मदनलाल को गुस्सा क्यों न आये...
-मनोज कुमार
मदनलाल शरद जोशी की कहानी के किसी एक आम किरदार की तरह हैं। फर्क इतना है कि मदनलाल इस समाज में हैं और मध्यप्रदेश के उन लाखों लोगों में हैं जो किसी की कामयाबी को अपना मानते हैं। उनका यह मानना एक हिन्दुस्तानी होने के नाते है और ऐसे लोग हिन्दुस्तान को एक परिवार मानते हैं। जो लोग एक भारतीय की कामयाबी पर जश्न मनाते हैं, उन्हें पूरा हक है कि ऐसी मोहब्बत को ठुकराने वालों पर गुस्सा किया जाए। उज्जेन के मदनलाल को इस बात का गुस्सा है कि भारतीय टेनिस स्टार सानिया मिर्जा में उन्होंने अपनी लाडली की सूरत देखी। उन्होंने भीतर ही भीतर कहीं सपना पाल लिया कि उनकी लाडली भी सानिया की तरह उनके अपने हिन्दुस्तान का नाम रोशन करेगी। अपने सपने की बुनियाद उन्होंने कोई आठ बरस पहले पैदा हुई अपनी बिटिया का नाम सानिया रख कर डाला था। संभव है कि मदनलाल अपनी लाडली को परियों के किस्से सुनाने के बजाय सानिया की बातें सुनाता होगा। बच्ची को बताता रहा होगा कि सानिया खेलती कैसे है...आदि इत्यादि। सानिया को लेकर इतने संवेदनशील मदनलाल का दिल टूट गया जब उसने खबर पढ़ी कि सानिया ने पाकिस्तानी क्रिकेटर से शादी रचा ली। यह पीड़ा एक भारतीय मन की थी जिसमें उसका देशप्रेम कूट कूट कर भरा है। ऐसे में वह इस तरह के किसी फैसले की उम्मीद नहीं कर सकता था। करना भी नहीं चाहिए था। सानिया के इस फैसले ने एक पल में मदनलाल का मन बदल दिया। उसने जिस उत्साह और उम्मीद के साथ अपनी बिटिया का नाम सानिया रखा था, उसे उसने एक पल में संगीता में बदल दिया। मदनलाल का यह गुस्सा नाजायज नहीं है। उन्हें गुस्सा नहीं आता तो उनका हिन्दुस्तानी मन दुखी रहता किन्तु उनके गुस्से ने हिन्दुस्तान का प्यार पा लिया है। सानिया किससे शादी करती है या नहीं, यह उसका निहायत निजी मामला हो सकता था तब जब वह सिर्फ और सिर्फ सानिया मिर्जा होती जैसा कि हिन्दुस्तान में करोड़ों की तादाद में लाड़ली हैं जिनकी अपनी कोई पहचान नहीं हैं। जो समाज की उपेक्षा के कारण तिल तिल कर जीने के लिये विवश हैं। जिनके नाम पर कोई मदनलाल अपनी लाडली का नाम नहीं रखता है। यहां सानिया मिर्जा का मामला एकदम अलग है। सानिया अब इस देश की नाम है, पहचान है और यह पहचान कहीं गुम हो जाए तो भला कोई हिन्दुस्तानी कैसे इसे मंजूर करे? मेरा मानना है कि मदनलाल जैसा गुस्सा हर किसी को आना चाहिए और जिसे गुस्सा नहीं आता है, उसे आत्मविवेचन करना चाहिए कि आखिर हम कहां खड़े हैं।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं मीडिया अध्येता हैं)
सम्पर्क : ३ जूनियर एमआईजी, द्वितीय तल, अंकुर कॉलोनी, शिवाजीनगर, भोपाल-१६ मो। ०९३००४६९९१८
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