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पांच नहीं, मनुष्य अपने समाथ्र्य के अनुरूप अधिकाधिक पेड़ लगाये- शर्मा

 विश्व पर्यावरण दिवस पर राष्ट्रीय संगोष्ठी 

महू।  ‘पांच पेड़ लगाओ का संकल्प गलत है बल्कि प्रत्येक मनुष्य अपने सामथ्र्य के अनुरूप अधिकाधिक पौधा लगाये. प्रकृति ने मनुष्य को समाथ्र्य दिया है कि वह अपने कार्यों से प्रकृति का ऋण चुकाये.’ यह बात पद्यश्री से सम्मानित श्री महेश शर्मा पर्यावरण दिवस के अवसर पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में मुख्य अतिथि की आसंदी से बोल रहे थे. संगोष्ठी का विषय ‘प्री एंड पोस्ट कोविड-19 : इम्पेक्ट ऑफ एनवायरमेंटएंड बॉयोडॉयवर्सिटी’. संगोष्ठी का आयोजन डॉ. बीआर अम्बेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय, महू, स्कूल ऑफ सोशल साइंस, यूजीसी स्ट्राइड प्रोजेक्ट, नेशन एकेडमी ऑफ साइंस चेप्टर, भोपाल एवं सोसायटी ऑफ लाइफ साइंसेंस के संयुक्त तत्वावधान में  किया गया था. मुख्य अतिथि श्री शर्मा ने कहा कि जो रचा गया है, वह मनुष्य के पुरुषार्थ का परिणाम है और जो खराब हो रहा है, वह उसके भीतर का लालच है. उन्होंने मनुष्य एवं पशु की खासियत को स्पष्ट करते हुए कहा कि पशु उपभोग के लिए होता है लेकिन मनुष्य परामर्थ के लिए होता है. मनुष्य समस्या पैदा करता है, पशु नहीं.  उन्होंने कहा कि आप कहीं भी पेड़ लगायें, कहीं भी जलसंरक्षण करें, वह पूरे समाज के लिए उपयोगी होता है. उन्होंने आयोजन के लिए धन्यवाद करते हुए कहा कि आज का दिन परम्परा के हस्तांतरण करने का दिन है.    

संगोष्ठी के मुख्य वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलपति प्रो. अखिलेश पांडे ने कहा सुखमय जीवन के लिए संस्कृति और प्रकृति में संतुलन आवश्यक है. संस्कृति और प्रकृति में असंतुलन से विनाश की स्थिति बनती है. उन्होंने भविष्य के खतरे के प्रति सचेत करते हुए कहा कि पर्यावरण में जो सुधार दिख रहा है, वह स्थायी नहीं है. बल्कि इसे स्थायी करने के लिए हमारी जीवनशैली में परिवर्तन लाना होगा. उन्होंने कोरोना महामारी एवं फंगस डिसीस पर विस्तार से अपनी बात रखी. इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रोफेसर यूसी श्रीवास्तव ने कहा कि कोरोना महामारी नई नहीं है. यह बार बार रूप बदल कर आता है. 1960 में अलग अलग नाम से आया था जिसे आज हम कोविड-19 के नाम से जान रहे हैं. उन्होंने कहा कि कोविड-19 की दूसरी लहर खतरनाक है. उन्होंने कहा कि लॉकडाउन से जो हमें जलवायु सुधार का लाभ दिख रहा है, वह शॉर्टटर्म है लेकिन भविष्य में यह नुकसानदेह होगा. उन्होंने कहा कि रिसर्च लैब बंद है तो रिसर्च वर्क नहीं हो पा रहा है. जमीनी कार्य थम गया है. उन्होंने कहा कि एक संतुलित समाज के लिए संतुलन की जरूरत होती है. उन्होंने पर्यावरण एवं जैव विविधता के संदर्भ में विस्तार से अपनी बात रखी.

    महर्षि दयानंद यूर्निवसिटी, रोहतक हरियाणा की प्राणीशास्त्र विभागाध्यक्ष डॉ. विनीता शुक्ला ने कहा कि कोरोना काल में हम उन सब जीव जंतुओं को देख पा रहे हैं जो विलुप्ति के कगार पर थे. उन्होंने कहा कि ये अच्छा संकेत है लेकिन संरक्षण और संवर्धन के लिए कोरोना महामारी की समाप्ति के बाद सुनियोजित प्रयास करना होगा. उन्होंंने प्रेजेन्टशन के माध्यम से बताया. मेपकॉस्ट, भोपाल में वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. राजीव सक्सेना ने धरातल से जुड़ी बातें कही. उनका जोर था सेटेलाइट माध्यमों का उपयोग कर जीवन को सरल बनाना. आर्गेनिक खेती पर जोर देते हुए डॉ. सक्सेना ने बताया कि ओबेदुल्लागंज में मेपकास्ट आर्गेनिक खेती कर रहा है और लोगों को प्रशिक्षण के उपरांत रोजगार भी उपलब्ध करा रहा है. उन्होंने गांवों से पलायन को एक बड़ी समस्या के रूप में चिहिंत करते हुए कहा कि केन्द्र सरकार की विभिन्न योजनाओं का लाभ लेकर ग्रामीण स्तर पर संभावना बढ़ी है. कस्तूरी मृग का उदाहरण देते हुए डॉ. सक्सेना ने कहा कि मृग की नाभि में ही कस्तूरी होता है लेकिन वह ढूंढता है कि सुगंध कहां  से आ रहा है. समस्या का हल हमारे पास है, बस उसे क्रियान्वयन करने की जरूरत है.
    शासकीय महाविद्यालय सतना के प्रोफेसर शिवकेश प्रताप सिंह ने संगोष्ठी के प्रमुख बिंदुओं का उल्लेख किया. उन्होंने कहा कि कोरोना महामारी के बाद उत्पन्न स्थिति के चलते लॉकडाउन से जो परिणाम आए हैं. अब कई देशों की मांग है कि वर्ष में एक निश्चित समय के लिए लॉकडाउन लगाया जाए ताकि जलवायु स्वस्थ हो सके. पर्यावरण एवं जैविक संरक्षण कानून की समीक्षा करने, संशोधन करने एवं सख्ती से लागू करने पर बल दिया गया. आत्मनिर्भर भारत की तर्ज पर नगरीय संस्थायें अनुदान देकर सोलर पेनल लगाने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करें. उन्होंने वॉटर हार्वेस्टिंग कम्लसरी करने की बात भी बतायी. पौधा लगाकर औपचारिकता पूरी करने के स्थान पर उसके संरक्षण पर भी ध्यान दिया जाए. घटते वनक्षेत्र को बढ़ाकर क्षतिपूर्ति की जाए. अपने अध्यक्षीय उद्बबोधन में कुलपति डॉ. आशा शुक्ला ने कहा कि हमारी परम्परा में जीव-जंतु एवं पेड़-पौधों से रिश्ता बनाने की पुरानी रीत है. नागपंचमी या तुलसी पूजन इसका एकाध उदाहरण है. उन्होंने कहा कि अग्रिहोत्र एवं वैदिक यज्ञ पर रिसर्च करने का प्रस्ताव है.
    कार्यक्रम के आरंभ में डीन प्रो. डीके वर्मा ने विश्वविद्यालय का परिचय दिया एवं विस्तार से बताया कि वर्ष 2020 से कोरोना के बाद से लगातार अध्ययन किया जा रहा है. उन्होंने कुलपति डॉ. आशा शुक्ला का धन्यवाद करते हुए कहा कि वेबीनार के माध्यम से विश्वविद्यालय में संवाद का सिलसिला जारी रख. प्रो. वर्मा ने बताया कि अब तक 100 संगोष्ठी हो चुकी है और 150 का कार्यक्रम तैयार है. कार्यक्रम का संचालन डॉ. मनमोहनप्रकाश श्रीवास्तव ने किया. संगोष्ठी को कामयाब बनाने में रजिस्ट्रार श्री अजय वर्मा एवं उनकी टीम का सक्रिय सहयोग रहा. 10 जून को नई शिक्षा नीति: कौशल विकास में शिक्षकों की भूमिका पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया जा रहा है.

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