही निपटा दिए गए. राजधानी या मुख्यालय की गणेश परिक्रमा से मुक्त कर दिया गया. यही कार्य उन्होंने संपदा-2 में किया. जमीन-जायदाद के मामले घर बैठे निपटने लगे. रजिस्ट्री से नामांकन तक की प्रक्रिया सहजता से आम आदमी का होनेे लगा. कुछ तकनीकी दिक्कत शुरू में आती है, सो आयी लेकिन बाद के दिनों में सहजता से आम आदमी का काम होने लगा.

रघुकुलवंश की ‘प्राण जाए पर वचन ना जाए’ कि भाँति उन्होंने लाडली बहनों से किया गया वायदा पूरा किया. नियत तय तारीख पर उन्हें बढ़ी हुई स्वाभिमान राशि बहनों के खाते में 1500 रुपये ट्रांसफर कर उनका भरोसा जीत लिया. विपक्ष तो उन्हें कटघरे में कटघरे में खड़ा कर ही रहा था, अपने भी उनके खिलाफ हो चले थे लेकिन वे अपनी नियत योजनाओं को मूर्त रूप देने में लगे रहे. सबका साथ, सबका विकास के तर्ज पर उन्होंने दशकों से उदास रूठे सैकड़ों मजदूरों के जीवन में खुशी की दस्तक देने में वक्त नहीं गंवाया. हुकूमचंद कपड़ा मिल इंदौर के सैकड़ों मजदूर अपना अधिकार पाने के लिए परेशानहाल थे जिन्हें मोहन सरकार ने राहत दी. डॉ. मोहन के नेतृत्व वाली सरकार ने प्रदेश के सभी मिलों का परीक्षण किया जा रहा है ताकि मजदूर परिवारों को राहत मिल सके. यह भी शायद पहली-पहली बार हो रहा है क्योंकि उनके पूर्ववर्ती सरकारों ने ऐसा कुछ नहीं किया था. किसान, महिला, पिछड़ा, आदिवासी वर्गों के लिए नित नए कल्याणकारी योजनाओं का आगाज हो रहा है. यह अतिशयोक्ति नहीं है बल्कि हकीकतबयानी है जो बीते दो वर्ष में हुआ और हो रहा है.

मध्यप्रदेश शांति का टापू कहलाता है और इस पर एक बार फिर डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व में मुहर लग गई है. स्मरण रहे कि उज्जैन नगर विकास के लिए अनेक धर्मस्थलों को हटाया जाना एक चुनौतीपूर्ण कार्य था लेकिन डॉ. मोहन यादव की सूझबूझ और समरसता के प्रयासों से यह कार्य भी सरलता से पूर्ण हो गया. यह संभवत: देश का पहला मसला रहा होगा जब बिना किसी हो-हल्ला यह काम पूर्ण हो गया. सनातनी परम्परा को एक नया आयाम देने के लिए डॉ. मोहन यादव ने प्रदेश के समस्त धर्मस्थलों को नवीन स्वरूप देने का प्रयास किया. इसी क्रम में मध्यप्रदेश में होने वाले प्रतिष्ठित सिंहस्थ के लिए लैंड पुलिंग एवं ममलेश्वर लोक निर्माण का प्रस्ताव सरकार ने किया था लेकिन विरोध के बाद सरकार ने पूरी सह्दयता के साथ दोनों ही प्रस्ताव को वापस कर लिया. सरकार को घेरने के इरादे से इसे बैकफुट पर जाना कहा गया लेकिन सत्यता है कि मुख्यमंत्री डॉ. मोहन सरकार का यह फैसला बेकअप देना था. वे कोई भी फैसला जनमानस के समर्थन के बिना नहीं लेते हैं और लैंड पुलिंग तथा ममलेश्वर के मामले को इसी संदर्भ में देखा और समझा जाना चाहिए. वे सीधी बात पर यकीन करते हैं और ऑन द स्पॉट फैसला लेते हैं. इसलिए उनके लिए कहा गया-नो बकवास, सीधी बात. अपराधों के खिलाफ उनका रूख निर्मम प्रशासक का है तो आम आदमी के साथ संवेदनशील होना डॉ. मोहन यादव का गुण है. दो वर्ष का कार्यकाल बहुत छोटा होता है, खासतौर पर मध्यप्रदेश जैसे बड़े भौगोलिक प्रदेश के लिए लेकिन देखा जाए तो अनेक फैसलों ने अमलीजामा पहन लिया और आने वाले समय में परिणाम देखने को मिलेगा. डॉ. मोहन यादव के लिए विपक्ष तो परेशानी का सबब है ही, अपनों का साथ भी नहीं मिल पा रहा है. बावजूद इसके महाकाल के बेटे डॉ. मोहन यादव नित नयी कामयाबी गढ़ रहे हैं. उन्होंने दशकों से स्थापित इस मिथक को चटका दिया है जिसमें कहा जाता था कि उज्जैन का राजा महाकाल है और कोई राजा उज्जैन में नहीं रूक सकता है. इस मिथक को दोहराने वाले भूल गए थे कि डॉ. मोहन यादव राजा नहीं, शासक नहीं अपितु महाकाल के बेटे हैं और महाकाल का उन पर आशीष है. नवीन मध्यप्रदेश से प्रवीण मध्यप्रदेश की ओर डॉ. मोहन सरकार की सवारी चल पड़ी है. (लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं मीडिया शिक्षा से संबंद्ध हैं)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

ये आकाशवाणी का उज्जैन केन्द्र है...

  प्रो. मनोज कुमार ये आकाशवाणी का उज्जैन केन्द्र है... मैं डॉ. मोहन यादव बोल रहा हूँ.. यह उद्घोषणा सुनने में रूटीन सा लगता है लेकिन मध्यप्...