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एक नयी सुबह की आस मे

-अनामिका
छत्तीसगढ़ माओवादी हिंसा का शिकार रहा है. कुछ महीने पहले हुये भीषण हादसे के बाद छत्तीसगढ़ समेत पूरा देश सिहर उठा था. यह एक भयानक हादसा था. अब जबकि राज्य में 2013 के विधानसभा चुनाव होना था तब लोगों में सहज आशंका थी कि यह चुनाव भी रक्तरंजित होगा और माओवादी चुनाव को निर्विघ्र सम्पन्न नहीं होने  देंगे. यह आशंका शासन-प्रशासन के साथ राजनीतिक और सामाजिक हल्कों में व्याप्त थी. इसी के मद्देनजर कड़े सुरक्षा के प्रबंध किये गये थे लेकिन इन सुरक्षा प्रबंधों को पहले भी माओवादी भेद चुके हैं सो इस बार भी आशंका थी कि कुछ बड़ा हादसा हो सकता है. सारी आशंकाओं और पूर्वानुमानों को धता बताते हुये राज्य में 2013 के विधानसभा चुनाव के लिये मतदान शांतिपूर्ण सम्पन्न हो गया तो यह एक चौंकाने वाली बात थी. यह माओवादियों के पस्त हौसले का सबब दिख रहा था तो छत्तीसगढ़ की जनता का हिंसा के खिलाफ लोकतंत्र पर विश्वास जताकर अहिंसक तरीके से विरोध किये जाने का संदेश भी मिला. यह सब कुछ इतना राहत देने वाला था कि कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था कि तूफान के आने के पहले की शांति के बीच तूफान का आना तो दूर सरकने की भी आवाज सुनाई नहीं दी.
छत्तीसगढ़ में माओवादियों का आतंक लगातार बढ़ता चला जा रहा है. यह बात भी अब किसी से छिपी नहीं है कि माओवादियों पर वर्तमान व्यवस्था पर भरोसा नहीं है. यही कारण है कि राज्य की कानून व्यवस्था को जब-तब भंग करने की मंशा से हिंसक वारदात करते रहे हैं. कुछ माह पहले जब कांग्रेस के दिग्गज नेताओं को मौत के घाट उतारा तो यह आशंका और मजबूत हो चली थी कि आने वाले चुनाव में माओवादी कहर बरपा सकते हैं. इन सूचनाओं से माओवादियों का हौसला बढ़ा या नहीं, यह तो नहीं कहा जा सकता लेकिन यह तय है कि माओवादियों की हिंसक वारदातों से छत्तीसगढ़ की शांतिप्रिय जनता ऊब चुकी थी. वह नहीं चाहती थी कि उनका राज्य हिंसक गतिविधियों का केन्द्र बने और उनकी जिंदगी में रोज तूफान आये. इसी के चलतेे लोगोंने लोकतंत्र पर विश्वास जाहिर किया और हिंसा का जवाब अहिंसक ढंग से देते हुये भारी मतदान किया. छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में 75 प्रतिशत मतदान का होना इस बात का संकेत है कि राज्य की जनता पर माओवादियों का कोई प्रभाव नहीं हैं. हर आदमी का विश्वास लोकतंत्र पर है और वह एक निर्वाचित सरकार पर ही भरोसा करती है.
छत्तीसगढ़ में मतदाताओं ने जो साहस दिखाया और जो संदेश माओवादियों को दिया, उससे माओवादियों के हौसले पस्त जरूर होंगे. पिछले दो दशकों से लगातार बढ़ती हिंसक गतिविधियों ने कानून व्यवस्था को तार तार कर दिया था. लोग अब डरने और घबराने के बजाय इन हिंसक गतिविधियों से उबने लगे थे और उनके पास इससे छुटकारा पाने का एक ही रास्ता था कि कैसे भी हो, लोकतंत्र को विजयी बनाना है. इस चुनाव में सबसे दिलचस्प और अहम बात यह रही कि माओवादियों के प्रभाव वाले क्षेत्रों में भी आदिवासी मतदाताओं ने भारी संख्या में मतदान कर यह बात स्थापित कर दी कि उन्हें अतिवादी नहीं बल्कि एक उनकी चुनी हुई सरकार चाहिये.
विधानसभा चुनाव 2013 के शांतिपूर्ण एवं कामयाबी के लिये राज्य एवं केन्द्र दोनों का सहयोग रहा. राज्य सरकार जमीनी हकीकत से वाकिफ थी तो केन्द्र सरकार ने पूरे साधन मुहैया कराकर माओवादियों के खिलाफ राज्य सरकार को हौसला दिया. माओवादियों के आतंक के बाद भी भारी मतदान ने यह बात भी साफ हो गई कि राज्य सरकार के कार्यों से मतदाताओं को कोई बड़ी शिकायत नहीं है. अब यह चुनाव परिणाम ही बतायेगा कि किसकी जय होगी और कौन पराजित लेकिन फिलहाल तो छत्तीसगढ़ में लोकतंत्र की जय जय हो रही है. मतदाताओं की सक्रियता एवं निर्भयता से यह बात भी साफ हो जाती है कि आने वाला समय छत्तीसगढ़ का होगा, विकास का होगा और आज जो छत्तीसगढ़ का स्वरूप है, वह और चमकीला तथा दूसरों के लिये नजीर साबित होगा.

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