आखिरकार वही हुआ जिसकी संभावना और आशंका दोनों ही थी. थोडे इंतजार के बाद ही सही गर्वनर ने कमलनाथ सरकार को फ्लोर टेस्ट के लिए खत भेज ही दिया. यह तो होना ही था, ऐसी बात राजनीतिक विशलेषक का पहले से ही अनुमान था. मध्यप्रदेश की राजनीति में संविद सरकार के बाद यह दूसरा अवसर होगा जब इस तरह से राजनीतिक उलटफेर देखने को मिल रहा है. इस फ्लोर टेस्ट में कमलनाथ के लम्बे अनुभव की परीक्षा होगी और दिग्विजयसिंह की भी. फौरीतौर पर राजनीतिक विशलेषकों का मानना है कि कमलनाथ सरकार का प्रबंधन फेल हो चुका है और कदाचित उनकी सरकार गिरने की स्थिति में है. हालांकि फ्लोर टेस्ट से पहले कुछ कहना जल्दबाजी होगी. भाजपा जिस आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ रही है, उससे उन्हें अपनी जीत का भरोसा है.
मध्यप्रदेश में यह राजनीतिक बखेड़ा के लिए राजनीतिक विश£ेषलक राज्यसभा सीट को मानते हैं. ज्योतिरादित्य सिंधिया को समय से प्रदेश कांग्रेस की जिम्मेदारी दी जाती या फिर सिर पर खड़े राज्यसभा के लिए उन्हें राजी कर लिया जाता तो ना वे कांग्रेस से पलायन करते और ना ही नाथ सरकार के समक्ष यह राजनीतिक संकट उत्पन्न होता. कमलनाथ के बारे में विशलेषक कहते हैं कि वे राज्य को पटरी पर ला रहे थे लेकिन उनके कई अलोकप्रिय फैसले के कारण भी असंतोष बढ़ा। करीब सवा साल से किसी निगम मंडल में नियुक्ति नहीं की गई. नए मंत्रियों को सीधे केबिनेट मंत्री का दर्जा दिया गया और मंत्री-विधायकों के साथ उनका सीधा और लगातार संवाद नहीं होना भी असंतोष का एक कारण माना जा रहा है. सरकार बनने के बाद अपनी पहली प्रेस कांफ्रेंस में मीडिया पर कटाक्ष भी एक बड़ा कारण रहा.
अगले 48 घंटे ना केवल कमलनाथ सरकार के लिए बल्कि मध्यप्रदेश के लिए इम्तहान की घड़ी होगी. कौन जीतेगा और कौन पराजित होगा, यह तो समय के गर्भ में है लेकिन जो राजनीति स्थिति बन रही है, शांति के टापू मध्यप्रदेश के राजनीतिक शुचिता के लिए चिंता उत्पन्न करती है.
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