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बापू तेरे नाम

न बाप बड़ा न भैया…सबसे बड़ा रुपया…बापू मत रोना
मनोज कुमार
गुजरात से अभी अभी देशबन्धु के ईपेपर से ताजा खबर मिली है कि किसी समय बल्कि कुछ दिनों पहले तक शराबबंदी के लिये सराहे जाने वाले बापू की धरती पर अभी तो शराब की कुछ बूंदें गिराने की अनुमति मिल गयी है। इस अनुमति के साथ ही राज्य के प्रशासनिक अधिकारियों में प्रसन्नता का माहौल है। शराब पीने की छूट देने के बाद सैलानियों का आना बढ़ गया है। जाहिर है कि राज्य सरकार का खजाना भी भरेगा लेकिन क्या किसी ने चिंता करने की कोशिश की है कि गुजरात की ख्याति गांधीजी से है और इस ख्याति को चार चांद लगाते हैं यहां की शराबबंदी। और जब वहां शराब पीने की छूट पहले चुनिंदा जगहों पर मिलेगी, फिर उसका विस्तार होगा और देखते ही देखते बापू की पुण्यभूमि भी शराब में डूब जाएगी। हालांकि मुझे नहीं मालूम की राज्य में किसी तरह की शराब पीने की कोई छूट पहले से है। जितना मैं जानता हूं और जितना जान पाया हूं तो गुजरात को लेकर एक खुशनुमा भाव मन में भर आता है। अपने तीस साल के पत्रकारीय जीवन में मैंने खबरों में पाया कि गुजरात हर आफत से खुद को बाहर निकालने की ताकत रखता है। प्राकृतिक आपदा और गुजरात का चोली-दामन का साथ है। भूकंप, बाढ़ और न जाने ऐसे कितने आपदाओं ने गुजरात को एक बार नहीं कई कई बार लगभग बर्बाद कर दिया लेकिन गुजरात टूटा नहीं, हारा नहीं और न ही भागने की कोशिश की बल्कि वह पूरी ताकत से उठा और हर बार वह फिर दौड़ पड़ा विकास के साथ। साम्प्रदायिक दंगों ने गुजरात की एक अलहदा तस्वीर पेश की। इस मामले के सच और झूठ में हम न भी पड़ें तो यह बात मानना पड़ेगी कि इस आफत से भी गुजरात टूटा नहीं। आरोपों में कितना दम है, यह तो मैं नहीं जानता और न इस विवाद को तूल देना चाहता हूं कि किसकी कितनी गलती रही लेकिन गुजरात की जमीन पर आज भी सभी सम्प्रदाय के लोग जीवनयापन कर रहे हैं। किसी एक खासवर्ग में डर होगा तो उसके कारण भी अलग अलग होंगे। अलग अलग किस्म की आपदाओं से उबर कर गुजरात कैसे खड़ा हो जाता है, यह सवाल आपको अचंभे में डाल सकता है। रेलयात्रा के दौरान और शायद गुजरात में आये भीषण भूकंप के बाद एक अगुजराती ने टिप्पणी की थी। तब उसकी इस बात को मैंने गंभीरता से नहीं लिया था लेकिन बाद में जब मीमांसा किया तो लगा कि बात में दम है। इससे आगे एक पत्रकार और मीडिया अध्येता होने के नाते मामले की पड़ताल की तो पता चला कि यह साहस उस व्यक्ति की है जिसे समूची दुनिया गांधीजी कहती है। साबरमती के आश्रम में प्रतिदिन गाये जाने वाले भजन ईश्वर-अल्लाह तेरो नाम…गुजरात की शक्ति है, उसका आत्मबल है और इसी आत्मबल के चलते गुजरात शराब से दूर रहा। अब जब शराब को पर्यटन से जोड़ कर देखा जा रहा है तो निश्चित रूप से इसका कारण राजस्व है और दुनिया में न तो बाप बड़ा होता है और न भइया लेकिन सबसे बड़ा होता है रुपया…। गांधीजी की आत्मा बिलख रही होगी लेकिन जब गांधीजी ने बात की थी तो वह स्वदेशी का मामला था, अब तो हम ग्लोबलाइजेशन की बातें कर रहे हैंऔर उसी में जी रहे हैं…बस अब इंतजार करना होगा कि बापू के आश्रम से कहीं ईश्वर-अल्लाह तेरो नाम की आवाज आना कब बंद होती है…

टिप्पणियाँ

  1. शराब बंदी के बावजूद शराब धड़ल्ले से बिकती थी..साथ ही विशिष्ट वर्गों को पहले भी छूट थी. कम से कम काला बजारी रु्केगी.

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