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पूर्वाग्रह से ग्रसित इतिहास लेखन बड़ी चुनौती- प्रो. चतुर्वेदी

 ‘भारतीय इतिहास की समस्यायें : चौरी चौरा पुनरावलोकन’

महू (इंदौर). ऐतिहासिक पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर जिस तरह का इतिहास लेखन किया गया है, वह हमारे समय की सबसे बड़ी चुनौती है. इतिहास लेखन प्रामाणिक एवं पूर्वाग्रह से मुक्त होना चाहिए ताकि हम वास्तविक स्थिति को जान सकें. यह बात इतिहासकार एवं आईसीसीआर के सदस्य प्रोफेसर हिमांशु चतुर्वेदी ने कहा. प्रोफेसर चतुर्वेदी निर्माणाधीन सेंट्रल विस्टा के बारे में  बताते हैं कि 9 स्तंभों की एक गैलरी है जिसमें भारतीय इतिहास की प्रामाणिक एवं आम आदमी के समझ में आने वाली भाषा में उल्लेख किया गया है. प्रोफेसर चतुर्वेदी डॉ. बीआर अम्बेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय महू एवं हेरिटेज सोसायटी पटना के संयुक्त तत्वावधान में आजादी का अमृत महोत्सव के अवसर पर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में चौरी-चौरा कांड  ‘भारतीय इतिहास की समस्यायें : चौरी चौरा पुनरावलोकन’ पर बोल रहे थे. प्रो. चतुर्वेदी ने कहा कि इतिहास में यह बात स्थापित कर दी गई है कि चौरी चौरा घटना 5 फरवरी 1922 को हुई थी जबकि वास्तविकता यह है कि चौरी चौरा की घटना 4 फरवरी, 1922 को सायं 4 बजे हुई थी. उन्होंने बताया कि वे स्वयं 6 माह तक चौरी चौरा क्षेत्र में घूमकर जमीनी स्तर पर इस पूरे मामले की तहकीकात की है और वास्तविक स्थिति को जाना है. अनेक दस्तावेज और लोगों से चर्चा के बाद यह बात स्पष्ट हुई है कि अब तक इतिहास में जो कुछ बताया गया, वह भ्रमित करने वाला है.
इतिहासकार प्रो. चतुर्वेदी ने इतिहास की समस्यायें : चौरी चौरा पुनरावलोकन’ विषय को दो भागों में विभक्त कर विस्तार से समझाया. उन्होंने बताया कि अब तक हमने चौरी चौरा की घटना के बारे में जो पढ़ा और सुना है, उसके विपरीत भी बहुत सारी बातें हैं. सौ साल तक बाबा राघवदास का कहीं उल्लेख नहीं मिलता है. यह वही बाबा राघवदास हैं जो चौरा चौरी घटना के समय जेल में बंद थे. रिहाइ के बाद उसी पुलिस स्टेशन के समक्ष सभा कर सवाल करते हैं और लोगों से चंदा इकट्टा कर 172 लोगों की फांसी की सजा के खिलाफ केस लडऩे के लिए पहले पंडित मोतीलाल नेहरू से और इसके बाद महामना मालवीय जी से मिलते हैं. मालवीय जी इस समय तक वकालत छोड़ चुके थे लेकिन बाबा राघवदास के अनुरोध पर केस लडऩे को तैयार होते हैं. इन 172 लोगों में केवल 29 लोगों को फांसीकी सजा हुई. इस तरह अनेक तथ्य हैं जिन्हें सामने लाने की जरूरत है. उन्होंने स्वाधीनता संग्राम के इतिहास के विभिन्न पक्षों पर विस्तार से प्रकाश डाला.
प्रोफेसर चतुर्वेदी सवाल करते हैं कि आखिर क्या कारण है कि अब तक ऐसी कोई सूची क्यों नहीं बनायी गई जिन्हें कालापानी और मांडले की सजा हुई? असल में ये वो लोग थे, जिनसे ब्रिटिश हुकूमत घबराती थी. प्रोफेसर चतुर्वेदी इतिहासकार आरसी मजूमदार का स्मरण करते हुए कहते हैं कि उन्होंने इतिहास में प्रामाणिक घटनाओंं और तथ्यों का उल्लेख किया था जिसे पूर्ववर्ती सरकार बदलना चाहती थी. इतिहासकार मजूमदार इसके लिए राजी नहीं हुए. उन्होंने कहा कि नेरेटिव किस तरह सेट किया जाता है और मीडिया ट्रायल की जो बात हम आज सुन रहे हैं, वह आज से सौ साल पहले भी होता था. इस संबंध में उन्होंने बताया कि अपने अध्ययन में 78 पत्र-पत्रिकाओं का संग्रह किया है, जो चौरा चारी घटना की निंदा कर रहे थे. वे इस बात के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी का धन्यवाद करते हैं कि आजादी का अमृत महोत्सव के अवसर पर इतिहास पुर्नलेखन का जो महती कार्य किया जा रहा है, उससे स्वाधीनता संग्राम को समझने में नई दिशा मिलेगी.
कार्यक्रम अध्यक्ष एवं कुलपति प्रो. आशा शुक्ला ने कहा कि मध्यप्रदेश के भाबरा वीर चंद्रशेखर की जन्म स्थली चंद्रशेखर आजाद नगर  में उनका पुण्य स्मरण करने के लिए विश्वविद्यालय की ओर से रैली का आयोजन किया था.कुलपति प्रो. आशा शुक्ला ने कहा कि आजादी का अमृत महोत्सव एक वैचारिक अनुष्ठान है. इसका आयोजन हम पूरे वर्ष कर दस्तावेजीकरण करेंगे. उन्होंने विषय-विशेषज्ञों से शोध आलेख भी भेजने का आग्रह किया. कार्यक्रम का संचालन हेरिटेज सोयायटी के महाननिदेशक श्री आनंदोतोश द्विवेदी ने किया एवं आभार प्रदर्शन किया. कार्यक्रम समन्वय विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार श्री अजय वर्मा एवं योगिक साइंस विभागा के शिक्षक श्री अजय दुबे ने किया. प्रो. डीके वर्मा का विशेष सहयोग रहा.  

 

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