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रिसर्च जर्नल ‘समागम’ का विशेषांक महात्मा गांधी के डेढ़ सौ साल पर

महात्मा गांधी कल 2 अक्टूबर को अपने जन्म के डेढ़ सौ वर्ष में प्रवेश कर जाएंगे. इस विशेष अवसर पर भोपाल से प्रकाशित रिसर्च जर्नल ‘समागम’ ने सौ पृष्ठों का ‘गांधी : 150 साल’ शीर्षक से विशेषांक का प्रकाशन किया है. इस विशेषांक में विभिन्न विषयों पर गांधी को केन्द्र में रखकर सुधि लेखकों यथा डॉ. विजयबहादुर सिंह, मनोज कुमार श्रीवास्तव, घनश्याम सक्सेना, रामेश्वर शुक्ल ‘पंकज’ जगदीश उपासने, कुलपति एमसीयू, राकेश कुमार पालीवाल प्रधान आयकार आयुक्त सहित अनेक नामचीन लेखकों के आलेख हैं. स्वाधीनता संग्राम के दौरान मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ में गांधी प्रवास का विस्तार से विवेचन किया गया है तो गांधी से प्रेरणा पाकर कैसे लोगों का जीवन बदला, इस पर भी लेख पढऩे को मिल जाएंगे. विशेषांक में सबसे खास लेखों का संग्रह है बा और बापू, बापू के निज सचिव महादेव देसाई, गुरु रवीन्द्रनाथ टैगोर और चम्पारण आंदोलन के लिए महात्मा गांधी को चम्पारण आने के लिए प्रेरित करने वाले राजकुमार शुक्ल को पढऩा अच्छा लगता है. गांधी एक कुशल पत्रकार और कम्युनिकेटर थे, इस पर सुपरिचित पत्रकार अरविंद मोहन और राजेश बादल के लेख एक नई दृष्टि देते हैं. वरिष्ठ पत्रकार एवं मीडिया अध्येता मनोज कुमार के सम्पादन में नियमित रूप से 18 वर्षों से प्रकाशित ‘समागम’ ने इसके पूर्व भारतीय सिनेमा के सौ साल तथा भोपाल में सम्पन्न विश्व हिन्दी सम्मेलन के अवसर पर इसी तरह के विशेषांक का प्रकाशन कर चुके हैं.

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विकास के पथ पर अग्रसर छत्तीसगढ़

-अनामिका कोई यकीन ही नहीं कर सकता कि यह वही छत्तीसगढ़ है जहां के लोग कभी विकास के लिये तरसते थे।  किसी को इस बात का यकिन दिलाना भी आसान नहीं है कि यही वह छत्तीसगढ़ है जिसने महज डेढ़ दशक के सफर में चौतरफा विकास किया है। विकास भी ऐसा जो लोकलुभावन न होकर छत्तीसगढ़ की जमीन को मजबूत करता दिखता है। एक नवम्बर सन् 2000 में जब समय करवट ले रहा था तब छत्तीसगढ़ का भाग्योदय हुआ था। साढ़े तीन दशक से अधिक समय से स्वतंत्र अस्तित्व की मांग करते छत्तीसगढ़ के लिये तारीख वरदान साबित हुआ। हालांकि छत्तीसगढ़ राज्य बन जाने के बाद भी कुछ विश्वास और असमंजस की स्थिति खत्म नहींं हुई थी। इस अविश्वास को तब बल मिला जब तीन वर्ष गुजर जाने के बाद भी छत्तीसगढ़ के विकास का ब्लूप्रिंट तैयार नही हो सका था। कुछेक को स्वतंत्र राज्य बन जाने का अफसोस था लेकिन 2003 में भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने सत्ता सम्हाली और छत्तीसगढ़ के विकास का ब्लू प्रिंट सामने आया तो अविश्वास का धुंध छंट गया। लोगों में हिम्मत बंधी और सरकार को जनसमर्थन मिला। इस जनसमर्थन का परिणाम यह निकला कि आज छत्तीसगढ़ अपने चौतरफा विकास के कारण देश के नक्शे

शोध पत्रिका ‘समागम’ का नवीन अंक

  शोध पत्रिका ‘समागम’ का नवीन अंक                                       स्वाधीनता संग्राम और महात्मा गांधी पर केन्द्रीत है.                      गांधी की बड़ी यात्रा, आंदोलन एवं मध्यप्रदेश में                                          उनका हस्तक्षेप  केन्दि्रय विषय है.

टेक्नो फ्रेंडली संवाद से स्वच्छत

मनोज कुमार           देश के सबसे स्वच्छ शहर के रूप में जब इंदौर का बार-बार जिक्र करते हैं तो मध्यप्रदेश को अपने आप पर गर्व होता है, मध्यप्रदेश के कई शहर, छोटे जिलों को भी स्वच्छ भारत मिशन के लिए केन्द्र सरकार सम्मानित कर रही है. साल 2022 में मध्यप्रदेश ने देश के सबसे स्वच्छ राज्य का सम्मान प्राप्त किया। स्वच्छता का तमगा एक बार मिल सकता है लेकिन बार-बार मिले और वह अपनी पहचान कायम रखे, इसके लिए सतत रूप से निगरानी और संवाद की जरूरत होती है. कल्पना कीजिए कि मंडला से झाबुआ तक फैले मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में बैठकर कैसे निगरानी की जा सकती है? कैसे उन स्थानों में कार्य कर रही नगरपालिका,  नगर परिषद और नगर निगमों से संवाद बनाया जा सकता है? एकबारगी देखें तो काम मुश्किल है लेकिन ठान लें तो सब आसान है. और यह कहने-सुनने की बात नहीं है बल्कि प्रतिदिन मुख्यालय भोपाल में बैठे आला-अधिकारी मंडला हो, नीमच हो या झाबुआ, छोटे शहर हों या बड़े नगर निगम, सब स्थानों का निरीक्षण कर रहे हैं और वहां कार्य करने वाले अधिकारी-कर्मचारियों, सफाई मित्रों (मध्यप्रदेश में सफाई कर्मियों को अब सफाई मित्र कहा जाता है) के