सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

अच्छी खबर

यह विश्वास बना रहे
मनोज कुमार
भारतीय स्त्रियों के चरित्र पर विश्वास जताते हुए अदालत ने अपनी टिप्पणी में कहा है कि भारतीय नारी पर संदेह नहीं किया जा सकता है। वे अपने खिलाफ बलात्कार का मामला यूंह ी दर्ज नहीं कराती हैं। अदालत ने यह टिप्पणी कर भारतीय स्त्री के गौरव को द्विगुणित किया है और कहना न होगा कि इससे भारतीय समाज का सिर गर्व से ऊंचा उठा है। भारतीय संस्कृति में स्त्रियों को सनातन काल से सर्वोपरि माना गया है। दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती के रूप में तब स ेअब तक पूजा जाता रहा है। यकिनन समय के बदलाव के साथ सोच में परिवर्तन आया है और समाज स्त्रियों को नयी भूमिका में देख रहा है। कल तक घर की चहारदीवारी के भीतर अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने वाली स्त्री आज आफिसों में अपने दायित्वों को निभा रही हैं। उनकी नयी जिम्मेदारियों के साथ उनके पहनावे में भी परिवर्तन आया है और महज पहनावा को ही यह मान लिया गया कि स्त्री बदल गयी है। उसके चरित्र पर अकारण लांछन लगाया जाने लगा। एक मामला पत्रकारिता की एक छात्रा के साथ पिछले दिनों सामने आया था। यह सब कुछ कुछ मानसिक रूप से बीमार लोगों की करतूतें हैं। स्त्री आज भी अपनी उसी भूमिका में है और इसका विस्तार ही माना जाना चाहिए।बाजार के नये रूप ने जरूर स्त्री को वस्तु बनाकर प्रदर्शन किया है और इसमें कुछ हद तक स्त्री भी दोषी हैं। उनके लिये पूरा आसमान खुला हुआ है और तब उन्हें किसी किस्म के समझौते की जरूरत नहीं होना चाहिए। हमारा मानना है कि यह सबकुछ अकारण नहीं है बल्कि इसके पीछे भी कोई मामला होगा। स्त्रियों के साथ ज्यादती पहले भी हो रही थी और अब भी हो रही है, इस बात से भला कौन इंकार करेगा। स्त्री को दबाने और कुचलने का सर्वाधिक पीड़ादायक यातना है तो उसके साथ बलात्कार करना। इसमें भी आरोपी बच निकलते थे लेकिन अदालत ने यह कह कर स्त्री का सम्मान बढ़ाया है कि उसने कह दिया, यह ीपर्याप्त है। हम सभी को उम्मीद करना चाहिए कि भारतीय स्त्री भी अपने पक्ष में दिये गये इस सम्मान को कायम रखने में आगे रहेगी और पापी पुरूष अब अपने दानवी रूपप र काबू पा सकेंगे। नये साल में भारतीय स्त्रियों को न केवल अदालत की बल्कि पूरे समाज की ओर से शुभकामनाएं हैं।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

विकास के पथ पर अग्रसर छत्तीसगढ़

-अनामिका कोई यकीन ही नहीं कर सकता कि यह वही छत्तीसगढ़ है जहां के लोग कभी विकास के लिये तरसते थे।  किसी को इस बात का यकिन दिलाना भी आसान नहीं है कि यही वह छत्तीसगढ़ है जिसने महज डेढ़ दशक के सफर में चौतरफा विकास किया है। विकास भी ऐसा जो लोकलुभावन न होकर छत्तीसगढ़ की जमीन को मजबूत करता दिखता है। एक नवम्बर सन् 2000 में जब समय करवट ले रहा था तब छत्तीसगढ़ का भाग्योदय हुआ था। साढ़े तीन दशक से अधिक समय से स्वतंत्र अस्तित्व की मांग करते छत्तीसगढ़ के लिये तारीख वरदान साबित हुआ। हालांकि छत्तीसगढ़ राज्य बन जाने के बाद भी कुछ विश्वास और असमंजस की स्थिति खत्म नहींं हुई थी। इस अविश्वास को तब बल मिला जब तीन वर्ष गुजर जाने के बाद भी छत्तीसगढ़ के विकास का ब्लूप्रिंट तैयार नही हो सका था। कुछेक को स्वतंत्र राज्य बन जाने का अफसोस था लेकिन 2003 में भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने सत्ता सम्हाली और छत्तीसगढ़ के विकास का ब्लू प्रिंट सामने आया तो अविश्वास का धुंध छंट गया। लोगों में हिम्मत बंधी और सरकार को जनसमर्थन मिला। इस जनसमर्थन का परिणाम यह निकला कि आज छत्तीसगढ़ अपने चौतरफा विकास के कारण देश के नक्शे

शोध पत्रिका ‘समागम’ का नवीन अंक

  शोध पत्रिका ‘समागम’ का नवीन अंक                                       स्वाधीनता संग्राम और महात्मा गांधी पर केन्द्रीत है.                      गांधी की बड़ी यात्रा, आंदोलन एवं मध्यप्रदेश में                                          उनका हस्तक्षेप  केन्दि्रय विषय है.

टेक्नो फ्रेंडली संवाद से स्वच्छत

मनोज कुमार           देश के सबसे स्वच्छ शहर के रूप में जब इंदौर का बार-बार जिक्र करते हैं तो मध्यप्रदेश को अपने आप पर गर्व होता है, मध्यप्रदेश के कई शहर, छोटे जिलों को भी स्वच्छ भारत मिशन के लिए केन्द्र सरकार सम्मानित कर रही है. साल 2022 में मध्यप्रदेश ने देश के सबसे स्वच्छ राज्य का सम्मान प्राप्त किया। स्वच्छता का तमगा एक बार मिल सकता है लेकिन बार-बार मिले और वह अपनी पहचान कायम रखे, इसके लिए सतत रूप से निगरानी और संवाद की जरूरत होती है. कल्पना कीजिए कि मंडला से झाबुआ तक फैले मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में बैठकर कैसे निगरानी की जा सकती है? कैसे उन स्थानों में कार्य कर रही नगरपालिका,  नगर परिषद और नगर निगमों से संवाद बनाया जा सकता है? एकबारगी देखें तो काम मुश्किल है लेकिन ठान लें तो सब आसान है. और यह कहने-सुनने की बात नहीं है बल्कि प्रतिदिन मुख्यालय भोपाल में बैठे आला-अधिकारी मंडला हो, नीमच हो या झाबुआ, छोटे शहर हों या बड़े नगर निगम, सब स्थानों का निरीक्षण कर रहे हैं और वहां कार्य करने वाले अधिकारी-कर्मचारियों, सफाई मित्रों (मध्यप्रदेश में सफाई कर्मियों को अब सफाई मित्र कहा जाता है) के