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बापू का जन्मदिन


 
-मनोज कुमार
बापू इस बार आपको जन्मदिन में हम चरखा नहीं, वालमार्ट भेंट कर रहे हैं.गरीबी तो खतम नहीं कर पा रहे हैं, इसलिये  गरीबों को  खत्म करने का अचूक नुस्खा हमने इजाद कर लिया है. खुदरा बाजार में हम विदेशी पंूजी निवेश को अनुमति दे दी है. हमें ऐसा लगता है कि समस्या को ही नहीं, जड़ को खत्म कर देना चाहिए और आप जानते हैं कि समस्या गरीबी नहीं बल्कि गरीब है और हमारे इन फैसलों से समस्या की जड़ गरीब ही खत्म हो जाएगी. बुरा मत मानना, बिलकुल भी बुरा मत मानना. आपको तो पता ही होगा कि इस समय हम इक्कसवीं सदी में जी रहे हैं और आप हैं कि बारमबार सन् सैंतालीस की रट लगाये हुए हैं कुटीर उद्योग, कुटीर उद्योग. एक आदमी चरखा लेकर बैठता है तो जाने कितने दिनों में अपने एक धोती का धागा जुटा पाता है. आप का काम तो चल जाता था  लेकिन हम क्या करें. समस्या यह भी नहीं है, समस्या है कि इन धागों से हमारी सूट और टाई नहीं बन पाती है और आपको यह तो मानना ही पड़ेगा कि इक्कसवीं सदी में जी रहे लोगों को धोती नहीं, सूट और टाई चाहिए वह भी फटाफट  . हमने गांव की ताजी
सब्जी खाने की आदत छोड दी है क्योंकि डीप फ्रीजर की सब्जी हम कई दिनों बाद खा सकते हैं. दरअसल आपके विचार हमेशा से ताजा रहे हैं लेकिन हम लोग बासी विचारों को ही आत्मसात करने के आदी हो रहे हैं. बासा खाएंगे तो बासा
सोचेंगे भी. इसमें गलत ही क्या है?
        बापू माफ करना लेकिन आपको आपके जन्मदिन पर बार बार यह बात याद दिलानी होगी कि हम इक्कसवीं सदी में जी रहे हैं. जन्मदिन, वर्षगांठ बहुत घिसेपिटे और पुराने से शब्द हैं, हम तो बर्थडे और एनवरसरी मनाते हैं. अब यहां भी देखिये कि जो आप मितव्ययता की बात करते थे, उसे हम नहीं भूला पाये हैं इसलिये शादी की वर्षगांठ हो या मृत्यु ,  हम मितव्ययता के साथ एक ही शब्द का उपयोग करते है एनवरसरी. आप देख तो रहे होंगे कि हमारी बेटियां कितनी मितव्ययी हो गयी हैं. बहुत कम कपड़े पहनने लगी हैं. अब आप इस बात के लिये हमें दोष तो नहीं दे सकते हैं ना कि हमने आपकी मितव्ययता की सीख को जीवन में नहीं उतारा. सडक़ का नाम महात्मा गांधी रोड रख लिया और मितव्ययता की बात आयी तो इसे एम.जी. रोड कह दिया. यह एम.जी. रोड आपको हर शहर में मिल जाएगा. अभी तो यह शुरूआत है बापू, आगे आगे देखिये हम मितव्ययता के कैसे कैसे नमूने आपको दिखायेंगे.
        अब आप गुस्सा मत होना बापू क्योंकि हमारी सत्ता, सरकार और संस्थायें आपके नाम पर ही तो जिंदा है. आपकी मृत्यु से लेकर अब तक तो हमने आपके नाम की रट लगायी है. कांग्रेस कहती थी कि गांधी हमारे हैं लेकिन अब सब लोग कह रहे हैं कि गांधी हमारे हैं. ये आपके नाम की माया है कि सब लोग एकजुट हो गये हैं. आपकी किताब  हिन्द स्वराज पर बहस हो रही है, बात हो रही है और आपके नाम की सार्थकता ढूंढ़ी जा रही है. ये बात ठीक है कि गांधी को सब लोग मान रहे हैं लेकिन गांधी की बातों को मानने वाला कोई नहीं है लेकिन क्या गांधी को मानना, गांधी को नहीं मानना है. बापू आप समझ ही गये होंगेकि इक्कसवीं सदी के लोग किस तरह और कैसे कैसे सोच रखते हैं. अब आप ही समझायें कि हम ईश्वर, अल्लाह, नानक और मसीह को तो मानते हैं लेकिन उनका कहा कभी माना क्या? मानते तो भला आपके हिन्दुस्तान में जात-पात के नाम पर कोई फसाद हो सकता था. फसाद के बाद इन नामों की माला जप कर पाप काटने की कोशिश जरूर करते हैं.
बापू छोड़ो न इन बातों को, आज आपका जन्मदिन है. कुछ मीठा हो जाये. अब आप कहेंगे कि कबीर की वाणी सुन लो, इससे मीठा तो कुछ है ही नहीं. बापू फिर वही बातें, टेलीविजन के परदे पर चीख-चीख कर हमारे युग नायक अमिताभ कह रहे हैं कि चॉकलेट खाओ, अब तो वो मैगी भी खिलाने लगे हैं. बापू इन्हें थोड़ा समझाओ ना पैसा कमाने के लिये ये सब करना तो ठीक है लेकिन इससे बच्चों की सेहत बिगड़ रही है, उससे तो पैसा न कमाओ. मैं भी भला आपसे ये क्या बातें करने लगा. आपको तो पता ही नहीं होगा कि ये युग नायक कौन है और चॉकलेट मैगी क्या चीज होती है. खैर, बापू हमने शिकायत का एक भी मौका आपके लिये नहीं छोड़ा है. जानते हैं हमने क्या किया, हमने कुछ नहीं किया. सरकार ने कर डाला. अपने रिकार्ड में आपको उन्होंने कभी कहीं राष्ट्रपिता होने की बात से साफ इंकार कर दिया है. आप हमारे राष्ट्रपिता तो हैं नहीं, ये सरकार का रिकार्ड कहता है. बापू बुरा मत, मानना. कागज का क्या है, कागज
पर हमारे बापू की शख्सियत थोड़ी है, बापू तो हमारे दिल में रहते हैं लेकिन सरकार को आप जरूर बहादुर सिपाही कह सकते हैं. बापू माफ करना हम इक्कसवीं सदी के लोग अब चरखा पर नहीं, वालमार्ट पर जिंदा रहेंगे. इस बार आपके बर्थडे पर यह तोहफा आपको अच्छा लगे तो मुझे फोन जरूर करना. न बापू न..फोन नहीं, मोबाइल करना और इंटरनेट की सुविधा हो तो क्या बात है..

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