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बच्चियों को शिक्षित करने में जुटीं सरपंच गीता राठौर

मनोज कुमार

माना जाता है कि सड़कों से विकास होता है लेकिन ये सड़कें भले ही ग्राम पंचायत जमुनिया को विकास की तरफ न ले जाती हों लेकिन सरपंच गीता राठौर अपने ग्राम पंचायत के विकास का रास्ता खुद बनाती हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य सहित उन तमाम क्षेत्रों में सरपंच गीता राठौर ने जो काम किया है, वह दूसरी महिलाओं के लिये मील का पत्थर साबित हो रहा है। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से चालीस किलोमीटर की दूरी पर बसा है सीहोर जिला और इस जिले की एक ग्राम पंचायत है जमुनिया। सीहोर जिला मुख्यालय से लगभग सात किलोमीटर की दूरी पर स्थित ग्राम पंचायत जमुनिया तक पहुंच पाना आसान नहीं है। कहने को तो दूरी महज सात किलोमीटर की है लेकिन रास्ता दुर्गम सा है। कुछ कदमों तक तो आपको पक्की सड़क मिलेगी और फिर सड़क कहीं गुम हो जाती है। बड़े-बड़े बोल्डर के टुकड़ों के बीच से पैदल चलना भी दूभर है। इस खराब रास्ते में दो-चार दिनों में एकाध दुर्घटना हो जाना सामान्य बात है। इस साल बारिश में एक ग्रामीण की मौत इसी सड़क पर हो गई थी। ग्राम पंचायत जमुनिया में समस्यायें दूसरे और ग्राम पंचायतों की तरह कम नहीं हैं तो उपलब्धियों के मामले में यह ग्राम पंचायत अकेला है। इस ग्राम पंचायत की सबसे बड़ी उपलब्धि है शिक्षा में सबसे आगे रहना। ग्राम पंचायत जमुनिया की सरपंच गीता राठौर स्वयं हायर सेकंड्री पास हैं और उनका सपना है कि उनके ग्राम पंचायत की एक एक बेटी शिक्षित हो, स्वावलंबी बनें और पूरी दुनिया के लिये मिसाल बनें। पांचवीं कक्षा में पढ़ने वाली कुमारी सपना हमेशा कक्षा में अव्वल आती है तो रश्मि को इस बात की राहत है कि सरपंचजी स्वयं स्कूलों का देखरेख करती हैं। शिक्षक समय पर आते हैं। मन से पढ़ाई कराते हैं और लड़कियों के आगे बढ़ने के लिये सरकार की जितनी योजनायें होती हैं, उन सबका लाभ बच्चियों को मिलता है। सपना और रश्मि तो महज उदाहरण हैं। ऐसी बच्चियों की संख्या सैकड़ा भर है जो पास के गांवों से पढ़ने आती हैं। पढाई में मिसाल कायम करने वाली ग्राम पंचायत जमुनिया ने अपनी अलग से पहचान बना रखी है।गीता राठौर पिछले 15 सालों से ग्राम पंचायत जमुनिया की सरपंच हैं। जबलपुर में मायका और जमुनिया में ससुराल। परिवार से उनके बड़े श्वसुर जरूर सरपंच रहे हैं लेकिन जब आरक्षण हुआ और बारी आयी तो गीता राठौर को कहा गया कि सरपंच का चुनाव लड़ें लेकिन गीता राठौर इसके लिये तैयार नहीं थीं। गांव की औरतें जो गीता राठौर के न केवल पढ़े-लिखे होने का लाभ लेना चाहती थीं। हां और ना के बीच आखिरकार गीता राठौर सरपंच चुन ली गईं। आरंभिक दिन गीता राठौर के लिये बड़े कठिन और चुनौती भरे थे क्योंकि तब अनुभव का अभाव था। समय गुजरने के साथ सब कुछ सहज होता चला गया। स्वतंत्र पत्रकार मनोज कुमार से चर्चा में सरपंच गीता राठौर बताती हैं कि उनका पहला लक्ष्य था बेटियों को अधिकाधिक शिक्षा उपलब्ध कराना। इसके पीछे का कारण वह यह मानती हैं कि उन्हें सरपंच इसलिये बनाया गया क्योंकि वे शिक्षित थीं और वे हर बेटी में गीता राठौर देखना चाहती हैं। गीता राठौर जब सरपंच बनीं तब तक स्कूल पेड़ के नीचे लगता था लेकिन अब आठवीं तक की पढ़ाई के लिये स्कूल बिÏल्डग बन गई है। वे इस कोशिश में हैं कि हायर सेकंड्री की पढ़ाई की सुविधा भी गांव में उपलब्ध हो जाए ताकि बच्चियों को आगे की पढ़ाई में सुविधा मिल सके।ग्राम पंचायत जमुनिया शिक्षा के मामले में फिसड्डी था। ऐसे में पहल कर पहले कक्षा पांचवीं तक और अब आठवीं तक की पढ़ाई आरंभ करायी। वे यह मानती हैं कि लड़कों का स्कूल अलग और लड़कियों का स्कूल अलग करने के फेर में बहुत सारी सुविधायें बंट जाती हैं तो क्यों न दोनों को एकसाथ शिक्षा दी जाये। इसके पीछे उनकी यह सोच भी थी कि दो अलग स्कूलों के लिये भवन, शिक्षक और तमाम जरूरतें दुगुनी हो जाती हैं इसलिये उन्होंने लड़के-लड़कियों की शिक्षा का प्रबंध एक साथ किया। इस समय साढ़े चार सौ बच्चे शिक्षा पा रहे हैं जिसमें 40 फीसद लड़कियां हैं। सौ लड़कियों के लिये छात्रावास की व्यवस्था भी सरपंच गीता राठौर के प्रयासों से हो सकी है। फिलवक्त जरूरत पूर्ति के लिये पंचायत भवन को छात्रावास बनाया गया है। छात्रावास भवन बनने के बाद उन्हें वहां शिफ्ट कर दिया जाएगा।लगभग ढाई हजार की आबादी वाला यह ग्राम पंचायत जमुनिया जिले के सीहोर ब्लाक के अन्तर्गत आता है। इस ब्लाक में 144 ग्राम पंचायतें हैं किन्तु इन गांवों से भी बच्चियां पढ़ने के लिये जमुनिया आती हैं। गीता राठौर कहती हैं कि जब आसपास की बच्चियां भी मेरे गांव में पढने आती हैं तो मुझे बेहद खुशी मिलती है। लगता है कि जो सपना मैंने देखा था, वह पूरा हो रहा है। सरपंच गीता राठौर ने स्कूल में अध्यापन के लिये दस शिक्षकों के साथ चार अतिथि शिक्षकों का इंतजाम भी कर रखा है। शासन के मध्यान्ह भोजन का लाभ विद्यार्थियों को मिले और गांव की महिलाओं को काम, इस दृष्टि से गांव की स्वसहायता समूह के जिम्मे ही मध्यान्ह भोजन है। सरपंच गीता राठौर समय समय पर इसकी पड़ताल करने तो जाती ही हैं, उनके औचक निरीक्षण के कारण भी सब चीजें नियमित बनी रहती हैं।ग्राम पंचायत जमुनिया में शिक्षा के साथ ही स्वास्थ्य सुविधाओं की बेहतरी के लिये भी वे प्रयास कर रही हैं किन्तु अभी मुकाम नहीं मिला है। ग्राम पंचायत की सरहद में वे एक प्रायमरी हेल्थ सेंटर की मांग कर रही हैं लेकिन अभी तक मांग अधूरी है। सात किलोमीटर दूर जिला मुख्यालय में इलाज के लिये जाना होता है। समय समय पर टीकाकरण के लिये स्वास्थ्य कार्यकर्ता आती हैं। इसके अलावा शासन की जननी सुरक्षा योजना आदि का लाभ दिलवाने का प्रयास करती हैं। नशामुक्त ग्राम पंचायत का दर्जा भले ही जमुनिया को न मिला हो किन्तु नशा करने वालों के लिये दंड का इंतजाम है। शराब के सरकारी ठेके भी ग्राम पंचायत जमुनिया में नहीं होता है। ग्राम पंचायत जमुनिया को आदर्श ग्राम पंचायत, निर्मल ग्राम पंचायत एवं सर्वश्रेष्ठ कार्य करने के लिये पुरस्कृत किया जा चुका है। सरपंच गीता राठौर की इन उपलब्धियां केवल गांव वालों तक सीमित नहीं है बल्कि स्कूल की किताबों में भी पढ़ाया जा रहा है। 11वीं कक्षा की राजनीति विज्ञान में एक पाठ गीता राठौर पर भी समाहित है जिसमें उनके व्यक्तित्व और उनके कार्यों के बारे में बताया गया है। गीता राठौर की उपलब्धि बड़ी है लेकिन वे इसे नहीं मानतीं बल्कि कहती हैं कि बालिका शिक्षा का सौफीसदी लक्ष्य वे पूरा कर लेंगी तभी उन्हें लगेगा कि वे कुछ कर पायी हैं। सरपंच गीता राठौर मानें या न मानें लेकिन आज की तारीख में ग्राम पंचायत जमुनिया गीता राठौर से और गीता राठौर ग्राम पंचायत जमुनिया के नाम के पूरक बन गये हैं।

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