पांच मार्च जन्मदिवस पर विशेष
सर्वधर्म-समभाव के मार्ग पर शिवराजसिंह चौहान
मध्यप्रदेश देश का ह्दय प्रदेश है। मध्यप्रदेश को लघु भारत भी कहा जाता है। यह कहावत नहीं बल्कि ऐतिहासिक सच्चाई है जो इतिहास के पन्नों पर दर्ज है। मध्यप्रदेश की अपनी कोई निज बोली नहीं है, उसकी बोली देश की बोली है। वह बोली जो भारतवर्ष के हर राज्य में बोली जाती है। मध्यप्रदेश के झाबुआ से लेकर मंडला तक हर राज्य के वाशिन्दे रहते आये हैं। जिस प्रदेश में देश का दिल धड़कता हो, उस प्रदेश से समाज की उम्मीदें और भी बढ़ जाती हैं। यह उम्मीदें तब और भी सार्थक हो जाती हैं जब समाज में जात-पात और अलगावाद का बोलबाला हो। कदाचित कुछ हिस्से तो इसी बुनियाद पर स्वयं का अस्तित्व बनाये हुए हैं। कहीं कहीं यह अलगवाद, जातिवाद ही उनकी पहचान बन गयी है। मध्यप्रदेश इस बात पर गर्व कर सकता है कि उसका अपना प्रदेश इन सब पापों से मुक्त रहा है।
सर्वधर्म, समभाव इस प्रदेश की पहचान रही है। मध्यप्रदेश एक सम्पूर्ण भारतीय राज्य के रूप में व्यवहार करता है। मध्यप्रदेश का यह गौरव तब और बढ़ जाता है जब राज्य के मुख्यमंत्री श्री शिवराजसिंह चौहान राजनीति से परे हटकर शासन नीति को सर्वधर्म - समभाव के मार्ग पर चलकर नये रूप में परिभाषित करते हैं। शिवराजसिंह मुख्यमंत्री के नाते हर धर्म और सम्प्रदाय के लिये जो स्नेह और सम्मान का भाव प्रगट करते रहे हैं, वह निश्छल है। इस सम्मान में लोकप्रियता हासिल करने का भाव शून्य है बल्कि लोगों में यह विश्वास जगाने की उनकी कोशिश रही है कि सरकार सबकी है, सब सरकार के हैं। मध्यप्रदेश के लोगों को उनके अपने प्रदेश के प्रति भाव जगाने की
कोशिश ने उन्हें एक धर्मनिरपेक्ष राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में स्थापित किया है।
अपनी स्थापना के साढ़े पांच दशक से ज्यादा समय गुजर जाने के इस दौर में मध्यप्रदेश ने अनेक मुख्यमंत्री देखें हैं। सबकी अपनी रीति और नीति रही है। मुख्यमंत्री के रूप में शिवराजसिंह चौहान इनसे परे नहीं है लेकिन इन सबके बावजूद उन्होंने अपनी एक बड़ी लकीर खींचने की कोशिश की है, जिसमें वे कामयाब दिखते हैं। एक किसान पुत्र होने के नाते सहजता उनमें जन्मजात है और राजनीतिज्ञ होने के नाते विनम्रता भी किन्तु एक कुशल शासक के रूप में उन्होंने मध्यप्रदेश की पहचान शांति का टापू को एक नया अर्थ दिया है। बरबस यह स्मरण करना थोड़ा मुश्किल होता है कि मुख्यमंत्री शिवराजसिंह के पहले मुख्यमंत्री के आंगन में ईद, गुरूनानक जयंती, क्रिसमस, गुड़ीपड़वा, मकर संक्राति के साथ ऐसे जलसे कभी हुए होंगे लेकिन कतारबद्ध नहीं। एक बाद एक इन आयोजनों ने हर वर्ग, हर धर्म और हर सम्प्रदाय के लोगों का विश्वास जीत लिया। सबने मुख्यमंत्री शिवराजिंसिंह की सफलता की कामना की। कोई त्योहार, कोई पर्व, कोई उत्सव ऐसा नहीं था जहां मुख्यमंत्री शिवराजसिंह स्वयं अपने परिवार के साथ मेहमानों के स्वागत में आतुर न हों।
मध्यप्रदेश को शांति का टापू कहा जाता है और लघु भारत के नजरिये इस प्रदेश की तासीर धर्मनिरपेक्ष होने की उम्मीद सहज ही है। मध्यप्रदेश में वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है और शिवराजसिंह चौहान इस सरकार में मुख्यमंत्री। इस नाते उन पर एक खास विचारधारा के पोषक होने का आरोप उन पर लग सकता था लेकिन उन्होंने अपने आपको साफ बचा लिया।
राजनीति में आरोप-प्रत्यारोप मायने नहीं रखता है और इस मायने में शिवराजसिंह सरकार पर प्रतिपक्षी दलों ने अनेक आरोप दागे लेकिन इन आरोपों में उन पर किसी खास विचारधारा का आरोप नहीं लगा। इसका सबसे बड़ा कारण था कि शिवराजसिंह इस देश के सर्वमान्य राजनेता अटलविहारी वाजपेयी का अनुसरण करना। राष्ट्रीय राजनीति में जितना विशालकाय कद अटलजी का है और उन्हें सभी दल उतना ही सम्मान देता है लगभग यही तस्वीर शिवराजसिंह की बन रही है। उनके बारे में लोगों की धारणा बन गयी है कि वे सर्वधर्म-समभाव के रास्ते पर चलने वाले राजनेता हैं।
लगातार दूसरी दफा मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आसीन शिवराजसिंह के लिये यह अवसर केवल राजनीतिक नहीं था बल्कि जनसरोकार की प्रतिबद्धता के चलते उन्हें यह जिम्मेदारी मिली। राज्य की महिलाओं, किसानों, बच्चों, जनजातीय समाज के लिये उनकी चिंता किसी से छिपी नहीं है। मुख्यमंत्री निवास पर चौपाल बुलाकार लोगों से उनका हाल जानने की एक नयी परम्परा का श्रीगणेश कर शिवराजसिंह ने आम आदमी और मुख्यमंत्री आवास की दूरी खत्म करने की कोशिश की है तो लगातार सफर कर लोगों से मिलकर उनका हाल जानने के लिये पहुंचने के उनके कार्यक्रम को नाम दिया गया जनदर्शन। पांव पांव वाले भैया के रूप में अपनी पहचान बनाये रखने वाले मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान कभी स्वयं को मुख्यमंत्री के रूप में नहीं बल्कि समाज के सेवक के रूप में देखते हैं। उनकी यह निच्छलता, उनकी यह सहजता, उनकी यह सादगी भला किसे नहीं मोह लेगी राजनीति के इस युवा मुख्यमंत्री से लोगों की आस बढ़ रही है। वे राजनीतिक के स्वार्थी रास्तों से खुद को परे रखे हुए हैं। उनके पैर लालच के रास्ते पर चलकर सत्ता के सिंहासन पर बैठने की कभी नहीं रही है। उनके मन की लालसा अपने मध्यप्रदेश को शिखर पर देखने की रही है और यही कारण है कि आओ बनाये अपना मध्यप्रदेश अथवा स्वर्णिम मध्यप्रदेश का उनका सपना सच होता दिख रहा है। जिस राज्य की सड़कों का मतलब गड्ढ़ा हुआ करता था, आज उसी मध्यप्रदेश की सड़कें मखमल सी हो गई हैं। सड़कों का बन जाना एक प्रक्रिया है और किसी भी सरकार का दायित्व लेकिन सड़कें समय पर बन जायें, उद्योग चल कर आये, युवाओं को रोजगार मिले, यह प्रक्रिया नहीं, संकल्प की बात है और इस संकल्प को साकार करते हुए आप देख सकते हैं मध्यप्रदेश में । राज्य के पूर्वजों-पुरखों का स्मरण कर उन्हें नमन करने की वे औपचारिकता पूरी नहीं करते हैं बल्कि उनके कार्यो को स्थायी पहचान देकर भावी पीढ़ी के लिये प्रेरणास्रोत के रूप में हमेशा हमेशा के लिये अमर कर देते हैं। । लाडली के रास्ते बिटिया के आंखों में मुस्कराहट देखने के लिये बेताब मुख्यमंत्री शिवराजसिंह उन राज्यों के लिये भी रोल मॉडल बन गये हैं जिन्होंने कभी बिटिया बचाने के लिये ऐसी प्रतिबद्धता देखी नहीं थी। शिवराजसिंह ने मुख्यमंत्री के रूप में और स्वयं शिवराजसिंह के रूप में मध्यप्रदेश को एक अलग पहचान और नाम दिया है। ऐसा यशस्वी जन्मदिन वे चिरकाल तक मनाते रहें, यह मंगल कामना पूरे प्रदेश की होगी, मध्यप्रदेश की होगी।
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