हंगामा है क्यों बरपा....
मनोज कुमार
दिग्विजयसिंह एक चतुर राजनेता हैं और मीडिया के दोस्त भी। वे अक्सर बयान देते रहते हैं जिन्हें बेबाक बोल कहना उचित होगा। कुछ बातों पर से तो वे पलटते नहीं है किन्तु कुछ बातों को वे गप कर जाते हैं। राजनीतिक बयानों को लेकर उनके विरोधी तो पस्त रहते ही हैं, उनके अपने दल के लोग भी परेषान हो जाते हैं। उनका एक बयान हो तो बात करें, बहस करें किन्तु यहां तो उनके बयानों की फेहरिस्त है। इस समय में दिग्विजयसिंह ऐसे नेता हैं जो मीडिया में अपनी जगह पक्की कर लेते हैं। लोग भले ही उन्हें भला बुरा कहते रहें लेकिन वे एकाध पखवाड़े में ऐसा बयान दाग देते हैं कि सब उन्हींे के पीछे पड़ जाते हैं। ताजा मामला लादेन का है। पहले तो उन्होंने लादेन के अंतिम क्रियाकर्म करने को लेकर बयान दिया और जब लोग इस बात से नाराज हो गये तो लादेन को सम्मान के साथ जी लगाकर संबोधन दिया। पहले दिन जो लोग नाराज थे, दूसरे दिन उनके नथूने फूलने लगे। लोग पानी पी पीकर दिग्वजयसिंह को कोसते रहे और मुझे नहीं मालूम कि दिग्विजयसिंह पर इसका कोई फर्क पड़ा होगा।
दिग्विजयसिंह हमेषा बयानों की झड़ी लगा देते हैं। ऐसा भी नहीं है कि उनका हर बयान बेबुनियाद हो किन्तु यह भी सच है कि कई बार वे चर्चा में बने रहने के लिये बयान देते हैं। ताजा प्रकरण को इसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए। लादेन के आखिरी संस्कार की बात गंभीर रही होगी किन्तु जब इस पर बवाल मचा तो षायद जानबूझकर लादेनजी कहकर संबोधित कर फिर चर्चा में आ गए।
एक सफल राजनेता की तरह उन्हें अखबार और टेलीविजन पर बने रहना आता है। कोई चैनल अपनी टीआरपी जांच रहा होगा तो जितनी टीआरपी उसे लादेन के मरने की खबर में मिली होगी तो कम से कम आधी तो दिग्विजयसिंह केे बयान की भी रही होगी। अखबारों की बिक्री में उनके बयान का सहयोग होगा। एक समय लालू प्रसाद यादव अपने बयानों से चर्चा में बने रहते थे। दिग्विजयसिंह और लालू दोनों ही षिक्षित हैं और समय की नब्ज पकड़ना जानते हैं। मीडिया को यह मान लेना चाहिए कि हवा का रूख मोड़ने की ताकत दिग्विजयंिसंह रखते हैं। एक तरफ लादेन को मारे जाने की खबर को जितनी जगह मीडिया दे रहा था, लगभग उतनी ही जगह मीडिया में दिग्विजयसिंह ने पा ली है। एकाधे बयान के बाद अरसे तक मीडिया में नेता गुम रहते हैं किन्तु दिग्विजयसिंह एक बयान के बाद उसके सर्पोटिंग में कई बयान देकर अरसे तक मीडिया में बने रहते हैं। सच कहा जाए तो मीडिया को अपनी तरफ मोड़ने की कला जो उनमें है, वह दूसरों को सीखने की है। ऐसा भी नहीं है कि दूसरे नेताओं ने उनके रास्ते पर चलने की कोषिष नहीं की है किन्तु वे सफल नहीं हुए। चलो, बाद का बाद देखेंगे। लादेन की मौत से बड़ी खबर दिग्विजयसिंह के बयान बन गई है।
मनोज कुमार
दिग्विजयसिंह एक चतुर राजनेता हैं और मीडिया के दोस्त भी। वे अक्सर बयान देते रहते हैं जिन्हें बेबाक बोल कहना उचित होगा। कुछ बातों पर से तो वे पलटते नहीं है किन्तु कुछ बातों को वे गप कर जाते हैं। राजनीतिक बयानों को लेकर उनके विरोधी तो पस्त रहते ही हैं, उनके अपने दल के लोग भी परेषान हो जाते हैं। उनका एक बयान हो तो बात करें, बहस करें किन्तु यहां तो उनके बयानों की फेहरिस्त है। इस समय में दिग्विजयसिंह ऐसे नेता हैं जो मीडिया में अपनी जगह पक्की कर लेते हैं। लोग भले ही उन्हें भला बुरा कहते रहें लेकिन वे एकाध पखवाड़े में ऐसा बयान दाग देते हैं कि सब उन्हींे के पीछे पड़ जाते हैं। ताजा मामला लादेन का है। पहले तो उन्होंने लादेन के अंतिम क्रियाकर्म करने को लेकर बयान दिया और जब लोग इस बात से नाराज हो गये तो लादेन को सम्मान के साथ जी लगाकर संबोधन दिया। पहले दिन जो लोग नाराज थे, दूसरे दिन उनके नथूने फूलने लगे। लोग पानी पी पीकर दिग्वजयसिंह को कोसते रहे और मुझे नहीं मालूम कि दिग्विजयसिंह पर इसका कोई फर्क पड़ा होगा।
दिग्विजयसिंह हमेषा बयानों की झड़ी लगा देते हैं। ऐसा भी नहीं है कि उनका हर बयान बेबुनियाद हो किन्तु यह भी सच है कि कई बार वे चर्चा में बने रहने के लिये बयान देते हैं। ताजा प्रकरण को इसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए। लादेन के आखिरी संस्कार की बात गंभीर रही होगी किन्तु जब इस पर बवाल मचा तो षायद जानबूझकर लादेनजी कहकर संबोधित कर फिर चर्चा में आ गए।
एक सफल राजनेता की तरह उन्हें अखबार और टेलीविजन पर बने रहना आता है। कोई चैनल अपनी टीआरपी जांच रहा होगा तो जितनी टीआरपी उसे लादेन के मरने की खबर में मिली होगी तो कम से कम आधी तो दिग्विजयसिंह केे बयान की भी रही होगी। अखबारों की बिक्री में उनके बयान का सहयोग होगा। एक समय लालू प्रसाद यादव अपने बयानों से चर्चा में बने रहते थे। दिग्विजयसिंह और लालू दोनों ही षिक्षित हैं और समय की नब्ज पकड़ना जानते हैं। मीडिया को यह मान लेना चाहिए कि हवा का रूख मोड़ने की ताकत दिग्विजयंिसंह रखते हैं। एक तरफ लादेन को मारे जाने की खबर को जितनी जगह मीडिया दे रहा था, लगभग उतनी ही जगह मीडिया में दिग्विजयसिंह ने पा ली है। एकाधे बयान के बाद अरसे तक मीडिया में नेता गुम रहते हैं किन्तु दिग्विजयसिंह एक बयान के बाद उसके सर्पोटिंग में कई बयान देकर अरसे तक मीडिया में बने रहते हैं। सच कहा जाए तो मीडिया को अपनी तरफ मोड़ने की कला जो उनमें है, वह दूसरों को सीखने की है। ऐसा भी नहीं है कि दूसरे नेताओं ने उनके रास्ते पर चलने की कोषिष नहीं की है किन्तु वे सफल नहीं हुए। चलो, बाद का बाद देखेंगे। लादेन की मौत से बड़ी खबर दिग्विजयसिंह के बयान बन गई है।
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